पूर्वोत्तर राज्यों के जनजातीय समुदायों के नेताओं ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल का विरोध किया है। क्षेत्रीय नेताओं में पूर्वोत्तर राज्यों को अनुच्छेद 371 के तहत मिलने वाले विशेष दर्जे को लेकर चिंता शुरू हो गई हैं। त्रिपुरा की बीजेपी सरकार में सहयोगी आईपीएफटी के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतर कर बिल के विरोध में प्रदर्शन किया। असम को छोडकर त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल राज्यों में विभिन्न जनजातीय समुदायों के नेता बिल के विरोध में बयान दे रहे हैं। बता दें कि पूर्वोत्तर राज्यों को भी कई विशेषाधिकार मिले हैं।
● आर्टिकल 371A
संविधान के इस प्रावधान से ऐसे किसी भी व्यक्ति को नागालैंड में जमीन खरीदने की इजाजत नहीं है जो वहां का स्थायी नागरिक नहीं हो। यहां जमीनें सिर्फ राज्य के आदिवासी ही खरीद सकते हैं।
● आर्टिकल 371F
भारतीय संघ में सबसे आखिर में साल 1975 में शामिल हुए सिक्कम को भी संविधान में कई अधिकार हैं। आर्टिकल 371F ने राज्य सरकार को पूरे राज्य की जमीन का अधिकार दिया है, चाहे वह जमीन भारत में विलय से पहले किसी की निजी जमीन ही क्यों न रही हो। दिलचस्प बात यह है कि इसी प्रावधान से सिक्कम की विधानसभा चार साल की रखी गई है जबकि इसका उल्लंघन साफ देखने को मिलता है। यहां हर 5 साल में ही चुनाव होते हैं। यही नहीं, आर्टिकल 371F में यह भी कहा गया है, 'किसी भी विवाद या किसी दूसरे मामले में जो सिक्किम से जुड़े किसी समझौते, एन्गेजमेंट, ट्रीटी या ऐसे किसी इन्स्ट्रुमेंट के कारण पैदा हुआ हो, उसमें न ही सुप्रीम कोर्ट और न किसी और कोर्ट का अधिकारक्षेत्र होगा।' हालांकि, जरूरत पड़ने पर राष्ट्रपति के दखल की इजाजत है।
● आर्टिकल 371G
इस आर्टिकल के तहत मिजोरम में भी सिर्फ वहां के आदिवासी ही जमीन के मालिक हो सकते हैं। हालांकि, यहां प्राइवेट सेक्टर के उद्योग खोलने के लिए राज्य सरकार मिजोरम (भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन और पुनर्स्थापन) ऐक्ट 2016 के तहत भूमि अधिग्रहण कर सकती है। आर्टिकल 371A और 371G के तहत संसद के आदिवासी धार्मिक कानूनों, रिवाजों और न्याय व्यवस्था में दखल देने वाले कानून लागू करने के अधिकार सीमित हैं।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर पहला ऐसा राज्य नहीं है जिसे विशेष राज्य का दर्जा हासिल है। देश के करीब 11 राज्यों में ऐसी ही धारा लागू है जो केंद्र सरकार को विशेष ताकत देती है। ये धारा 371 है। इस धारा की बदौलत केंद्र सरकार उस राज्य में विकास, सुरक्षा, सरंक्षा आदि से संबंधित काम कर सकती है। आइए बताते हैं कि ये धारा देश के किन राज्यों में अभी भी लागू है-
● महाराष्ट्र/गुजरात (आर्टिकल 371)
महाराष्ट्र और गुजरात, दोनों राज्यों के राज्यपाल को आर्टिकल-371 के तहत ये विशेष जिम्मेदारी है कि वे महाराष्ट्र के विदर्भ, मराठवाड़ा और गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ के अलग विकास बोर्ड बना सकते हैं। इन इलाकों में विकास कार्य के लिए बराबर फंड दिया जाएगा।टेक्निकल एजुकेशन, वोकेशनल ट्रेनिंग और रोजगार के लिए उपयुक्त कार्यक्रमों के लिए भी राज्यपाल विशेष व्यवस्था कर सकते हैं।
● कर्नाटक (आर्टिकल 371जे, 98वां संशोधन एक्ट-2012)
