Monday 26 August 2019

फ्रैंज़ काफ्का और एक बालिका की गुड़िया / विजय शंकर सिंह

अपनी मृत्यु के एक साल पहले फ्रंज़ काफ्का एक विलक्षण अनुभव से गुजरे थे। वे अक्सर दिन में बर्लिन के स्टेजलिट्ज़ पार्क में बैठे रहते थे और थोड़ा बहुत घूम फिर कर फिर एक बेंच पर आ कर बैठ जाते।

उसी बेंच पर एक दिन अचानक एक दिन उन्हें एक बालिका रोती हुयी मिली। काफ्का ने उससे रोने का कारण पूछा और फिर प्यार से चुप कराया। उक्त बालिका ने बताया वह ' जिस गुड़िया से खेल रही थी वह इसी पार्क में कही गुम हो गयी है और उसे वह मिल नहीं रही है। ' काफ्का ने उस बच्ची की गुड़िया ढूंढ लाने की बात कही और बच्ची चुप हो गयी।

काफ्का ने गुड़िया ढूंढने के लिये समय मांगा और फिर दूसरे दिन गुड़िया ढूंढ कर लाने का वादा कर के वह वहां से चले गए। पर गुड़िया न काफ्का को मिली और न ही उस बालिका को। काफ्का ने गुड़िया की तरफ से एक पत्र उस बालिका को लिखा और जब वह बालिका दूसरे दिन पार्क में उसी जगह पर जहां काफ्का से मुलाक़ात हुयी थी गुड़िया पाने की आशा में आयी तो काफ्का ने वह पत्र उस बालिका को पढ़ कर सुनाया। पत्र इस प्रकार था,

" कृपया रोना मत। मैं दुनिया घूमने के लिये निकली हूँ। मैं समय समय पर अपनी यात्रा के बारे में तुम्हे लिखती रहूंगी। तुम रोना मत । "

अब काफ्का इस पत्र के बाद नियमित रूप से उस खोई हुई गुड़िया की तरफ से पत्र लिखने लगे और लगभग रोज ही उस बालिका को पढ़ कर सुनाते। यह यात्रा का काल्पनिक वर्णन था। पर काफ्का के इस काल्पनिक लेकिन रोचक वर्णन ने उक्त बालिका को फिर रोने नहीं दिया। वह प्रमुदित हो अपनी गुड़िया के घुमक्कड़ी के किस्से सुनने लगी।

अंत मे एक दिन जब काफी कहानियां हो गयीं तो, फ्रैंज़ काफ्का ने एक दूसरी गुड़िया उक्त बालिका को लाकर दी। वह गुड़िया बदली हुयी थी ही, तो बालिका को अपनी खोई हुई पुरानी गुड़िया नहीं लगी। वह काफ्का की ओर देखने लगी। काफ्का ने उस गुड़िया के साथ एक चिट जो काफ्का ने खुद ही चिपका रखी थी, निकाली और पढ़ कर सुनाया। उसमे लिखा था, ' यह मैं ही हूँ। दुनियाभर की लंबी यात्रा के बाद मैं थक और बदल गयी हूँ। ' बालिका को इस गुड़िया और काफ्का पर विश्वास करना पड़ा।

काफ्का की मृत्यु हो गयी। कई साल बीत गए। वह बालिका अब बडी हो गयी। एक दिन उसी गुड़िया को जो काफ्का ने उसे दिया था,  अपनी आलमारी में कुछ ढूंढते हुये, उसने पाया और वह उस गुड़िया को ध्यान से देखने लगी। अचानक उस गुड़िया के फ्रॉक के आस्तीन में एक छोटा सा पत्र दबा मिला। उसने वह पत्र उठाया और पढ़ा। पत्र में लिखा था,

" हर वह चीज जो तुम प्यार करते हो, तुमसे दूर ज़रूर होती है। पर अंत मे वही प्यार उसे बदले रूप में ज़रूर लौटा देता है। "

