एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार को उनके सजग, सतर्क और जनपक्षधर पत्रकारिता के लिये उनके लोकप्रिय स्लॉट प्राइम टाइम की रिपोर्टिग के लिये एशिया का नोबल समझे जाने वाला सम्मान रामन मैगासेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। रात के 9 बजे जब नमस्कार, मैं रवीश कुमार की आवाज़ एनडीटीवी पर गूंजती है तो आंखे स्क्रीन पर आ जाती हैं। रवीश से मेरी रूबरू भेंट नहीं है पर फोन पर बात होती रहती है। मैं उनकी पत्रकारिता का प्रशंसक हूँ, उनके इस सम्मान पर मैं बेहद खुश हूं।
पत्रकारिता, और कुछ भी हो, पर वह चाटुकारिता तो नहीं ही है। उसे सत्ता की तरफ नहीं, बल्कि सत्ता में भेजने वालों की तरफ रहना चाहिये। वह चारण कला नहीं है वह एक सजग, सतर्क और पैनी निगाह से सवाल पूछने और तथ्यो को खोल कर रख देने की कला है। वह सरकार का दुंदुभिवादन नहीं है बल्कि ,ताकतवर सत्ता को असहज कर के, बंदगले के कुर्ते जैकेट में 18 डिग्री के ऐसी से ठंडे कमरे में सत्ता के पेशानी पर स्वेद विंदु ला देने और पानी मांगने पर मजबूर कर देने वाली सम्प्रेषण की विधा है।
लेकिन इस अंकुश भरे सवालों के दौरान कोई अभद्रता न हों, उन्माद और सन्निपात के रोगी की तरह चीखने चिल्लाने का कोई दौरा न पड़ा हो, मुस्कुराते हुए सवाल जवाब और चाय के दौर चल रहे हों, और खबरों की तह तक उतरा जा रहो, वह पत्रकारिता है। सरकार, विशेषकर लोकतंत्र में सरकार, एक समय सीमा के लिए चुनी जाती है। वह एक वायदे पर चुनी जाती है। सरकार को वायदे याद दिलाना ज़रूरी होता है। सत्ता का प्रमाद आदतन भुलक्कड़ और अहमन्यता भर देता है। यह जो मिथ्याभिमान भरता है, वह अधिकार सुख की मादकता ही तो है।
2014 के पहले जब कांग्रेस सत्ता में थी तो कांग्रेस विरोधी खबरें प्राइम टाइम में बहुत दिखती थीं। जब भाजपा सरकार आयी तो इस सरकार की आलोचना होने लगी। 2014 के बाद जो बड़ी घटनाये हुयी, चाहे गौरक्षा, बीफ के नाम पर लोगों की हत्याएं हुयी हो, या लव जिहाद के मामले रहे हों या नोटबंदी से पीड़ित जन की व्यथा रही हो, या जीएसटी से बाज़ार में फैला संकट या आक्रोश रहा हो, या विश्वविद्यालयों में छात्रों और अध्यापकों की समस्या रही हो, या देर से चलने का कीर्तिमान बनाने वाली ट्रेनों की व्यथा कथा रही हो, या संस्कृति के मिथ्या झंडाबरदारों द्वारा सायबर लफंगों की जमात का खुल कर विरोध करना रहा हो, कहने का आशय कि जनता की जो भी समस्याएं सामने आई रवीश की रिपोर्टिंग ने उसे स्वर और अहमियत दी।
रवीश की रिपोर्ट, 25 एपिसोड वाली यूनिवर्सिटी सीरीज, बेरोजगारों की व्यथा उधेड़ कर रख देने वाली नौकरी सीरीज़, जब सत्ता इतनी ठस और मगरूर हो गयी हो कि उसे कुछ सूझे ही नहीं तो, टीवी का स्क्रीन काला करके केवल आवाज़ से ही एक प्रतीकात्मक विरोध दर्ज करने की कला , और जब ट्रोलरों की जमात का अनुगमन सत्ता शीर्ष करने लगे तो मूकाभिनय के अभिनेताओं के माध्यम से एक रोचक पर गंभीर संदेश देना यह मेरी समझ मे एनडीटीवी प्राइम टाइम और रवीश कुमार की पत्रकारिता के कुछ उल्लेखनीय दस्तावेज हैं।
