यह आखिरी संग्राम था। 8 अगस्त 1942 को बंबई में इंडियन नेशनल कांग्रेस की ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने अंग्रेजों को भारत से चले जाने के लिये एक निर्णायक आंदोलन की शुरुआत की। उस आंदोलन का यह प्रस्ताव कांग्रेस ने आज ही के दिन 1942 में पारित किया था। आंदोलन की पीठिका पर 9 अगस्त को एक लंबा लेख प्रस्तुत होगा। आज जो प्रस्ताव पास किया था उसे आप यहां पढ़ सकते है।
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भारत छोड़ो आंदोलन प्रस्ताव का आलेख.
सबसे पहले इसका आलेख महात्मा गांधी ने 27 अप्रैल 1942 को तैयार किया था। जो इस प्रकार है।
सर स्टैफर्ड क्रिप्स ने ब्रिटिश युद्ध कैबिनेट के प्रस्तावों को जिस प्रकार से प्रस्तुत किया है उसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के इरादों को नंगा करके रख दिया है, जैसा कि अब तक कभी नहीं हुआ था । अतः उस प्रस्ताव के अध्ययन के बाद ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी निम्न निष्कर्षों पर पहुंचती है।
कमेटी की यह राय है कि ब्रिटेन भारत की रक्षा करने में सक्षम नहीं है। यह स्वाभाविक है कि भारत जो कुछ भी प्रयास करेगा वह अपनी रक्षा करने के लिये करेगा। भारत और ब्रिटेन के आपसी हितों में शुरू से ही टकराव रहा है और दोनों के लिये सुरक्षा के मायने भी अलग अलग हैं। भारत के राजनैतिक दलों पर ब्रिटेन का अब कोई भरोसा नहीं रहा । भारतीय सेना का जो अब तक स्वरूप है उसके अनुसार वह देश को अपने आधीन मानती है। वह आम जनता को आत्मीयता से नहीं देखती औऱ जनता से बिल्कुल अलग है। सेना कि जनता के प्रति अविश्वास की यह नीति आज भी बरकरार है, इसी लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में वह चुने गये जनप्रतिनिधियों पर कोई भरोसा नहीं करती है।
जापान का भारत के साथ कोई विवाद नहीं है। उसकी लड़ाई ब्रिटिश साम्राज्य के साथ है। इस युद्ध मे भारत की सहभागिता उसके द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों की सहमति से नहीं है। यह शुद्ध रूप से एक ब्रिटिश कृत्य है। अगर भारत स्वतंत्र होता है तो निश्चय ही वह जापान के साथ समझौता करेगा।
कांग्रेस की राय है कि ब्रिटिश को अब यहां से चला जाना चाहिये। भारत किसी भी जापानी या अन्य आक्रमण से अपनी रक्षा करने में सक्षम होगा।
अतः कमेटी इस निर्णय पर पहुंचती है कि ब्रिटेन को अब भारत से वापस चले जाना चाहिये। उनका यह कहना कि उनको, भारतीय रजवाड़ों की रक्षा के लिये बने रहना चाहिये, पूरी तरह से अतार्किक है। यह इस बात को एक बार और प्रमाणित करता है कि वे येन केन प्रकारेण भारत पर कब्ज़ा जमाये रखना चाहते हैं। रजवाड़ों को निःशस्त्र भारत से भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है।
समाज मे बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक का भेद ब्रिटिश सरकार द्वारा किया गया है, औऱ यह मतभेद अंग्रेजों के वापस जाते ही समाप्त भी हो जाएगा। इन्ही सब कारणों से यह कमेटी ( एआईसीसी ) ब्रिटेन से अपील करती है कि वह अपनी और भारत की सुरक्षा तथा विश्व शांति के लिये अगर अन्य एशियाई और अफ्रीकी देशों से नहीं हटते हैं तो कम से कम भारत से अपना प्रभुत्व हटा लें।
कमेटी की यह इच्छा है कि वह जापान को आश्वस्त करे कि भारत की जापान या किसी भी देश के साथ कोई शत्रुता नहीं है। भारत सभी विदेशी प्रभुत्व से केवल आज़ाद होना चाहता है। लेकिन अपनी आज़ादी की लड़ाई के संदर्भ में वह पूरे विश्व की सहानुभूति का इच्छुक तो है पर किसी से कोई भी सैनिक सहायता के पक्ष में नहीं है। कमेटी इसी मत की है।
