Sunday 18 August 2019

ताबिश सिद्दीकी का लेख - दाराशिकोह और औरंगजेब / विजय शंकर सिंह

दारा शाहजहां का ज्येष्ठ पुत्र था और सबकुछ ठीक ठाक चला होता तो वह औरंगजेब की जगह देश का बादशाह होता। और औरंगजेब की कुटिल चाल के सामने दारा टिक न सका। सामूगढ़ के युध्द में उसकी पराजय ने न केवल उसका भविष्य बंद कर दिया पर मुल्क का मुस्तकबिल भी जिस धर्मांध कट्टरता की राह पर चल पड़ा उसने देश का बहुत नुकसान किया।
दाराशिकोह और औरंगजेब पर यह लेख ताबिश सिद्दीकी का है, इसे पढें।

शाहजहां के सबसे बड़े बेटे दाराशिकोह से औरंगज़ेब को शुरु से बड़ी समस्या थी.. औरंगज़ेब भी शाहजहां का ही बेटा था मगर उसे अपने बड़े भाई दाराशिकोह का हिन्दू संतों के साथ उठना बैठना भाता नहीं था.. महल के आलिम और मौलाना को ये पसंद नहीं आता था कि दाराशिकोह इस्लाम की किताबें छोड़ कर उपनिषद और वेदों का अनुवाद फारसी और अन्य भाषाओं में करवा रहा था

दारा ये चाहता था कि वेदों और उपनिषद की शिक्षा सारी दुनिया मे पहुंचे.. हिंदुस्तानी सभ्यता और संस्कृति से उसका ये जुनून उसकी जान का दुश्मन बन गया.. दारा को शाहजहां ने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया जो औरंगज़ेब को मान्य नहीं था.. इसलिए पहले औरंगज़ेब ने तख़्त पर कब्ज़ा किया और फिर  तमाम युद्ध और छल के बाद औरंगज़ेब ने दाराशिकोह को उसके चौदह साल के बेटे सिफ़र शिकोह के साथ बंदी बना ही लिया..  शाहजहां, यानि अपने बाप को औरंगज़ेब पहले से ही कारागार में डाल चुका था

दारा को बंदी बनाने के बाद औरंगज़ेब ने दारा और उसके चौदह साल के बेटे का एक बीमार जर्जर हाथी पर जुलूस निकलवाया.. ताकि जनता ये देख सके कि औरंगज़ेब की बात जो नहीं मानता है उसका क्या हाल होता है.. सड़क के दोनों तरफ़ खड़ी जनता अपने प्यारे राजकुमार दारा की ये हालात देख कर ज़ार क़तार रो रही थी.. इस जुलूस के बाद औरंगज़ेब दारा के समर्थन से हिल गया... औरंगज़ेब को लगा कि अगर दारा को हिंदुस्तान की जनता का इतना समर्थन है तो ये उसके आने वाले कल के लिए घातक होगा.. इसलिए उसने आनन फ़ानन में दारा को मौत के घाट उतारने का हुक्म दे दिया

दारा उस वक़्त सुबह के समय अपने चौदह साल के बेटे सिफ़िर शिकोह के  लिए जेल में खाने के लिए कुछ पका रहा था.. तभी चार सैनिक आये और दारा को उन्होंने पकड़ लिया.. दारा ने विरोध किया तो उन सैनिकों ने दारा के चौदह साल के डरे हुवे बेटे सिफ़िर के सामने उसका सिर उसके धड़ से अलग कर दिया.. ये सब औरंगज़ेब के हुक्म के मुताबिक़ हो रहा था.. औरंगज़ेब ने हुक्म दिया था कि दारा का सिर उसके चौदह साल के बेटे के सामने धड़ से अलग किया जाए.. उसके बाद औरंगज़ेब के हुक्म के मुताबिक़ दारा शिकोह के सर को एक डिब्बे में बंद कर के जेल में उसके बाप शाहजहां को भिजवाया गया.. उस डिब्बे पर औरंगज़ेब के हुक्म से ये लिखा गया था कि "पिताजी आपका बेटा औरंगज़ेब आपको भूला नहीं है, इसलिए उसकी तरफ़ से आपको ये तोहफ़ा दिया जाता है"

सैनिक जब ये डिब्बा शाहजहां के पास ले कर गए तो शाहजहां ख़ुश हो गए, और उन्होंने डिब्बा खोलने से पहले औरंगज़ेब को दुवाएं दी, और कहा कि "अल्लाह मेरे औरंगज़ेब को सलामत रखे कि वो अपने बाप को अभी भूला नहीं हैं"

