Saturday, 24 August 2019

जम्मू कश्मीर - श्रीनगर में रुका हुआ विपक्ष और मीडिया / विजय शंकर सिंह

जब विपक्ष को श्रीनगर शहर में जाने देना ही नहीं था, तो उन्हें दिल्ली में ही रोक देना चाहिये था। दिल्ली एयरपोर्ट पर अगर उन्हें रोक कर श्रीनगर नही जाने दिया गया होता तो आज जो तमाशा श्रीनगर एयरपोर्ट पर हो रहा है वह इतना अधिक नही होता। जब भी प्रेस को पुलिस द्वारा उनके काम मे दखलंदाजी कर के रोका जाएगा तब तब पुलिस पर अभद्रता के आरोप लगेंगे। पुलिस अपनी मर्ज़ी से किसी को न तो रोकती है और न ही जाने देती है। जो भी आदेश वहां की सरकार के होंगे वह उसे लागू करती है। मीडिया का मामला संवेदनशील होता है।

सारा विपक्ष श्रीनगर एयरपोर्ट पर रोका गया  है। आप भले ही उन्हें नज़रअंदाज़ कर जाँय पर दुनियाभर में लोकतंत्र की जब बात चलेगी तो विपक्ष की बात भी उतनी ही जोरदारी से  चलेगी जितनी सत्ता की बात चलती है। मीडिया के लोग जो बदसलूकी के आरोप लगा रहे हैं वे भारत के ही चैनल हैं और उनकी क्षवि भी सरकार समर्थक है। कश्मीर में 5 अगस्त से ब्लैकआउट है और वहां की खबरें जैसी मिल रही हैं उससे स्थिति कम स्पष्ट हो रही है और अफ़वाहें अधिक फैल रही हैं।

सरकार या तो यह स्वीकार करे कि जम्मूकश्मीर अभी एक असामान्य क्षेत्र एक  बना हुआ है और सरकार उसे सामान्य बनाने के लिये अपनी तरफ से हर संभव पूरी कोशिश कर रही है, और जब तक वहां के हालात सामान्य नही हो जाते वह किसी भी ऐसे व्यक्ति को वहां नहीं जाने देगी जिसके जाने से वहां शांति व्यवस्था की स्थिति बिगड़ जाय। लेकिन जिस तरह से एक तरफ सरकार द्वारा यह कहा जा रहा है कि वहां सबकुछ सामान्य है और दूसरी तरफ, वहां देश के ही विरोधी दल के प्रमुख नेताओ को सरकारी सुरक्षा में भी  नही जाने दिया जा रहा है, इससे भ्रम की ही स्थिति पैदा हो रही है।

विदेशी मीडिया और चैनल कुछ और बता रहे हैं, देशी मीडिया और चैनल कुछ अलग बता रहे हैं, सोशल मीडिया तो जितने मुंह उतनी बातें बता ही रहा है। पर सरकार एक तरफ कह रही है सब शांत है और दूसरी तरफ एयरपोर्ट से राजभवन तक जाने नहीं दे रही है। क्या यह रोकटोक और ठोक सरकार की भूमिका के बारे में संशय नहीं उत्पन्न करेगी ? विपक्षी नेताओं को दिल्ली से प्रस्थान करने देना और श्रीनगर में एयरपोर्ट पर उतरते ही रोक देने से जो बवाल हुआ है वह तो होना ही था।

© विजय शंकर सिंह

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