Saturday, 1 January 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास (13)

यूँ तो हमने पढ़ा कि मद्रास में ही कांग्रेस के बीज डले, लेकिन आम मद्रासी कांग्रेस में नदारद थे। गांधी ने भारत आने के बाद तमिल प्रदेश को जोड़ने के प्रयास शुरू किए। जो मिलता, उसे जोड़ते चलते। 

चिदंबरम पिल्लई अपने संस्मरण में लिखते हैं कि गांधी जब ट्रेन से मद्रास पहुँचे थे तो उन्होंने चिट्ठी लिखी, “आपको और आपकी पत्नी को मिलने स्टेशन पर आया था। मैं भीड़ में पीछे खड़ा था। एक बार मिल कर बात करना चाहता हूँ”

गांधी ने तुरंत लिखा, “शुक्रवार को छह बजे मिलिए।”

पिल्लई ने जवाब दिया, “मेरी ट्राम साढ़े पाँच बजे खुलती है, साढ़े छह बजे से पहले नहीं पहुँच सकता”

गांधी ने लिखा, “मैं प्रतीक्षा करूँगा”

1918 में गांधी ने मद्रास में हिंदी प्रचारिणी सभा शुरू की, और अपने पुत्र रामदास गांधी को वहाँ हिंदी के प्रचार में लगा दिया। उन्हें उम्मीद थी कि धीरे-धीरे ही सही, एक संपर्क भाषा रूप में हिंदी अंग्रेज़ी की जगह लेगी। गांधी यह जानते थे कि उत्तर में भले विदेशी कपड़ों का बहिष्कार चल रहा था, राष्ट्रवादी माहौल था, खद्दर-चरखा चल रहे थे, दक्षिण में पहुँच कम थी। 

उन्होंने मदुरै यात्रा के दौरान जब एक तमिल यात्री से पूछा, “आप खादी क्यों नहीं पहनते?”

उन्होंने कहा, “खादी के कुर्ते बहुत महंगे हैं”

गांधी ने यह निर्णय लिया कि वह कुर्ता त्याग देंगे और यथासंभव सिर्फ़ धोती ही पहनेंगे। 1921 में मदुरै में उन्होंने वह वेश-भूषा अपनायी, जो आजीवन उनके साथ रही। सी. राजगोपालाचारी गांधी के अभिन्न मित्र रहे, जिनसे वह राजनैतिक और निजी जीवन, दोनों में विमर्श लेते रहे। असहयोग आंदोलन की योजना उनके घर पर ही बनी थी। उनके पुत्र देवदास गांधी का विवाह राजाजी की बेटी से हुआ। 

अगर दक्षिण के प्रतिनिधि रूप में गांधी राजाजी के बजाय पेरियार को चुनते तो क्या इतिहास कुछ और होता? 

पेरियार एक समर्पित गांधीवादी बन रहे थे, सपरिवार खद्दर में घूम रहे थे, असहयोग आंदोलन में जेल गए। दक्षिण भारत के पहले प्रमुख गांधीवादी सत्याग्रह में अग्रणी रहे और दो बार जेल गए। लेकिन, वह पहला सत्याग्रह ही पेरियार का आखिरी बन गया। उसके बाद गांधी की लाख कोशिशों के बावजूद तमिल प्रदेश को हिंदी बेल्ट से जोड़ने का स्वप्न एक स्वप्न ही रह गया। ऐसा क्यों हुआ?

इतिहास के इस महत्वपूर्ण ‘टर्निंग प्वाइंट’ पर विमर्श जरूरी है। इसका केंद्र था केरल के वायकोम में स्थित एक शिवालय। 

पेरियार के एक संकलित भाषण से ही भूमिका रखता हूँ,

“मित्रों! मैं बनारस गया। वहाँ के मंदिर में या मंदिर के आस-पास घूमने पर जाति नहीं पूछते। जबकि केरल में एक शिव का मंदिर है, जहाँ अलग ही कानून है। वहाँ मंदिर के चारों तरफ जो सड़क है, उस पर सवर्ण हिंदू चल सकते हैं, मुसलमान चल सकते हैं, ईसाई चल सकते हैं, कुत्ते-बिल्ली-चूहे चल सकते हैं। लेकिन, हम हिंदुओं के एक बड़े वर्ग को चलने पर मनाही है। क्या वह वर्ग पशुओं से भी निम्न है?

महात्मा गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के ख़िलाफ़ सत्याग्रह किए। क्या अपने देश में यह सत्याग्रह संभव नहीं? क्या हमारे समाज से यह भेद नहीं खत्म हो सकता?”

1924 की एक दोपहर थी जब नारायण गुरु उस रास्ते से गुजर रहे थे। उन्हें इस नियम की जानकारी नहीं थी कि न सिर्फ़ मुख्य द्वार बल्कि मंदिर के चारों ओर किसी मार्ग से उनकी एझवा जाति के लोग नहीं चल सकते। उन्हें रोक दिया गया, और वापस लौटना पड़ा। नारायण गुरु ऐसे संत थे, जिनके विषय में रवींद्र नाथ टैगोर ने कहा था कि उनसे ज्ञानी संत विश्व में मिलना कठिन है (देखें- ‘रिनैशां’ पुस्तक)। वह संस्कृत में ही संवाद करते थे, और शिव के उपासक थे। उन्हें मात्र जाति के आधार पर किसी बेवकूफ़ ने रास्ता बदलने को मजबूर कर दिया।

यह बात जब उनके शिष्यों तक पहुँची, तो उन्होंने कांग्रेस के पास अर्जी दी, और एक सत्याग्रह का प्रस्ताव रखा। उनकी माँग थी कि मंदिर में भले प्रवेश न मिले, रास्ते खोल दिए जाएँ। गांधी ने असहयोग आंदोलन के बाद सत्याग्रहों पर विराम रखा था, इस कारण इसमें बहुत रुचि नहीं दिखायी।  यूँ भी गांधी के लिए यह सवर्ण-अछूत मामला एक ऐसा बर्रे का छत्ता था, जिसे छेड़ने से पहले वह बहुत सोच-विचार करते थे। अंबेडकर को रुचि हो सकती थी, लेकिन वह उस वक्त युवा थे और लंदन में अर्थशास्त्र की डिग्री ले रहे थे।

जब बड़े नेता नहीं मिले, तो आस-पास कोई लोकल नेता ही ढूँढा जाने लगा। जब सामने सदियों की परंपरा हो, त्रावणकोर के महाराज हों, धर्म हो, सवर्णों की लॉबी हो, तो कौन कांग्रेसी अपनी उंगली जलाता? कोई बलि का बकरा ढूँढा जाने लगा, जो अपनी पहली गेंद खेले और आउट होकर पवेलियन जाए। उस समय त्रावणकोर के एझवा नेताओं का साथ देने मद्रास राज्य से रामास्वामी नाइकर ‘पेरियार’ मैदान में आए, और जम गए। 

ऐसे जमे कि आखिरी ओवरों में खेल खत्म करने गांधी को ही वायकौम आना पड़ा। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास (12)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/01/12.html 
#vss 

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