भारत अपनी आजादी अपने अहिंसा की शक्ति के बल पर प्राप्त करेगा और उसी ताकत के बल पर उसे अक्षुण्ण भी रखेगा। अतः कमेटी यह आशा करती है कि जापान भारत मे कोई गड़बड़ नहीं करेगा। लेकिन यदि जापान भारत पर हमला करता है और ब्रिटेन इस अपील ( भारत छोड़ने ) पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है तो, वे सभी जो कांग्रेस की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं को जापानी सैन्य बलों के प्रति पूरी तरह से अहिंसक असहयोग का मार्ग अपनाना होगा और उन्हें कोई भी सहायता नहीं दी जाएगी। आक्रमण झेल रहे लोगों का यह कोई दायित्व नही है कि वे आक्रामकों की कोई सहायता करें। यह उनका कर्तव्य है कि वे आक्रमणकारियों का पूरी तरह से असहयोग करें।
अहिंसक असहयोग का सरल सिद्धांत समझना कोई कठिन बात नही है।
पहला, हम किसी भी आक्रमणकारी के विरुद्ध घुटने नहीं टेकेंगे और उनका कोई आदेश नहीं मानेंगे।
दूसरा, हम उससे किसी लाभ की अपेक्षा नहीं रखेंगे और न ही उससे मिलने वाले किसी उत्कोच या लाभ के लिये नीचे गिरेंगे, लेकिन हम उसके प्रति कोई दुर्भावना भी नहीं रखेंगे और न ही उसका कुछ बुरा हो ऐसा सोचेंगे।
तीसरा, यदि वे हमारे खेतों पर कब्ज़ा करने की बात करें तो हमें उन्हें यह देने से इनकार कर देना होगा ऐसा करने के लिये हमें मरने के लिये भी तैयार रहना होगा।
चौथा, यदि वे किसी बीमारी से ग्रसित होते हैं, या प्यास से मरने लगते हैं और हमारी सहायता ( जान बचाने ) के लिये चाहते हैं तो हमे इससे इनकार नहीं करना चाहिये।
पांचवा, उन स्थानों पर जहां अंग्रेजों की जापानियों से युद्ध चल रहा है वहां असहयोग का मार्ग अनावश्यक और निष्फल साबित होगा।
फिलहाल,ब्रिटिश सरकार के साथ, अभी असहयोग का विकल्प सीमित है। जब वे पूरी तरह से युद्ध मे होंगे और अगर तब हम उनके साथ असहयोग करते हैं तो यह जानबूझकर देश को जापान के हांथो में सौंपना होगा। इसलिए, ब्रिटिश सेना के समक्ष कोई अवरोध हमें नहीं खड़ा करना है बल्कि हमारा असहयोग जापानी सेना के विरुद्ध होगा।
हमें ब्रिटिश का किसी भी मामले में सक्रिय सहयोग नहीं करना है। अगर हम उनके हालिया व्यवहार को देखें तो ब्रिटिश सरकार हमसे किसी भी प्रकार की सहायता की अपेक्षा नहीं रखती है, वह बस यह चाहती है कि हम उनके काम मे कोई हस्तक्षेप न करें। वे हमारी मदद एक ग़ुलाम के रूप में चाहते हैं।
यह आवश्यक नहीं है कि कमेटी यह घोषणा करे कि वह दुश्मन के राह में आने वाली हर उपयोगी चीज को नष्ट करने ( scroched earth policy ) की नीति को लागू करे। अगर हमारे असहयोग के बावजूद देश का कोई भूभाग जापान की सेना के कब्जे में आ जाता है तो, हमे अपनी फसल और पानी के श्रोत को नष्ट नहीं करना है, यह केवल इसलिए कि हमे इसे पुनः प्राप्त करने में बहुत प्रयास करना होगा। युद्ध की सामग्री को नष्ट करना और बात है जिसे कभी कभी कुछ सैन्य ज़रूरतों के कारण नष्ट करना पड़ता है।
हालांकि जापानी फौजों के खिलाफ असहयोग बहुत सीमित होगा पर अगर यह सदिच्छा से सचमुच में किया जाएगा तो, स्वराज प्राप्ति के लिये इसे हर हाल में फलीभूत करना पड़ेगा, क्योंकि लाखों लाख लोग, एक रचनात्मक कार्य मे लगे हुए हैं। बिना इसके पूरा देश लंबी सुशुप्तावस्था से उठ खड़ा हो यह संभव नहीं है।
ब्रिटिश यहां रहते हैं या नहीं यह अलग प्रश्न है पर हमारा यह कर्तव्य है कि हम बेरोजगारी को दूर करें, अमीर और गरीब के बीच के अंतर को कम करें, ब्रिटिश द्वारा फैलाये गये साम्प्रदायिकता को खत्म करें, अस्पृश्यता के दैत्य को नष्ट करें और डकैतों से जनता को बचाएं। अगर हम सब मिल कर राष्ट्र निर्माण के इस दायित्व में मन से रुचि नहीं लेते हैं तो, आज़ादी एक सपना बनकर रह जायेगी और वह न तो अहिंसात्मक तरीके से और न ही हिंसात्मक रास्ते से पायी जा सकेगी।
