Saturday, 15 January 2022

असग़र वजाहत का लघु उपन्यास - चहार दर (9)

चार खुली हुई जीपों पर लड़के-लड़कियाँ लदे हैं। दस-बारह मोटर साइकिलें हैं। नवजोत ने ‘रावी विरसा’ का आसमानी रंग का झंडा बनवा लिया है जो जीपों और मोटर साइकिलों पर लहरा रहा है। पिछली गाड़ी में सोनी गिटार बजा रहा है और शेर अली पर लिखा गीत गाया जा रहा है। सायमा सबसे अगली जीप में है जिसे नवजोत चला रहा है।
अजनाला से आगे निकलकर गाड़ियाँ जैसे ही मुड़ने लगीं सामने पुलिस का बैरिकेट लगा दिखाई दिया। दो ट्रक भी सड़क पर खड़े कर दिए गए थे। जीपें रुक गईं। 
”की गल्ल है...जान दो अग्गे।“ नवजोत बोला।
पुलिस का इंस्पेक्टर पास आ गया और बोला, ”तोहानू इससे आगे जाने का आर्डर नहीं है।“
दूसरी गाड़ियों से उतर-उतर कर लड़के-लड़कियाँ बैरीकेट के सामने जमा होने लगे।
सोनी अपने ग्रुप के साथ गिटार लेकर उतरा और चाय के ढाबे के सामने शेर अली पर लिखा गीत गाने लगा-
गल्ल चली ए अली दी
गल्ल अली दी
गल्ल अली दी अशकां वर्गी
सोने वर्गी गल्ल अली दी
सदके जावां गल्ल अली दी
गल्ल अली दी
गल्ल अली दी...
गीत की धुन पर लोग तालियाँ बजाने लगे।

”किस दा आर्डर है?“
”कप्तान साब दा आर्डर है।“
”कप्तान साब हमारे कुछ नहीं लगते। हम उनका आर्डर क्यों माने?“ रवि बोला।
”हमें आगे जाने दो...हमें रोकने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है।“ नवजोत बोला।
”हाँ...ये गैर कानूनी है।“ सुखविन्दर बोली।
”हमें वही आर्डर मिला है।“
”दिखाओ आर्डर।“ जस्सी बोली।
”हाँ-हाँ, दिखाओ आर्डर।“ कई लोग एक साथ बोले।
”हम जी आप लोगों को अपना आर्डर नहीं दिखा सकते।“ इंस्पेक्टर झुझलाकर बोला।
”क्यों नहीं दिखा सकते? क्या हम आर्डर खा जाएंगे...हम तो यही देखना चाहते है कि तुम झूठ तो नहीं बोल रहे।“ नीता ने कहा।
”चलो जी, अपने साहब से बात कराओ।“ 
नवजोत बोला, ”हम लोग मीडिया के स्टूडेंट हैं। चोर उच्चके नहीं हैं।“ 
इंस्पेक्टर फोन मिलाने लगा। 
कुछ देर बाद बोला, ”साहब मीटिंग में हैं...आप लोगों से बात नहीं कर सकते।“
”अरे तो हम यहाँ सड़क पर कब तक खड़े रहेंगे...हमें आगे जाने दो...नहीं तो गिरफ़्तार करो...।“ नवजोत चिढ़कर बोला।
”ये लो जी प्रो. रंधावा का फोन है।“ रवि ने सायमा को अपना मोबाइल पकड़ा दिया।
”हाँ सायमा... मैंने अभी पुलिस कमिश्नर से बात की है...उनका कहना है कि वे ग्रुप को पंजगराई नहीं जाने देंगे क्योंकि उसमें एक पाकिस्तानी नेशनल भी है...मतलब तुम...यह कानून है कि विदेशी नागरिक को सीमावर्ती इलाके में टहलने घूमने की इजाज़त  नहीं है...अगर तुम ग्रुप से अलग हो जाओ तो  ग्रुप पंजगराई तक जा सकता है।“
”ओ.के. सर...ये तो आसान है...ग्रुप ही अमृत कौर का इंटरव्यू कर लेगा...सवाल हम सबने मिलकर तैयार कर लिए...मीडिया हमारे साथ है ही...तीन टी.वी. चैनल की टीमें हैं...लाइव शो रिर्काॅउ करेंगी।“ सायमा बोली।
”ठीक है...तुम लोग ठहरो...मैं पुलिस कमिश्नर से फिर बात करता हूँ...वो अपने आदमियों को ‘इंस्ट्रक्शन्स’ दे देंगे।“ प्रो. रंधावा बोले।

