Monday, 12 August 2019

अनुच्छेद 370 के संशोधन के बाद जम्मूकश्मीर - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 के संशोधित और 35 ए के प्राविधानों के समाप्त हुये एक सप्ताह से अधिक समय बीत चुका हैं। जम्मूकश्मीर में सुरक्षा प्रबंध बहुत कड़े हैं। धारा 144 के अंतर्गत निषेधाज्ञा लगी हुयी है और कर्फ्यू भी अधिक संवेदनशील स्थानों पर कहीं कहीं लगा हुआ है। नेट, मोबाइल, फोन बंद हैं। अखबार छप नही रहे हैं। कश्मीर के आईजी का बयान आया है कि पिछले 6 दिन में एक भी गोली नहीं चली। आईजी साहब के बयान का स्वागत है। गोली चलना और चलाना दोनो ही अच्छी बात नहीं है। खबरों की दुनिया खामोश है। पर खबरें और पानी कभी रुकते नहीं है, यह एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र का कहना है।  वह रिसता रहता है। अच्छा प्लम्बर और अच्छा सेंसर ही उसे लीक होने से रोक सकता है। पर पानी भले ही रुक जाय, लेकिन खबरें तो कभी न कभी या कहीं न कहीं से रिस कर बाहर आ ही जाती है।

जम्मूकश्मीर में भारतीय मीडिया तो है ही, पर विदेशी मीडिया विशेषकर, अल जज़ीरा, बीबीसी आदि भी हैं। बीबीसी की साख पहले से ही अच्छी है, विशेषकर जब मीडिया पर प्रतिबंध हों तब। अल जज़ीरा अब लोकप्रिय हुआ है। इन विदेशी मीडिया के अनुसार शुक्रवार को नमाज़ के बाद भीड़ उत्तेजित होकर सड़कों पर आयी। पुलिस ने बल प्रयोग किया। बल प्रयोग में लाठी से गोली तक आती है। इन समाचार सूत्रों के अनुसार कुछ लोग घायल हुये और अस्पताल भेजे गए। हमारी मीडिया ने इस खबर को नहीं बताया। कुछ ने कहा यह अफवाह है और कुछ ने कहा खबरों की आवारगी। मनुष्य का स्वभाव ही कुछ न कुछ जानने का होता है। वह एक ही खबर को अलग अलग सूत्रों से पूछ कर सुनना चाहता है। उसे जो खबर अच्छी लगती है वह उसी रूप में उसे ग्रहण करना चाहता है। खबरों का यह स्वरूचि ग्रहण कार्य एक मानवीय स्वभाव है।

प्रशासन में कोई भी निर्णय जब लिया जाता है तब उसे कानूनी या गैर कानूनी तो कहा जा सकता है पर वह निर्णय उचित था या अनुचित इसका निर्णय उस निर्णय के परिणाम पर निर्भर करता है, जिसे बाद में इतिहास, उपलब्धि या ब्लंडर कह के पुकारता है। अनुच्छेद 370 में संशोधन किया गया है और जम्मूकश्मीर राज्य को दो भागों में बांट कर यूनियन टेरिटरी बना दिया गया है। अब यह फैसला कितना उचित और अनुचित होगा इसका आकलन अभी नहीं किया जा सकता है। समय के साथ साथ जब इन निर्णयों के सकारात्मक परिणाम मिलने लगेंगे तभी इस फैसले की उचित समीक्षा संभव होगी। फिलहाल इस निष्कर्ष पर पहुंच जाना कि यह एक मास्टरस्ट्रोक है, जल्दबाजी होगी। मास्टरस्ट्रोक भी तभी मास्टरस्ट्रोक होता है, जब गेंद बाउंड्री पार कर जाय, अन्यथा गेंद के बाउंड्री पर ही लपक लिये जाने का खतरा बना रहता है।