स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों, कमेटी यह मानती है कि किसी भी विदेशी सैनिक का भारत भूमि पर होना, भारत के हितों के विरुद्ध और भारत की आज़ादी के लिये घातक है। अतः ब्रिटिश सरकार से यह अपील करती है कि, वह सभी विदेशी सैनिकों को भारत से बाहर निकाले। भारत की विशाल जनशक्ति को देखते हुये यह शर्म की बात है कि यहाँ विदेशी सैनिक रहें। यह इस बात का प्रमाण है कि ऐसे ही ब्रिटिश साम्राज्य अमर बना रहना चाहता है।
महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तुत इस प्रस्ताव के आलेख को 7 अगस्त, 1942 को जवाहरलाल नेहरू ने कुछ संशोधित किया जो इस प्रकार है।
( ब्रिटेन के लिए ) साम्राज्य को बनाये रखना, और निरंतर शासन करने की शक्ति को मजबूत करते रहना अब एक शाप और बोझ बन गया है। भारत आधुनिक साम्राज्यवाद का एक विचित्र उदाहरण है, इसकी आज़ादी के साथ ही ब्रिटेन और यूनाइटेड नेशन (.लीग ऑफ नेशन ) की भी परीक्षा होगी, बल्कि एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों की जनता में भी उत्साह और आशा का संचार होगा। इस देश से ब्रिटिश राज का खात्मा एक ऐसा तात्कालिक औऱ ज्वलंत मुद्दा बनेगा, जिस पर विश्व युद्ध और स्वाधीनता तथा लोकतंत्र का भविष्य निर्भर करेगा। एक स्वाधीन भारत, अपने आज़ादी की इस सफलता से उतपन्न सभी साधनों के साथ आक्रामक नाजीवाद, फासीवाद औऱ साम्राज्यवाद के विरुद्ध खड़ा होने का वादा करता है। यह न केवल युद्ध के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि सभी शोषित और पीड़ित मानवता को संयुक्त राष्ट्र की ओर उन्मुख करेगा, और उन सभी देशों को जो भविष्य में भारत के साथ होंगे, नैतिक और आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान करेगा। गुलामी के बंधन में जकड़ा भारत, अगर ब्रिटिश साम्राज्यवाद का प्रतीक बना रहा तो इस साम्राज्यवाद का दंश दुनिया भर के देशों को चुभता रहेगा।
( अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ) यह महसूस करती है कि अब, एक साम्राज्यवादी और अधिनायकवादी सत्ता के खिलाफ जो हम पर दासता थोपे हुये है को रोकने और उससे मुक्त होने के लिये कठोर परिश्रम करना अब न केवल अपने हित मे है, बल्कि यह मानवता के हित मे भी है। कमेटी यह प्रस्ताव पारित करती है कि वह आज़ादी और स्वतंत्रता के अपने अहरणीय अधिकार के लिये एक अहिंसा पर आधारित एक जन आंदोलन चलाने की अनुमति देती है, जिसमे देश अपने बाइस साल के स्वाधीनता संग्राम में संचित समस्त संसाधनों का शांतिपूर्ण जन संघर्ष के लिये उपयोग कर सकेगा। ऐसा संघर्ष, केवल गांधी जी के ही नेतृत्व में संभव है, अतः यह कमेटी उनसे अनुरोध करती है कि वे यह नेतृत्व स्वीकार करें और देश को क्या कदम उठाने हैं, यह दिशा निर्देश दें।
और अंत मे ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी, यह सबको स्पष्ट कर देना चाहती है कि यह संघर्ष कांग्रेस को सत्ता दिलाने के लिये नहीं बल्कि जब भी कभी सत्ता मिलेगी तो वह भारतीय जनता की होगी।
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a) TEXT ISSUED BY THE GOVERNMENT OF INDIA OF THE ORIGINAL "QUIT INDIA" RESOLUTION DRAFTED BY MOHANDAS K. GANDHI AND REJECTED BY THE ALL-INDIA CONGRESS WORKING COMMITTEE IN FAVOR OF THE MODIFIED VERSION SUBMITTED BY PANDIT JAWAHARLAL NEHRU.
The Gandhi Draft Was Presented to the Committee on April 27, 1942
Whereas the British War Cabinet proposals by Sir Stafford Cripps have shown up British imperialism in its nakedness as never before, the All-India Congress Committee has come to the following conclusions:
The committee is of the opinion that Britain is incapable of defending India. It is natural that whatever she does is for her own defense. There is the eternal conflict between Indian and British interest. It follows that their notions of defense would also differ.
The British Government has no trust in India's political parties. The Indian Army has been maintained up till now mainly to hold India in subjugation. It has been completely segregated from the general population, who can in no sense regard it as their own. This policy of mistrust still continues, and is the reason why national defense is not entrusted to India's elected representatives.
Japan's quarrel is not with India. She is warring against the British Empire. India's participation in the war has not been with the consent of the representatives of the Indian people. It was purely a British act. If India were freed, her first step would probably be to negotiate with Japan.
The Congress is of the opinion that if the British withdrew from India, India would be able to defend herself in the event of the Japanese, or any aggressor, attacking India.
The committee is, therefore, of the opinion that the British should withdraw from India. The plea that they should remain in India for the protection of the Indian princes is wholly untenable. It is an additional proof of their determination to maintain their hold over India. The princes need have no fear from an unarmed India.
The question of majority and minority is the creation of the British Government, and would disappear on their withdrawal.
For all these reasons, the committee appeals to Britain, for the sake of her own safety, for the sake of India's safety and for the cause of world peace, to let go her hold on India, even if she does not give up all her Asiatic and African possessions.
This committee desires to assure the Japanese Government and people that India bears no enmity, either toward Japan or toward any other nation. India only desires freedom from all alien domination. But in this fight for freedom the committee is of the opinion that India, while welcoming universal sympathy, does not stand in need of foreign military aid.
India will attain her freedom through her non-violent strength, and will retain it likewise. Therefore, the committee hopes that Japan will not have any designs on India. But if Japan attacks India, and Britain makes no response to its appeal, the committee will expect all those who look to the Congress for guidance to offer complete non-violent non-cooperation to the Japanese forces, and not to render any assistance to them. It is no part of the duty of those who are attacked to render any assistance to the attacker. It is their duty to offer complete non-cooperation.
It is not difficult to understand the simple principle of nonviolent non-cooperation:
First, we may not bend the knee to an aggressor, or obey any of his orders.
Second, we may not look to him for any favors nor fall to his bribes, but we may not bear him any malice nor wish him ill.