कुछ देर में यह तय हो गया कि सायमा खान वापस होटल चली जाएगी और  बाक़ी टीम पंजगराईं जाएगी। एक-आद ने इस पर कीं कां की, लेकिन सायमा ने समझा दिया।
 
चौपाल में मंच बना है। सामने एक कुर्सी है। साइड में कुर्सियाँ रखी हैं। सामने मीडिया और जनता के लिए जगह है। अमृत कौर इंटरव्यू देने के लिए तैयार हैं। कुछ लड़कियाँ उसे लेने के लिए उसके घर गई हैं। इस बीच सोनी चावला की टीम मंच पर अपना प्रोग्राम पेश कर रही है। पहले उन्होंने बुल्ले शाह की काफी ”उठ गए कवाण्टो यार...रब्बा हुण की करिए...“ गाया उसके बाद अब टीम ने ”गल्ल चल्ली ए अली दी...गल्ल अली दी...“ गाना शुरू किया। गिटार के साथ-साथ दूसरे वाद्यों की आवाज़ गाँव में गूँज रही है। कैमरे चल रहे हैं। रिफ़्लेक्टर इधर-उधर खड़े हैं।
लड़कियों के बीच में अमृत कौर चली आ रही है। उसने सफेद शलवार कमीज पहना हुआ है। दुपट्टा सिर पर डाल रखा है। कृपाण लगी हुई है। धूप में उसका गुनहरा रंग और ज़्यादा दमक रहा है। सफेद बालों की आभा आकर्षित कर रही है। उसका खड़ा नाक-नक्शा और दोहरा बदन गरिमामय है। उसे देखते ही सब तालियाँ बजाने लगते हैं। वह मंच पर आती है और कुर्सी पर बैठ जाती है। उसके सामने माइक रखा जाता है। पत्राकार साइड में लगी कुर्सियों पर बैठे हैं।
”आपका नाम क्या है?“
”मेरा नाम अमृत कौर है, पिता का नाम जत्था सिंह है...बेटों के नाम करतार सिंह और जरनैल सिंह हैं...?“
”हाँ...पिता दे गुजरन दे बाद मैं यही रहदी हाँ।“
”आप शेर अली को जानती थी?“
”हाँ, तकसीम से पहले वो इसी पिंड में रहदा था। उसदे खेत हमारे चक के पास थे...कभी-कभी हमारे खेतों में काम भी करा देन्दा सी।“
”क्या वह पिछले महीने आप से मिला था?“
”हाँ, मिल्या सी।“
”क्यों मिला था?“
”कहता था मैं पिंड आया था तो पुराने जान-पहचान के लोगों से मिल रहा 
हूँ...इसी कारण मुझसे मिला था।“
”क्या बात हुई थी?“
”अपने घर बार के बारे में बता रहा था...इधर के बारे में पूछ रहा था।“
आठ कैमरे चल रहे हैं। फ्लैश लाइटें चमक रही हैं। टेप रिकार्डर ऑन है। नोट्स लिए जा रहे हैं। अमृत कौर का इंटरव्यू पुलिस को बड़ी परेशानी में डाल सकता है और दोबारा पोस्टमार्टम कराने की माँग ज़ोर पकड़ सकती है। पुलिस की जीपें भी कुछ फासले पर खड़ी हैं। रावी के उस पार से हवा इधर आ रही है।
”एक अख़बार में छपा है कि वह आपसे ही मिलने ही गाँव आया था।“
”अब वो अख़बारवालों को जाकर ये बता आया है, तो मैं नहीं कह सकती...। मुझे तो जी ये नहीं पता।“
”आपके और शेर अली के बीच क्या रिश्ता था?“
”हाणी थे...एक पिंड में रहते थे...खेत पास-पास थे...खेती में हाथ बँटाता था...“ दही लस्सी रोटी लेके जाती थी उसे देने...घर के दो चार काम कर देता था
...। मेरा बापू नू बड़ा अजीज सी...बड़ा अच्दा पहलवान सी अपने ज़माने में...“
”क्या आप दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते थे?“ किसी ने सीधा सवाल पूछा।
”देखो जी, हँसी मज़ाक कर लेंदा सी...उस उम्र में सभी करते हैं...बातें बहुत बनाता था...देखने सुनने में अच्छा था...और क्या...।“
लोग तालियाँ बजाने लगे। अमरता के चेहरे पर लाली दौड़ गई।
”सत्तरह साल की उम्र में शादी हो गई थी मेरी।“ वह अकड़कर बोली।
”अच्छा, ये बताइए...क्या उसे गोली मारी गई थी?“
”मैं नहीं कह सकदी...मुझे नहीं मालूम।“
”क्या उस रात आपने गोली की आवाज़ सुनी थी?“
”सरहद दा पिंड है हर रात गोली की आवाजें आती रहती हैं।“
”हम लोग चाहते हैं शेर अली का पोस्टमार्टम फिर से कराया जाए जिससे पता चले कि उसे गोली मारी गई या नहीं। आप भी ये चाहती हैं?“
”हाँ-हाँ, क्यों नहीं...सच्चाई तो सामने आए।“
”क्या आप सोचती हो कि इधर और उधर के आदमियों को आने-जाने की सहूलियत होनी चाहिए?“
”इंसान इधर भी हैं उधर भी हैं...मिल क्यों नहीं सकते?“
लोग तालियाँ बजाने लगे। प्रेस कांफ्रेंस खत्म हो गई। ऐजेन्सियों के लोग और रिपोर्टर जल्दी-जल्दी अपनी रिकर्डिंग चेक करने लगे। लड़के- लड़कियाँ अमृत के साथ फोटो खिचंवाने लगे।
फिर पता नहीं कहाँ से चाय आ गई। नमकीन आ गई और पूरी फिजा दोस्ती में डूब गई। गाँव के दूसरे लोग भी आ गए। लेकिन जोत थोड़ा अलग था। उसे कई तरह के डर थे।
”चलो सायमा को बताते हैं।“ नवजोत फोन पर सायमा से बात करने लगा।
”ठीक है यार...बहुत अच्छा हुआ...पर रिपोर्ट अभी जाएगी...सबको, डेढ़ सौ अख़बारों, ऐजेन्सियों, मीडिया काॅलिजों और स्टूडेंटस को...जो हमारी मेल लिस्ट में हैं सबको न्यूज स्टोरी की काॅपी भेज दो...।“
”वो सब ठीक है, सायमा हो जाएगा...पर मुझे एक दुःख है।“
”क्या?“
”तू अमरता को नहीं देख पाई...तुझसे कितनी मिलती है, मैं तो उसे देखकर हैरान रह गया था... जवानी में तेरी जैसी होगी।“
सायमा ने कोई जवाब नहीं दिया।
 