डिब्बा खोलकर शाहजहां ने जब उसमें अपने सबसे प्यारे बेटे दारा शिकोह का सर देखा तो वो बेहोश हो गए.. इतिहासकार लिखते हैं कि होश में आने के बाद शाहजहां पागल हो गए थे और वो चिल्ला चिल्ला के अपने दाढ़ी का बाल नोच रहे थे और जगह जगह उनकी दाढ़ी से ख़ून रिस रहा था.. शाहजहां इस हालत में कितने दिन थे ये किसी को नहीं पता

आपकी और मेरी ज़िन्दगी में बहुत सारे ऐसे लोग मिलेंगे जो औरंगज़ेब को "रहमतुल्लाह अलैह" कहते हैं.. यानि उसे एक संत की उपाधि देते हैं.. ये लोग सैकड़ों में नहीं लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों की संख्या में हैं.. इनके मुँह से आप कभी दारा की तारीफ़ नहीं सुनेंगे.. दारा को मुस्लिम समाज ने कभी भी एक हीरो की तरह नहीं समझा.. उसकी कोई भी कहानी या घटना भारत की किसी भी पुस्तक के पाठ्यक्रम में नहीं मिलती है.. कोई बच्चा दारा को नहीं जानता है.. मगर औरंगज़ेब को सब जानते हैं

ये इतिहास उन्होंने लिखा जो ये जानते थे कि इन्हें किसे हीरो बनाना है और इस्लाम के किस पंथ को सही ठहराना है.. इन्होंने ही आपको अपनी पसंद के सूफ़ी संतों की मज़ारों के आगे मत्थे टेकने पर मजबूर किया और अपने पसंद के सूफियों को आपका हीरो बना दिया.. इन्होने भारत के हमलावरों और क़ातिलों को सूफ़ी और ग़ाज़ी बना कर आपको सैकड़ों साल से उनकी मज़ार पर मत्था टेकने पर मजबूर किया.. ये बहुत बड़ी चाल थी और ये अभी भी चल रही है

दाराशिकोह के दुश्मन जितने उस वक़्त थे उतने ही आज हैं.. मेरी पोस्ट पर आप इन्हें देख सकते हैं.. उनकी जलन जो उस वक़्त उन्हें दाराशिकोह से थी वही आज हम जैसों से हैं.. कुछ भी नहीं बदला है सब कुछ जस का तस है.. अभी भी ये "धर्मनिरपेक्ष" लोगों को अपने जाल में फंसा कर औरंगज़ेब को हीरो बनाते हैं और हम जैसों को देश और भाईचारे का दुश्मन.. और आप देख सकते हैं कि सेक्युलर और गांधीवादियों का एक बड़ा दल हम जैसों को एकता और भाईचारे का दुश्मन समझता है और इन रंगे सियारों को देशभक्त.. ये औरंगज़ेब के समर्थक बड़े शातिर थे.. और ये अब और भी शातिर हो चुके हैं

हम जैसों के पास कुछ नहीं है सिवाए सत्य और प्रेम के.. हमारे पास सिवाए अपनी मिट्टी और अपने लोगों से मोहब्बत की पूंजी की सिवा और कुछ नहीं है.. धर्म किसी का कुछ भी हो उस से हम जैसों को कोई दरकार नहीं है..  यही दाराशिकोह का आचरण था.. वो सुबह वीणा बजाता था और शाम को संतों के साथ बैठकर उपनिषद का फ़ारसी में अनुवाद करता था.. औरंगज़ेब को ये खुन्नस थी कि वो उसके इस्लाम के प्रचार में अपना जीवन क्यूं नहीं निछावर करता है.. यही जलन एक को नहीं हज़ारों को मुझ से है.. मेरे ख़ानदान के क़रीबी लोगों से लेकर फेसबुक के तमाम इस्लामिक लोगों को है

अच्छे अच्छे सेक्युलर भी इन्हीं के झांसे में आ जाते हैं और उन्हें लगता है कि मैं देश की गंगा जमुनी तहज़ीब के लिए ख़तरा हूँ.. जबकि उन्हें ये नहीं पता कि ये गंगा जमुनी तहज़ीब इनका प्रोपोगंडा है और ये असल मे औरंगज़ेब के पूजक हैं.. जिनके लिए दाराशिकोह उस दौर में भी वाजिबुल क़त्ल था और आज भी है

( विजय शंकर सिंह )

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