अनु 370 और धारा 35 A हटने और केंद्र शासित राज्य बनने के बाद यह उम्मीद की जानी चाहिए कि, अब सत्तर साल से बनी हुई कश्मीर समस्या  हल हो जाएगी। अब अनुच्छेद 370 के संशोधित हो जाने से आतंकी घटनाओं में कमी आनी शुरू हो जाएगी। सरकार ने इस साहसिक कदम का जो सबसे बड़ा उद्देश्य बताया है वह है जम्मूकश्मीर में आतंकवाद का खात्मा। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि, आतंकवाद जम्मूकश्मीर के लिये नासूर बन गया है। 1990 से लेकर अब तक हज़ारो नागरिक मारे जा चुके हैं और सैकड़ो जवान शहीद हो चुके हैं। अब अगर आतंकवाद का नासूर सरकार के इस कदम से ठीक हो जाता है तो यह एक बड़ी और ऐतिहासिक उपलब्धि  होगी। पीएम ने अपने भाषण में इस कदम को राज्य के विकास के लिये उपयोगी बताया है। विकास की योजनाओं के सुचारू रूप से क्रियान्वयन के लिये जरूरी है कि कानून व्यवस्था बनी रहे और आतंकवाद का खात्मा हो।

इस फैसले की जो प्रतिक्रिया हुयी है वह पूरे देश मे स्पष्ट रूप से अलग अलग विभाजित है।शेष देश मे तो जश्न का माहौल है, पर जम्मूकश्मीर में सन्नाटा है। सड़कों पर  सुरक्षा बल के बूटों की धमक है और गलियों में खामोशी है। बंटी हुई खुशी एक त्रासदी की तरह होती है। जो खुश है, उसे इस निर्णय से कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं है और जो इस खुशी का इजहार न कर पाते हुए घरों में कैद है, यह फैसला उसके लिये कितना उचित है यह वह बता भी नहीं पा रहा है। जैसा मैं पहले ही कह चुका हूं, जिनके लिये यह निर्णय किया गया है, उसकी खुशी ही इस फैसले की सफलता पर मुहर लगाएगी अन्यथा यह फैसला थोपा हुआ फैसला ही माना जायेगा।

कश्मीरी युवकों को भी इस जश्न में शामिल करना होगा। अगर यह फैसला उचित है और इससे उनकी तकदीर बदल रही है, उनके यहां विकास को गति मिलेगी, तो उन्हें भी इस उत्सव में भागीदार बनाना होगा।  थोपी हुयी शांति डराती है। उन्हें यह एहसास दिलाना होगा कि अब उन्हें उस डर से निजात मिली है। वे शेष भारत के साथ समय प्रवाह के यात्री बन चुके हैं। उन्हें भी सत्तर साल बाद मिली आज़ादी के इस मुक्त पवन में झूमने देना चाहिये। जब कश्मीर में सुरक्षा प्रबंध सामान्य हों और कश्मीरी युवा सरकार के इन कदमो के सनर्थन में उठ खड़े हों तो तभी इन कदमों की सार्थकता होगी । फिलहाल तो कश्मीर में अंधेरा है और शेष देश मे दीवाली और जश्न का माहौल है। उत्सव और खामोशी का यह अलगाव ही कश्मीर समस्या की प्रतीकात्मकता है।

अभी वहां भारी सुरक्षा बल और सेना का बंदोबस्त है। इतनी अधिक सुरक्षा बराबर नहीं रह सकती है । यह धीरे धीरे कम होगी। कब से कम होगी यह तो वहां के हालात पर निर्भर करता है। जब सुरक्षा बल सामान्यता की ओर लौटेंगे तभी यह कहा जा सकेगा कि इस क़दम का आतंकवाद और कानून व्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा।

संविधान के जानकार सरकार के इस कदम को कानूनी नज़रिए से देख रहे हैं। संविधान में कोई भी संशोधन, जो उसके मूल ढांचे को भंग नहीं करता हो, करने का अधिकार संसद को है। इस संशोधन को कैसे किया जाय, इसकी प्रक्रिया भी संविधान में दी गई है, और अब तक डेढ़ सौ से अधिक संशोधन किये भी जा चुके हैं। अब 370 और 35 A के खत्म करने की प्रक्रिया क्या संविधान में प्रदत्त संविधान संशोधन की प्रक्रिया के अनुसार है या नहीं यह भी कानून के जानकारों के बीच चर्चा का विंदु है।

हर कानून की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। यहां तक कि शेड्यूल नौ में भी जो विषय हैं, उनकी भी न्यायिक समीक्षा हो सकती है, ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में खुद ही कहा है। इस पुनर्गठन संशोधन बिल 2019 के सम्बंध में कुछ याचिकाएं भी सुप्रीम कोर्ट में डाली गयीं है। इसमे महत्वपूर्ण याचिका नेशनल कांफ्रेंस की है। अभी उस पर सुनवायी होनी है। अदालत का क्या रुख रहेगा, यह देखना दिलचस्प होगा। इन याचिकाओं की कानूनी समीक्षा होगी, तभी हम जान सकेंगे कि यह कार्यवाही संवैधानिक मान्यताओं के विपरीत है या अनुसार।

