Thursday, 20 January 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास - दो (12)


आज तमिलनाडु भारत का ऐसा राज्य है, जहाँ कुकुरमुत्तों की तरह जाति-आधारित दल हैं। हर जाति के अपने छोटे-बड़े दल। जबकि यह ऐसा राज्य था, जहाँ सबसे पहले जातिवाद पर प्रहार शुरू हुआ। जब पेरियार और जस्टिस पार्टी ने जातिवाद के खात्मे का बीड़ा उठाया था, तो सारे वार उल्टे कैसे पड़ गए? 

जैसा पहले लिखा है कि मद्रास प्रांत में चार वर्ण की परंपरा नहीं रही। भले कर्म के अनुसार दर्जनों जातियाँ बनी हुई थी, ब्राह्मण को छोड़ कर सभी अवर्ण या शूद्र ही गिने जाते। क्षत्रिय और वैश्य नाम से वर्ण नहीं थे। किसी के पास सौ बीघा खेत थे, तो कोई सोने का व्यापारी, मगर थे सभी अवर्ण। सभी शूद्र। 

ब्राह्मण तो मात्र चार-पाँच प्रतिशत थे। उनका विरोध कर जस्टिस पार्टी बनी, और गिरते-संभलते लगभग दो दशकों तक सत्ता में रही। अब आगे क्या? आगे यह कि ब्राह्मणों को किनारे कर नए ब्राह्मणों को जन्म लेना था।

‘शुद्ध तमिल आंदोलन’ में स्वामी मराइमलाइ अडिगल का प्रवेश एक ऐसी ही शुरुआत थी। उन्होंने शैव संप्रदाय को पुनर्जीवित किया। कई तमिल पुस्तकें लिखी, और तमिल को संस्कृत-मुक्त बनाया। उन्होंने ही द्रविड़ों को आर्यों से श्रेष्ठ, ब्राह्मणों से श्रेष्ठ, और तमाम वैष्णवों से श्रेष्ठ कहने की मुहिम शुरू की। साथ ही उन्होंने एक ‘वेल्ललार’ जाति को तमिल ब्राह्मणों से ऊपर रखा, और अपने हिसाब से यह सिद्ध किया कि वही मूल तमिल पुरोहित थे। वही सिंधु घाटी अथवा/और कश्मीर से शैव संप्रदाय लाए थे। उन्होंने तमिल क्षेत्र में बौद्ध और जैन संप्रदायों के बढ़ते प्रभाव को खत्म किया। कालांतर में उत्तर से आए ब्राह्मणों और वैष्णवों के षडयंत्र से उन वेल्लला की गद्दी छीन गयी। 

वेल्ललार जाति उत्तर भारत के भूमिहारों से कुछ मिलती-जुलती है। वे शिव के उपासक तो थे ही, शक्तिशाली जमींदार थे। कभी वे भी ब्राह्मणों की तरह पूजा-पाठ करते थे, लेकिन बाद में वे जमींदारी संभालने में व्यस्त हो गए। शूद्र या अवर्ण होने के बावजूद उनका सामाजिक ओहदा ब्राह्मणों के समकक्ष था। उत्तर भारत में भी ‘भूमिहार ब्राह्मण’ शब्द उपयोग होता है, और वहाँ भी इस तरह की कथाएँ हैं कि वे ब्राह्मण हैं या थे। खैर, मद्रास के इस घटनाक्रम को सरलीकरण में यूँ लिखा जा सकता है कि ब्राह्मणवाद खत्म कर वेल्ललावाद आ गया।

पेरियार इन शैव संप्रदायियों के विरोधी थे, और उन्हें भी ब्राह्मणों की तरह ही कर्मकांडी और शातिर मानते थे। चूँकि वे वेल्ललार ब्राह्मण-विरोधी थे, आर्य-विरोधी थे, तमिल भाषा और द्रविड़ अस्मिता के ध्वजावाहक थे, उन्होंने उनसे अधिक पंगा नहीं लिया। आखिर वे लगभग बीस प्रतिशत जनसंख्या थे, और उनके पास जमीनें और धन बहुत था। पंगा तो उल्टे उन्होंने पेरियार से ले लिया। 

मराइमलाइ अडिगल ने कहा, “यह जो स्वाभिमान आंदोलन चल रहा है, उसमें अधिकांश तेलुगु वैष्णव भरे पड़े हैं। जस्टिस पार्टी में भी वही लोग हैं। यह इनका षडयंत्र है कि हम शैव तमिलों को वैष्णव बनाना चाहते हैं।”

पेरियार को इस कथन में भी एक काम की चीज यह लगी कि यह व्यक्ति वैष्णव-विरोधी है। गांधी-विरोध और राम-विरोध, दोनों के लिए वह उपयुक्त थे। शुरुआती झगड़ों के बाद पेरियार ने उनसे क्षमा माँगा, और अपनी पत्रिका में रामायण पर टीका भी लिखवाए, जो कुछ हद तक राम के विरोध और शिव-भक्त रावण के समर्थन में थे। रामायण कथा को उत्तर बनाम दक्षिण, आर्य बनाम द्रविड़, वैष्णव बनाम शैव, श्वेतवर्णी बनाम श्यामवर्णी, कई रूप दिए जा सकते थे। 

अब पूरी खिचड़ी स्थिति हो गयी थी। एक तरफ़ सोवियत से साम्यवाद की घुट्टी पीकर आए पेरियार नास्तिक समाजवाद स्थापित करना चाहते थे। दूसरी तरफ़ मराइमलाइ अडिगल जैसे लोग शैव संप्रदाय का शंखघोष कर रहे थे। तीसरी तरफ़ सत्ता में बैठी जस्टिस पार्टी अ-ब्राह्मण किंतु रसूखदार जातियों और अंग्रेज़ों की कठपुतली बन गयी थी। चौथी तरफ़ कांग्रेस राष्ट्रवाद के बीज बो रही थी। जीत किसकी हुई? यह तो इस पर निर्भर था कि इनमें समीकरण किसके कितने बने। 

1933 के दिसंबर महीने में पेरियार समर्थित जस्टिस पार्टी के मुख्यमंत्री राजा बोबिली ने पेरियार को ही जेल भेज दिया। उन पर इल्जाम था कि वह राज्य-द्रोही लेख लिख रहे थे। बाद में भगत सिंह की ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ तमिल में छपवाने पर भी जेल भेजे गए।

पेरियार जैसे ही कोयंबतूर जेल दाखिल हुए, सामने कुर्सी पर किताब पढ़ते एक पुराने ब्राह्मण मित्र दिखे। 

पेरियार ने चौंक कर पूछा, “राजाजी! आप?”

एक समीकरण तो इस संवाद से ही बदलना शुरू हो गया। 
(क्रमश:)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास - दो (11)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/01/11_19.html 
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