Third, if he wishes to take possession of our fields we will refuse to give them up, even if we have to die in an effort to resist him.
Fourth, if he is attacked by disease, or is dying of thirst and seeks our aid, we may not refuse it.
Fifth, in such places where British and Japanese forces are fighting, our non-cooperation will be fruitless and unnecessary.
At present, our non-cooperation with the British Government is limited. Were we to offer them complete non-cooperation when they are actually fighting, it would be tantamount to bringing our country deliberately into Japanese hands. Therefore, not to put any obstacle in the way of the British forces will often be the only way of demonstrating our non-cooperation with the Japanese.
Neither may we assist the British in any active manner. If we can judge from their recent attitude, the British Government do not need any help from us beyond our non-interference. They desire our help only as slaves.
It is not necessary for the committee to make a clear declaration in regard to a scorched-earth policy. If, in spite of our nonviolence, any part of the country falls into Japanese hands, we may not destroy our crops or water supply, etc., if only because it will be our endeavor to regain them. The destruction of war material is another matter, and may, under certain circumstances, be a military necessity. But it can never be the Congress policy to destroy what belongs, or is of use, to the masses.
Whilst non-cooperation against the Japanese forces will necessarily be limited to a comparatively small number, and must succeed if it is complete and genuine, true building up of swaraj [self-government] consists in the millions of India wholeheartedly working for a constructive program. Without it, the whole nation cannot rise from its age-long torpor.
Whether the British remain or not, it is our duty always to wipe out our unemployment, to bridge the gulf between the rich and the poor, to banish communal strife, to exorcise the demon of untouchability, to reform the Dacoits [armed bandits] and save the people from them. If scores of people do not take a living interest in this nation-building work, freedom must remain a dream and unattainable by either non-violence or violence.
Foreign soldiers: The committee is of the opinion that it is harmful to India's interests, and dangerous to the cause of India's freedom, to introduce foreign soldiers in India. It therefore appeals to the British Government to remove these foreign legions, and henceforth stop further introduction. It is a crying shame to bring foreign troops in, in spite of India's inexhaustible man power, and it is proof of the immorality that British imperialism is.
b) From the Quit India Resolution passed on August 7, 1940 as amended by Jawaharlal Nehru
.......... The possession of empire, instead of adding to the strength of the ruling Power, has become a burden and a curse. India, the classic land of modern imperialism has become the crux of the question, for by the freedom of India will Britain and the United Nations be judged, and the peoples of Asia and Africa be filled with hope and enthusiasm. The ending of British rule in this country is thus a vital and immediate issue on which depend the future of the war and the success of freedom and democracy. A free India will assure this success by throwing all her great resources in the struggle for freedom against the aggression of Nazism, Fascism and Imperialism. This will not only affect materially the fortunes of the war, but will bring all subject and oppressed humanity on the side of the United Nations and give these Nations whose ally India would be, the moral and spiritual leadership of the world. India in bondage will continue to be the symbol of British imperialism and the taint of that imperialism will affect the fortunes of all the United Nations.
........(The All-Indian Congress Committee) feels that it is no longer justified in holding the nation back from endeavouring to assert its will against an imperialist and authoritarian government which dominates over it and prevents it from functioning in its own interest and in the interest of humanity. The Committee resolves, therefore, to sanction for the vindication of India’s inalienable right to freedom and independence, the starting of a mass struggle on non-violent lines on the widest possible scale so that the country might utilise all the non-violent strength it has gathered during the last twenty-two years of peaceful struggle.. Such a struggle must inevitably be under the leadership of Gandhiji and the Committee request him to take the lead and guide the nation in the steps to be taken.
.......Lastly the All-India Congress Commitee ... wishes to make it quite clear to all concerned that by embarking on mass struggle it has no intention of gaining power for the Congress. The power, when it comes, will belong to the whole people of India.
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(Pattabhi Sitaramayya, The History of the Indian National Congress, Vol.II , 1935-1947 (Bombay, 1947), p. 343 f.)
( विजय शंकर सिंह )
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