कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का रवैया निंदनीय और कूटनीतिक परंपराओं के विरुद्ध है। पाकिस्तान की कश्मीर पुनर्गठन बिल 2019 पर प्रतिक्रिया न केवल निंदनीय है बल्कि यह इस बात को प्रमाणित करता है 1947 से लेकर आज तक कश्मीर में होने वाली हर आतंकी घटना में उसका स्पष्ट हाँथ है। वह और उसकी सेना, इन आतंकियों को न केवल ट्रेनिंग देती है बल्कि इनको हर तरह की सुविधा देती है। 1990 के समय जब बेनज़ीर भुट्टो वहां की पीएम थीं तो उनका कश्मीर पर जो स्टैंड था और जो वीडियो उस समय आये थे, वे इतने आक्रामक थे कि उस समय पाकिस्तान यह उम्मीद पाल बैठा था कि कश्मीर में वही सब हो जाएगा जो बांग्लादेश में 1971 में हुआ था।
पर कश्मीर की जनता पाकिस्तान के साथ नहीं गयी। कश्मीर अपने सूफी परंपरा के इस्लाम के कारण कट्टर सुन्नी सोच के पाकिस्तान से अपना तालमेल नहीं बिठा पाता है। यही कारण है कि कश्मीर मुस्लिम बहुल होते हुये भी 1947 के कबायली आक्रमण के समय जो वास्तव में पाकिस्तानी सेना का ही एक ऑपरेशन था, धर्म के नाम पर उधर नहीं गया। बाद में तो, फिर राजा हरि सिंह ने राज्य का भारत संघ में विलय कर दिया।
कश्मीर के जनता के प्रति पाकिस्तान की कोई हमदर्दी नहीं है। वह उस मुस्लिम लीग के साम्प्रदायिक राजनीति की विरासत है जो एक समय भारतीय उपमहाद्वीप में खुद को मुस्लिम हितों का सबसे बड़ा हितैषी समझती थी। पर उंस समय भी ऐसा नहीं था, और आज भी ऐसा नहीं है।
आज पाक के कब्जे में जो कश्मीर, पीओके है वह हमारे कश्मीर की तुलना में बहुत पिछड़ा है। अब जब से चीन की वन बेल्ट वन रोड योजना चल रही है तो इस सड़क के आसपास ज़रूर कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास हुये हैं। अन्यथा पीओके में स्कूल, कॉलेज, सड़के, या अन्य जनहितकारी विकास बिल्कुल नहीं हुए हैं। पूरा पीओके ही सेना द्वारा संचालित आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप में बदल गया है। वह आतंकियों की नर्सरी की तरह है। पाकिस्तान अपनी भूमि में नहीं बल्कि पीओके में इसलिये कंप चलाता है ताकि वह यह प्रचारित कर सके कि, यह आतंकी कैंप नहीं, बल्कि कश्मीर की तथाकथित आज़ादी के लिये स्वतंत्रता सेनानी हैं।
आज पाकिस्तान ने प्रतिक्रिया स्वरूप, भारत से दौत्य सम्बंध कम कर दिया है। अपना एयरस्पेस पुनः हमारे विमानों के लिये बंद कर दिया है और व्यापार पर रोक लगा दी है। इसका आर्थिक प्रभाव पड़ेगा। पर कितना पड़ेगा, यह तो भविष्य में ही बताया जा सकेगा। हालांकि पुलवामा की आतंकी घटना के बाद, भारत ने पाकिस्तान को दिया जाने वाला मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा खत्म कर दिया है। संसद कोई भी बिल पास करे, यह भारत का अपना संप्रभु अधिकार है। उक्त बिल की आलोचना करने, उस पर ऐतराज जताने या बौखलाने का पाकिस्तान ही नहीं किसी भी देश को कोई अधिकार नहीं है। पाकिस्तान का यह कदम सर्वथा अनुचित है।