रात के ग्यारह बज रहे हैं और मोबाइल का स्क्रीन बता रहा है कि लाहौर से रज़्ज़ाक साहब काॅल कर रहे हैं।
”सर...सलामअलैकुम...“
”वालेकुम...कैसी हो सायमा...?“
”सर, आपको तो सब पता चल रहा है।“
”हाँ-हाँ, तुम्हारी मेल दिन में दो बार मिल रही है।“
”सर, यहाँ पचास-साठ स्टूडेंट्स का पूरा ग्रुप ऐक्टिव है।“
”गुड...अच्छा सुनो...हमारे अख़बार के मालिक हाजी साहब...उन्होंने आज तुम्हें याद किया था।“
”तो सर...“ सायमा की डरी आवाज़ सुनकर रज़्ज़ाक साहब बोले।
”नहीं-नहीं...घबराने की कोई बात नहीं है...बस थोड़ी परेशानी में लगे...पहले तुम्हारी तारीफ करने लगे...फिर बोले, भई ठीक है, स्टोरी हो गई...अब।“
”तो क्या आप मुझे काॅल बैक कर रहे हैं?“
”नहीं सायमा...नहीं...तुम्हें बता रहा हूँ कि अब तुम और मैं दोनों ‘डैन्जर ज़ोन’ की तरफ बढ़ रहे हैं।“
”मुझे तो कोई डर नहीं।“
”डर तो मुझे भी नहीं, लेकिन...देखो...और कई पेंच हैं...“
”जैसे...“ सायमा ने पूछा।
”हाजी साहब तुम्हें ‘टरमीनेट’ कर सकते हैं...“
सायमा सन्नाटे में आ गई।
”चाहे जो हो सायमा...मैं एडीटर के तौर पर न सही, तो इंसान के तौर पर तुम्हारे साथ हूँ।“
 