एक तरफ जनता से जुड़ी समस्याओं को स्वर देती यह पत्रकारिता है तो दूसरी तरफ, 2000 रुपये के नोट में इकोक्ट्रॉनिक चिप का अफवाह उड़ाती, लेखचोरी के आरोप पर मिथ्या समाचारों का जाल बुनती, लफंगों की तरह से स्टूडियो में बैठ कर गलाफाड अभिनय का प्रदर्शन करती भी आज के दौर की पत्रकारिता का एक चेहरा भी है। आज रामन मैगासेसे इनाम कमेटी ने अपने इस साल के सम्मान के लिये रवीश को चुना है, यह उनका सम्मान तो है ही यह पत्रकारिता के उस पक्ष का भी सम्मान है जो जनता की समस्याओं को उठा रहा है और जन जागरूकता के साथ साथ सरकार को भी हक़ीक़त से रूबरू करा रहा है।
क्या इसे ऐसी पत्रकारिता की उपलब्धि नही मानी जानी चाहिये, कि यूनिवर्सिटी सीरीज के बाद सरकार ने महाविद्यालयों छात्रों और अध्यापकों की सुध लेनी शुरू कर दी ? रेलवे सीरीज के बाद सुदूर देहाती अंचलों से आने वाली ट्रेनों का समय पालन कुछ हद तक ही सही ठीक हो गया ? नौकरी सीरीज के बाद लंबे समय से नियुक्ति पत्र की चाह में बैठे युवाओं को सरकार ने नियुक्ति पत्र देने की कार्यवाही शुरू कर दी ? यह उपलब्धि रवीश के निजी खाते में तो जाएगी ही पर यह उस पत्रकारिता की ओर उन्मुख होने वाले युवा पत्रकारों और पत्रकारिता के छात्रों को भी अनुप्राणित करेगी, जो आंखों में सपने लेकर इस क्षेत्र में आते हैं।
रमन मैगसेसे पुरस्कार (Ramon Magsaysay Award) एशिया के व्यक्तियों एवं संस्थाओं को उनके अपने क्षेत्र में विशेष रूप से उल्लेखनीय कार्य करने के लिये प्रदान किया जाता है। इसे प्राय: एशिया का नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है। यह रमन मैगसेसे पुरस्कार फाउन्डेशन द्वारा फ़िलीपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रमन मैगसेसे की याद में दिया जाता है। यह पुरस्कार निम्न क्षेत्रों में काम करने वाले प्रतिभा सम्पन्न लोगों को दिया जाता है। वे हैं, सरकारी सेवा, सार्वजनिक सेवा, सामुदायिक नेतृत्व, पत्रकारिता, साहित्य एव सृजनात्मक संचार कलाएँ, शान्ति एवं अन्तरराष्ट्रीय सद्भावना, उभरता हुआ नेतृत्व ।
भारत मे सबसे पहले यह पुरस्कार आचार्य विनोबा भावे को मिला है। अन्य महत्वपूर्ण लोगों में अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, अरुण शौरी, बिजी वर्गीज, पी साईनाथ, बाबा आमटे, जल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध राजेन्द सिंह, लखनऊ के संदीप पांडेय आदि हैं। एक बार पुनः रवीश कुमार को बधाई। मैं एक पत्रकार नहीं हूं। मैं एक सरकारी मुलाजिम रहा हूँ। पर मुझे लगता है कि पत्रकारिता अगर जनपक्षीय नहीं है तो वह पत्रकारिता के उद्देश्यों को पूरा नहीं करती है। एक बार फिर पूरी दृढ़ता से कहता हूं, पत्रकारिता और जो भी कुछ हो, पर वह चाटुकारिता तो नहीं ही है।
© विजय शंकर सिंह
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