हैदराबाद और कर्नाटक क्षेत्र में अलग विकास बोर्ड बनाने का प्रावधान है। इनकी सालाना रिपोर्ट विधानसभा में पेश की जाती है। क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए अलग से फंड मिलता है लेकिन बराबर हिस्सों में। सरकारी नौकरियों में इस क्षेत्र के लोगों को बराबर हिस्सेदारी मिलती है। इसके तहत राज्य सरकार के शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में हैदराबाद और कर्नाटक में जन्मे लोगों को तय सीमा के तहत आरक्षण भी मिलता है।
● आंध्र प्रदेश और तेलंगाना (371डी, 32वां संशोधन एक्ट-1973)
इन राज्यों के लिए राष्ट्रपति के पास यह अधिकार होता है कि वह राज्य सरकार को आदेश दे कि किस जॉब में किस वर्ग के लोगों को नौकरी दी जा सकती है। इसी तरह शिक्षण संस्थानों में भी राज्य के लोगों को बराबर हिस्सेदारी या आरक्षण मिलता है। राष्ट्रपति नागरिक सेवाओं से जुड़े पदों पर नियुक्ति से संबंधित मामलों को निपटाने के लिए हाईकोर्ट से अलग ट्रिब्यूनल बना सकते हैं।
● मणिपुर (371सी- 27वां संशोधन एक्ट-1971)
राष्ट्रपति चाहे तो राज्य के राज्यपाल को विशेष जिम्मेदारी देकर चुने गए प्रतिनिधियों की कमेटी बनवा सकते हैं। ये कमेटी राज्य के विकास संबंधी कार्यों की निगरानी करेगी। राज्यपाल सालाना इसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपते हैं।
● मिजोरम (371जी-53वां संशोधन एक्ट-1986)
जमीन के मालिकाना हक को लेकर मिजो समुदाय के पारंपरिक प्रथाओं, शासकीय, नागरिक और आपराधिक न्याय संबंधी नियमों को भारत सरकार का संसद बदल नहीं सकता। केंद्र सरकार इस पर तभी फैसला ले सकती है जब राज्य की विधानसभा कोई संकल्प या कानून न लेकर आए।
● नगालैंड (371ए - 13वां संशोधन एक्ट- 1962)
जमीन के मालिकाना हक को लेकर नगा समुदाय के पारंपरिक प्रथाओं, शासकीय, नागरिक और आपराधिक न्याय संबंधी नियमों को संसद बदल नहीं सकता। केंद्र सरकार इस पर तभी फैसला ले सकती है जब राज्य की विधानसभा कोई संकल्प या कानून न लेकर आए। ये कानून तब बनाया गया जब भारत सरकार और नगा लोगों के बीच 1960 में 16 बिंदुओं पर समझौता हुआ।
● अरुणाचल प्रदेश (371एच- 55वां संशोधन एक्ट- 1986)
राज्यपाल को राज्य के कानून और सुरक्षा को लेकर विशेष अधिकार मिलते हैं। वह मंत्रियों के परिषद से चर्चा करके अपने फैसले को लागू करा सकते हैं। लेकिन इस चर्चा के दौरान मंत्रियों का परिषद राज्यपाल के फैसले पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। राज्यपाल का फैसला ही अंतिम फैसला होगा।
● असम (371बी - 22वां संशोधन एक्ट- 1969)
राष्ट्रपति राज्य के आदिवासी इलाकों से चुनकर आए विधानसभा के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बना सकते हैं। यह कमेटी राज्य के विकास संबंधी कार्यों की विवेचना करके राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौपेंगे।
● सिक्किम (371एफ-36वां संशोधन एक्ट -1975)
राज्य के विधानसभा के प्रतिनिधि मिलकर एक ऐसा प्रतिनिधि चुन सकते हैं जो राज्य के विभिन्न वर्गों के लोगों के अधिकारों और रुचियों का ख्याल रखेंगे। संसद विधानसभा में कुछ सीटें तय कर सकता है, जिसमें विभिन्न वर्गों के ही लोग चुनकर आएंगे। राज्यपाल के पास विशेष अधिकार होते हैं जिसके तहत वे सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए बराबर व्यवस्थाएं किए जा सकें। साथ ही राज्य के विभिन्न वर्गों के विकास के लिए प्रयास करेंगे। राज्यपाल के फैसले पर किसी भी कोर्ट में अपील नहीं की जा सकेगी।
( साभार पंकज चतुर्वेदी )
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