अख़बार में दो ख़बरें छाई हुई है। पहली ख़बर, सायमा खान को प्रशासन ने पंजगराई नहीं जाने दिया। रास्ते में रोक लिया बाक़ी लोग पंचगराई पहुँचे। दूसरी ख़बर, अमृत कौर का इंटरव्यू था जिसमें उसने माँग की है कि शेर अली का पोस्टमार्टम फिर से कराया जाए। इस माँग के समर्थन में सैकड़ों छात्र-छात्राओं ने अपनी आवाज़ उठाई है और पंजाब के मुख्यमंत्राी के नाम पूरी दुनिया से चिट्ठियों, तारों, ई-मेल का सिलसिला जारी है कि शेर अली का पोस्टमार्टम फिर से किया जाए। लेकिन सरकार और प्रशासन ने अब तक इस पर कोई बयान नहीं दिया है।
अख़बार पढ़ते-पढ़ते सायमा की आँखों में जलन होने लगी। उसे रात में रज़्ज़ाक साहब से हुई बातचीत याद आई और वह परेशान हो गई। पता नहीं, अब उसके अख़बार की तरफ से कौन-सी कार्यवाही होगी और उसे क्या क़दम उठाने पड़ेंगे।
सायमा ने लैपटाप खोला तो दस पेज ई-मेल से भरे देखे। इन सबको जवाब दिया जाना ज़रूरी है। वह टीम के होटल पहुँचने का इंतज़ार करने लगी। कल रात तय हो गया था कि सब दस बजे सायमा के पास आएंगे और आगे का प्रोग्राम तय होगा।
मोबाइल की घंटी बजी। उसने फोन उठाया। स्क्रीन पर नाम पढ़कर समझ में नहीं आया कि उपाध्याय साहब सुबह साढ़े आठ बजे फोन क्यों कर रहे हैं।
”हेलो सर, गुड मार्निंग।“
”गुड मार्निंग सायमा...हाऊ आर यू...आज के अख़बारों में भी तुम छाई हुई हो।“
”मैं नहीं सर, पूरी टीम।“
”हाँ-हाँ, वही बात है...अच्छा ये बताओ कि क्या अभी तुमसे मुलाकात हो सकती है...मतलब दस बजे तक...।“
”हाँ-हाँ, क्यों नहीं सर...मैं आ जाऊँ?“
”नहीं...आफिस जाते हुए मैं आ जाऊँगा...तुम्हें उल्टा पड़ेगा।“
”वैसे तो सब ठीक ही है न सर?“
”हाँ...हाँ कल रात लाहौर से फोन आया था...कुछ उसी सिलसिले में तुमसे बात करनी है।“
फोन बंद करने के बाद सायमा फिर सोच में पड़ गई। क्या हो सकता है? हाजी साहब अख़बार से निकाल देंगे? हाजी मियाँ मुहम्मद आरिफ तो ये काम बहुत आसानी से कर सकते हैं। उस सूरत में उसे आज के बाद होटल का बिल खु़द चुकाना पड़ेगा...दूसरा ये कि नई नौकरी की तलाश करनी होगी...लाहौर में या कहीं और? इसके अलावा कल रज़्ज़ाक साहब ने वीजा की बात भी कही थी। वीज़ा कैन्सिल हो सकता है। ऐसी हालत में फौरन बार्डर क्रास करना पड़ेगा...तब ‘रावी विरसा’ का क्या होगा? ऊँह, जो होगा सो होगा...और फिर आंदोलन एक दो लोगों के सहारे तो चलते नहीं...न जाने कितने लोग चाहते हैं भारत और पाकिस्तान के बीच रास्ते खुलें, आने-जाने की सहूलियत होगी...बार्डर, सिवीलाइज़्ड बार्डर बने...मैं अकेली तो हूँ नहीं...लेकिन ये लोग...मेरे चले जाने पर क्या सोचेंगे...क्या कहेंगे...ये जज़्बा जो आज आसमान की बुलिन्दयों पर पहुँच गया है, कहाँ गिरेगा?