फिलहाल, संविधान विशेषज्ञ  सुभाष कश्यप के अनुसार,
" प्रस्ताव में अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से नहीं हटाया गया है. उनका कहना है कि अनुच्छेद 370 तीन भागों में बंटा हुआ है. जम्मू-कश्मीर के बारे में अस्थाई प्रावधान है जिसको या तो बदला जा सकता है या फिर हटाया जा सकता है. अमित शाह के बयान के मुताबिक 370(1) बाकायदा कायम है सिर्फ 370 (2) और (3) को हटाया गया है. 370(1) में प्रावधान के मुताबिक जम्मू और कश्मीर की सरकार से सलाह करके राष्ट्रपति आदेश द्वारा संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू और कश्मीर पर लागू कर सकते हैं. 370(3) में प्रावधान था कि 370 को बदलने के लिए जम्मू और कश्मीर संविधान सभा की सहमति चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 35A के बारे में यह तय नहीं है कि वह खुद खत्म हो जाएगा या फिर उसके लिए संशोधन करना पड़ेगा.

संसद को नए राज्य बनाने, पुराने राज्य तोड़ने, या केंद शासित राज्य बनाने और केंद्र शासित राज्य को पूर्ण राज्य बनाने का अधिकार है, पर यह सब एक विधिक प्रक्रिया के अनुसार जो संविधान में दिया गया है के अनुसार ही किया जा सकता है। राज्यपाल, सरकार तो है पर वह जनता का प्रतिनिधि नहीं है। वह केंद्र का प्रतिनिधि है। राज्यपाल ने ही 35 A के मामले में जिसकी सुनवायी सुप्रीम कोर्ट में चल रही है यह कहा है कि, चुनी हुयी सरकार ही इसे हटाने या बनाये रखने के बारे में कोई निर्णय ले सकती है।  जम्मू कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के मामले में संविधान के निर्धारित प्रक्रिया की अनदेखी की गयी है, ऐसा संविधान के जानकारों का कहना है। पर इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट करेगा, क्योंकि इसके खिलाफ कई याचिकायें अदालत में दायर हो गयी हैं।

विशेष दर्जा, नागरिकता का मुद्दा और कश्मीर में आतंकवाद, तीनों मुद्दे अलग अलग होते हुये भी एक दूसरे से जुड़े हुये हैं। अनुच्छेद 370 आंशिक संशोधित और  35 A तो अब खत्म ही हो गयी है साथ ही, राज्य का स्वरूप भी बदल गया है। अब देखना है कि आतंकवाद पर इस बदलाव का क्या असर पड़ता है। हालांकि इस अनुच्छेद के प्रभावी होते हुये भी लगभग सभी केंद्रीय कानून जम्मूकश्मीर में लागू थे। सेना को कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिये असाधारण अधिकार देने वाला, अफप्सा कानून भी लागू था। केंद्रीय बलों की आवश्यकतानुसार तैनाती भी किसी प्राविधान से बाधक नहीं थी । अखिल भारतीय सेवाएं भी जैसे अन्य राज्यों में हैं वैसी ही यहां पर भी लागू हैं। फिर 370 के संशोधित हो जाने पर कौन सी नयी शक्तियां सरकार को मिल जाएंगी यह जब नयी शक्तियां मिलें तभी पता चल सकेगा। यह कहा जा सकता है कि यूनियन टेरिटरी के बाद कानून व्यवस्था सीधे केंद्र के अधीन आ जायेगी। इससे एक दिक्कत यह भी होगी कि अब राज्य में कुछ भी होने पर केंद्र सरकार पर अंगुलियां उठेगी। पहले राज्य एक शॉक एब्जॉर्बर के रूप में होता था। यह स्थिति प्रशासनिक दृष्टि से उचित भी होती है। जम्मूकश्मीर की कानून व्यवस्था में त्वरित सुधार हो जाएगा, यह उम्मीद पाल लेना अभी अतिआशावादी सोच होगी।