अनु.370 के संशोधित हो जाने से कश्मीर की स्थिति पर कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं पड़ता है, यह भारत की चिंता है न कि पाकिस्तान और चीन की। चीन ने भी कल आपत्ति जताई थी। चीन इस कदम पर अपनी आपत्ति तो जता रहा है, पर वह यह भूल जा रहा है कि उसने पूरी की पूरी तिब्बत की सभ्यता, संस्कृति, भाषा आदि सब तहस नहस कर दिया है।
पाकिस्तान के इस कूटनीतिक कदम का जवाब भारत को कूटनीतिक मंच पर देना चाहिये और ऐसा हो भी रहा है। पाकिस्तान एक असफल और नकली राष्ट्र है जो धर्मान्धता के उन्माद पर जन्मा है। वह खुद को मुसलमानों का रहनुमा बताता है पर उसने बंगाली मुसलमानों, मुहाजिरों, बलोचियों, और पख्तूनों पर जो ज़ुल्म किये हैं वे किसी से छुपे नहीं है। इस्लाम के अन्य फिरकों, अहमदिया, कदयानी, शिया आदि से भी पाकिस्तान में दोयम दर्जे का व्यवहार किये जाने की शिकायतें अक्सर मिलती हैं।
कश्मीर पर पाकिस्तान में होने वाली बौखलाहट, दरअसल वहां के सेना की खीज है जो 1947 से अब तक न केवल हर युद्ध हारती रही है बल्कि हर आतंकी घटना में उसकी भूमिका का खुलासा होता रहा है। पाक सेना एक प्रोफेशनल सेना के बजाय एक कारोबारी सेना है। वह अब प्रोफेशनल सेना की तरह लड़ना भूल चुकी है। वह सैन्य पूंजीवाद के एक नए रूप में बदल चुकी है। उसके जनरल अब सैनिक कम कारोबारी अधिक हो गए हैं। वहां की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई, आतंकियों की सरगना की तरह व्यवहार करती है, और वह पाकिस्तान की सरकार पर हावी है। सरकार के राजनीतिक निर्णय, बिना पाकिस्तान की सेना के मर्ज़ी के लागू नहीं होते है, और अक्सर लिए भी नहीं जाते।
पाकिस्तान की यह बौखलाहट तो अब सामने आ गई पर पर्दे के पीछे जो आतंकी कैम्पो में उसकी गतिविधियां चल रही होंगी वह भी कुछ ही दिन में सामने आ जाएंगी। कश्मीर में हुर्रियत के रूप में एक खेमा कश्मीर में उसके साथ पहले से है। यह खेमा खुल कर पाकिस्तान के साथ जाने की बात करता है। हालांकि हुर्रियत का कश्मीर की जनता पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं है। अब तो वे सब गिरफ्तार भी हैं। उन्हें अभी छोड़ना भी नहीं चाहिये। पुनर्गठन बिल के बाद, अब इस नयी बदलती परिस्थिति में आतंकी घटनाओं में वृद्धि हो सकती है। इसका कारण यह है कि पाकिस्तान ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर, यह अफवाह फैलाने की कोशिश करेगा कि कश्मीर में होने वाली यह घटनाएं कश्मीर के जनता की भारत के विरुद्ध हिंसक आंदोलन है। ऐसा वह पहले भी कहता रहा है। यही वह अब भी कहेगा।
कश्मीर के जन मानस का साथ कश्मीर में शान्ति के लिये आवश्यक है। हो सकता हो सरकार के पास इस दिशा में भी कोई रणनीति हो। भारत को अब पाकिस्तान से कूटनीतिक सम्बन्धो के साथ साथ कश्मीर में विशेषकर घाटी में आंतरिक स्थितियों पर भी सतर्क रहना होगा। अगर हिंसक और आतंकी घटनाओं पर नियंत्रण रहा और जम्मू कश्मीर की स्थिति सामान्य बनी रही तो, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में बहुत कुछ प्रतिक्रिया नहीं होगी। फिलहाल तो सतर्कता अपेक्षित है।
© विजय शंकर सिंह
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