”मैं तो आपके साथ नाश्ता करने का इंतज़ार कर रही थी।“ सायमा बोली।
”नहीं...नहीं...तुम नाश्ता करो...मैं चाय पी लूँगा...या चाय से बेहतर होगा ऑरेंज जूस।“ उपाध्याय साहब बोले।
”तो बात क्या है सर?“
”देखो, रज़्ज़ाक...बहुत इमोशनल आदमी है...यही उसकी ताकत भी है और यही उसकी कमज़ोरी भी है। वह कह कुछ नहीं रहा, लेकिन उसकी परेशानी मैं समझता हूँ। अब स्टोरी जिस तिरह से ‘अनफोल्ड’ हुई है उससे भारत सरकार और ख़ासतौर पर पंजाब सरकार परेशानी में पड़ गई है..तुम्हें पता है, दोनों मुल्कों के बीच करोड़ों रुपये का कारोबार हो रहा है। जिसका सेंटर  अमृतसर है...।“
”जी।“
”कहने का मतलब यह है कि पाकिस्तान में भी एक लाॅबी है...मजबूत लाॅबी है जो इस तरह के सवालों में न पड़कर सीधे-सीधे कारोबार करना चाहता है। उसे ये सब बहुत बुरा लग रहा है...समझीं? मतलब हमारे यहाँ तो...मतलब सरकारी तौर पर लोग इसे पसन्द नहीं कर रहे हैं तो पाकिस्तान में भी यही हाल है।“
”ओहो!“
”हाँ...और तुम्हारे अख़बार के मालिक हाजी मियाँ मुहम्मद आरिफ पर काफी दबाव बनाया जा रहा है।“
”और ज़ाहिर है कि हाजी साहब रज़्ज़ाक से जवाब तलब कर रहे हैं। रज़्ज़ाक की पोजीशन बड़ी ‘आकवर्ड’ हो गई है क्योंकि उसका भेजा हुआ क्रासपांडेंट ‘जर्नलिज़्म’ छोड़कर ‘एक्टिविस्ट’ बन गया है...“
”मैं मजबूर हूँ उपाध्याय साहब?“ सायमा बोली।
”देखो, मेरी बात मानो, लड़कपन छोड़ो....स्टोरी हो गई है...अब तुम्हारा काम खत्म हो गया है...दूसरों का शूरू हुआ है...अब जो तुम कर रही हो ये तुम्हारा काम नहीं है...आपरेशन करने वाला डाॅक्टर ‘पोस्ट आपरेशन केयर’ नहीं करता...ये दूसरे लोगों का काम है।“
”सर ‘लाॅजिक’ आपके साथ हैं...और ‘इमोशन्स’ मेरे साथ हैं।“ वह बोली।
”जज़बात से दुनिया नहीं चलती।“
”लेकिन सर दुनिया को जज़्बात से ही चलना चाहिए।“
”क्या पागलपन है।“ उपाध्याय साहब को गुस्सा आ गया।
”क्या हाजी साहब मेरा वीज़ा कैंसिल करा देंगे?“
”वीज़ा तो इंडियन इम्बैसी इस्लामाबाद कैंसिल करेगी...हाजी साहब अख़बार से निकाल सकते हैं...“
”सर, मैं अगर अभी सब कुछ छोड़-छाड़कर लाहौर चली जाती हूँ तो यहाँ मेरे दोस्त...क्या कहेंगे...पूरी दुनिया में हज़ारों लोग जो हमें ई-मेल कर रहे हैं, हमारे साथ हैं, क्या सोचेंगे...और मैं ज़िंदगी भर अपने को माफ नहीं कर पाऊँगी..... ......नौकरियाँ बहुत मिल जाएगी सर...लेकिन।“
”ठीक है, जो चाहो करो...लेकिन आगे के बारे में कुछ सोच लो।“ उपाध्याय साहब उठ गए।
(जारी)

© असग़र वजाहत 


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