फ्रैंज़ काफ्का ने यह पत्र जानबूझकर उसी गुड़िया के कपड़ो में छुपा दिया था और उस दिन जब उसने यह गुड़िया दी थी तो यह पत्र उसने नहीं पढ़ा था।

यह काफ्का के जीवन मे घटी हुयी एक सच्ची कहानी है। बालिका को रोते से मनाना और फिर उसकी गुड़िया न मिलने पर एक दूसरी गुड़िया ले आना पर तुरन्त इसलिए नहीं दे देना कि वह बच्ची कैसे स्वीकार कर पायेगी कि यह वही उसकी खोई हुई गुड़िया है जिसके लिये वह रो रही थी। एक कहानी गढ़ना और रोज़ ब रोज़ कहानी गढ़ कर उस बालिका को आश्वस्त करना, यह प्रकृति तो उस संवेदनशील लेखक में ही हो सकती है जो मनोभावों को न केवल पकड़ना और पहचानना ही जानता है बल्कि उसे चित्रित भी करना बखूबी जानता हो।
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फ्रैंज काफ्का ( 3 जुलाई  1883 - 3 जून 1924 ) जर्मनी के एक प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उनकी रचनाऍं तत्कालीन जर्मन समाज के व्यग्र अलगाव को चित्रित करतीं हैं। काफ्का का समय जर्मनी के इतिहास का एक उथल पुथल भरा काल था। साहित्य के समकालीन आलोचकों और शिक्षाविदों, का मानना है कि काफ्का 20 वीं सदी के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक है। उनके नाम के ही आधार पर अंग्रेजी भाषा मे काफ्काऐस्क्वे "Kafkaesque"  नाम  का एक नया शब्द ही बन गया है, जिसका प्रयोग,  बहकानेवाला ',' खतरनाक जटिलता' आदि के संदर्भ में किया जाता है। न्यूयॉर्कर के लिए एक लेख में, जॉन अपडाइक काफ्का के संदर्भ में लिखते हैं, "जब काफ्का का जन्म हुआ, तब उस सदी मे आधुनिकता के विचारों का पनपना आरम्भ हुआ - जैसे कि सदियों के बीच में एक नइ आत्म-चेतना, नए पन की चेतना का जन्म हुआ हो। "

अपनी मृत्यु के इतने साल बाद भी, काफ्का आधुनिक विचारधारा के एक पहलू के प्रतीक बने हुुयेे है । काफ्का के लेखन में मनोयोगो का खुल कर चित्रण हुआ है। बदलते समाज के मनोभावों को उन्होंने बेहद खुलेपन और यथार्थता से अपनी रचनाओं में शब्द दिया है। उनका यह गुण कोमलता, विचित्र व अच्छे हास्य, कुछ कुछ गंभीर और आश्वस्त औपचारिकता से भरपूर था। यह संयोजन उन्हे एक कलाकार बनाता है, पर उन्होने अपनी कला की कीमत के रूप में अधिक से अधिक अपने भीतर प्रतिरोध और गंभीर संशय के खिलाफ संघर्ष किया है।

काफ्का का जन्म प्राग, बोहेमिया में, एक मध्यम वर्ग के, जर्मन भाषी यहूदी परिवार में हुआ था । काफ्का के पिता, हरमन्न काफ्का यहूदी बस्ती में एक दुकान चलाते थे । उनके पिता को विशाल, स्वार्थी, दबंग व्यापारी समझा जाता था। काफ्का ने अपने पिता के बारे में खुद ही कहा था कि उनके पिता "शक्ति, स्वास्थ्य, भूख, आवाज की ऊंचाई, वाग्मिता, आत्म - संतुष्टि, सांसारिक प्रभुत्व, धीरज, मन की उपस्थिति और मानव प्रकृति के ज्ञान में एक सच्चे काफ्का थे"।

© विजय शंकर सिंह

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