जम्मूकश्मीर का आतंकवाद, मूलरूप से सीमापार का आतंकवाद है। यह द्विराष्ट्रवाद के अवशेष का आतंकवाद है। यह पाकिस्तान के एक अधूरे एजेंडे के येनकेनप्रकारेण पूरा करने का आतंकवाद है। यह पाकिस्तानी सेना के ज़िद और उसकी पराजित मानसिकता के प्रतिशोध से उपजा आतंकवाद है। यह धर्मांधता और कट्टरपंथी सोच का आतंकवाद है। यह धर्म को हिंसा के बल पर फैलाने की ज़िद से पैदा हुआ आतंकवाद है। निश्चित रूप से जम्मूकश्मीर राज्य में इन आतंकवादियों के साथ सहानुभूति रखने वाले स्लीपर सेल और मुखर लोग कुछ होंगे पर उनकी संख्या कम ही होगी। यह मान बैठना कि पूरी की पूरी घाटी ही आतंकवाद के साथ है न केवल गलत होगा बल्कि उस पूरी जनसंख्या के प्रति अविश्वास करना होगा, जो 1947 के बाद भारत पाक के बीच हुए हर युद्ध मे भारत के साथ डट कर खड़ी रही है। यह जम्मूकश्मीर के उन नागरिकों के विश्वास को तोड़ना होगा जिन्होंने मुस्लिम होते हुये भी एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के साथ आना स्वीकार किया और धर्म ही राष्ट्र है के सिद्धांत को सिंधु में बहा दिया। एक बात प्रोफेशनल पुलिसजन होने के नाते स्पष्ट कर दूं कि आतंकवाद हो या अराजक सामूहिक अपराध की स्थिति, जब तक स्थानीय जनता का साथ और सक्रिय सहयोग, सरकार और सुरक्षा बलों को नहीं मिलेगा तब तक आतंकवाद खत्म किया ही नहीं जा सकता है। बल से उसे दबाये भले ही रखा जाय, पर जैसे ही बल कम होगा तो जो प्रतिक्रिया होगी वह पिछली सारी उपलब्धियों को बहा ले जायेगी।

आज 12 जुलाई को देशभर में ईदुलजुहा का पर्व मनाया जा रहा है। जम्मूकश्मीर में वहां की स्थिति को देखते हुये सुरक्षा प्रबंध कड़े हैं। खबरें भी कम आ रही हैं। जब अनुच्छेद 370 का प्राविधान संविधान में जोड़ा गया था तभी जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि यह प्राविधान अस्थायी रहेगा, और समय के साथ खुद ही विलीन हो जाएगा।  हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्थायी कहा है। धीरे धीरे इसी प्राविधान से जम्मू कश्मीर अधिकतर मामलों में अन्य राज्यो के समकक्ष आ गया। यह बस एक मनोवैज्ञानिक विशेष दर्जा कि हम अन्य राज्यो से अलग हैं, बन कर रह गया। अब जब यह मनोवैज्ञानिक बैरियर टूटा है तो इसकी प्रतिक्रिया होगी ही । जम्मूकश्मीर को यह एहसास दिलाने की ज़रूरत है कि यह कदम उनके मनोवैज्ञानिक अलगाव से दूर करके देश की मुख्य धारा में लाने के लिये है। वहां की जनता जिस मनःस्थिति में इस समय है उसमें पूरी की पूरी आबादी को ही आतंकी और देशद्रोही कह देना, जैसा कि खुद को सत्ता के समर्थक कहने वाले सायबर लफंगे सोशल मीडिया में खुल कर कह रहे हैं और कश्मीर को लेकर कुछ बड़े नेताओं के भी कुछ अभद्र बयान जैसे आ रहे थे, उससे यह मनोवैज्ञानिक बैरियर टूटेगा नहीं बल्कि और मजबूत होगा। इस बात को सरकार भी समझ रही है और इस बात को सभी राजनीतिक दलों और जिम्मेदार लोगों को भी समझना होगा। फिलहाल जम्मूकश्मीर जिस मनोव्यथा से गुज़र रहा है उसे बेहद अपनापन लिये हुये उपायों से ही सामान्य किया जा सकता है। अभी इस कदम को सफल कहना जल्दीबाजी होगी। अभी पहाड़ों पर बर्फ नहीं पड़ी है।

© विजय शंकर सिंह

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