आर्थिक मंदी पर हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस में दो खबरें छपी हैं। दोनों ही खबरें, सरकार के पक्ष की हैं। एक मे आरबीआई के गवर्नर शशिकांत दास का बयान है दूसरे में नीति आयोग के सीईओ राजीव कुमार का है।
आरबीआई के गवर्नर के बयान वाली खबर में, उन्होंने अंग्रेजी के एक जटिल शब्द का प्रयोग किया है, जो अक्सर बहुत ही कम लोग प्रयोग करते हैं। तीस अक्षरों वाले शब्द को मैं यहां लिख रहा हूँ, गौर से पढियेगा।FLOCCINAUCINIHILIPILIFICATION. इसे उच्चरित कैसे किया जाय, आप सब प्रयास करें। मैं इसके उच्चारण करने की कोशिश कर चुका हूं।
हिंदी में इस शब्द का अर्थ क्या है यह मुझे नहीं पता है। हालांकि मैंने फादर कामिल बुल्के की अंग्रेजी हिंदी शब्दकोश जो मेरे पास ही है, में इसका अर्थ बहुत ढूंढा पर वहां जो संस्करण मेरे पास है, उज़मे नहीं मिला। इस शब्द प्रयोग अपने बयान में, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया आरबीआई के गवर्नर शशिकांत दास ने किया है। वे आर्थिक मंदी और आरबीआई की मौद्रिक नीति पर चर्चा कर रहे थे। उनके इस शब्द का अर्थ इंडियन एक्सप्रेस ने ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी से यह बताया है, The action of estimating something as worthless, यानी, किसी अनुपयोगी वस्तु के बारे में उसके मूल्यांकन का प्रयास करना। आप सब इसे अपनी अपनी समझ से पढ़ सकते हैं और अपने निष्कर्ष निकाल सकते हैं।
आज की अर्थव्यवस्था की स्थिति भी इसी जटिल शब्द की तरह अबूझ और दार्शनिक हो गयी है। किसानों से लेकर बड़े कॉरपोरेट तक का भरोसा आर्थिक स्थिति पर से डगमगा गया है ऐसा क्यों हो रहा है, यह न तो सरकार को समझ मे आ रहा है न नीति आयोग को, न आरएसएस के थिंक टैंक को औऱ आरबीआई को तो शायद और भी समझ में नहीं आ रहा है।
आरबीआई रेपो रेट घटा रहा है, उद्योगपति एक लाख करोड़ के पैकेज मांग रहे हैं, सरकार अपनी कम्पनियां बेचने पर आमादा है, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, औद्योगिक उत्पादन गिर रहा है, जनता का मन आर्थिक समस्याओं की ओर न जाय यह काम मीडिया के जिम्मे है ही।
दूसरी खबर भी इंडियन एक्सप्रेस अखबार से ही है, जो नीति आयोग के सीईओ राजीव कुमार का एक बयान के संदर्भ में है । राजीव कुमार देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति पर कहते हैं,
"पिछले 70 सालों में किसी ने ऐसी परिस्थिति नहीं देखी जहाँ सारा वित्तीय क्षेत्र उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है और निजी क्षेत्र में कोई भी दूसरे पर भरोसा नहीं कर रहा है. कोई भी किसी को कर्ज़ देने को तैयार नहीं है, सब नकद दाबकर बैठे हैं"
वे आगे कहते हैं,
"उन्होंने कहा, "नोटबंदी, जीएसटी और आईबीसी (दीवालिया क़ानून) के बाद हर चीज़ बदल गई है. पहले 35 फ़ीसदी नक़दी उपलब्ध होती थी, वो अब काफ़ी कम हो गया है. इन सभी कारणों से स्थिति काफ़ी जटिल हो गई है."
नीति आयोग के सीईओ का यह बयान भविष्य के जिस अशनि संकेत की ओर हमे ले जा रहा है, उस की गंभीरता को अब समझा जा सकता है।
नीति आयोग और आरबीआई देश की प्रमुख वित्तीय संस्थान हैं। आरबीआई का गठन 1 अप्रैल 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट द्वारा एक केंद्रीय और स्वायत्त बैंक के रूप में किया गया है। यह बैंक मौद्रिक नीति के संबंध में स्वायत्त है और कितनी मुद्रा किस किस राशि की यह तय करता है।
डॉ बीआर आंबेडकर ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में अहम भूमिका निभाई हैं, तथा उनके द्वारा ड्राफ्ट किये गए दिशा-निर्देशों या निर्देशक सिद्धांत के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक जी मूल नीति बनाई गई है। डॉ आंबेडकर ने हिल्टन यंग कमीशनके सामने एक केंद्रीय बैंक का प्रस्ताव रखा था, जब 1926 में यह कमीशन भारत में रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फिनांस के नाम से आया था । तब इसके सभी सदस्यों ने डॉ आंबेडकर द्वारा लिखी गयी पुस्तक, द प्राब्लम ऑफ द रुपी - इट्स ओरीजन एंड इट्स सोल्यूशन (रुपया की समस्या - इसके मूल और इसके समाधान) की जोरदार वकालात की, उस पुस्तक में दिये गए सिद्धांतो की पुष्टि भी की। तब की विधानसभा (लेसिजलेटिव असेम्बली) ने इसे कानून का रूप देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 का नाम दिया गया। प्रारम्भ में इसका केन्द्रीय कार्यालय कलकत्ता में था जो सन 1937 में बंबई में आ गया। पहले यह एक निजी बैंक था किन्तु सन १९४९ से यह भारत सरकार का उपक्रम बन गया है।
नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) भारत सरकार द्वारा गठित एक नया संस्थान है जिसे योजना आयोग के स्थान पर बनाया गया है। 1 जनवरी 2015 को इस नए संस्थान के सम्बन्ध में जानकारी देने वाला मंत्रिमंडल का प्रस्ताव जारी किया गया। यह संस्थान सरकार के थिंक टैंक के रूप में सेवाएं प्रदान करेगा और उसे निर्देशात्मक एवं नीतिगत गतिशीलता प्रदान करेगा। नीति आयोग, केन्द्र और राज्य स्तरों पर सरकार को नीति के प्रमुख कारकों के संबंध में प्रासंगिक महत्वपूर्ण एवं तकनीकी परामर्श उपलब्ध कराएगा। इसमें आर्थिक मोर्चे पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आयात, देश के भीतर, साथ ही साथ अन्य देशों की बेहतरीन पद्धतियों का प्रसार नए नीतिगत विचारों का समावेश और विशिष्ट विषयों पर आधारित समर्थन से संबंधित मामले शामिल होंगे। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अर्थात सीईओ कहलाते हैं। जब योजना आयोग था तो उसके प्रमुख उपाध्यक्ष कहलाते थे। प्रधानमंत्री पदेंन अध्यक्ष होते थे। योजना आयोग की अवधारणा, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की थी, जो उन्होंने तब बनाया था जब वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष थे।
इस प्रकार यह दोनों ही महत्वपूर्ण संस्थान, देश की आर्थिक दशा और दिशा तय करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। देश की अर्थव्यवस्था पर दोनों का इंडियन एक्सप्रेस में छपा बयान अर्थव्यवस्था के बारे में चिंताजनक बयान ही कहा जायेगा।
फिलहाल, तो वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने सभी उद्योगपतियों को कहा है कि वे पैनिक न फैलाएं और कितनी नौकरियां कम हुयी हैं उसका सही सही आंकड़ा सरकार को भेजें। पहले भी सरकार ने किरण मजूमदार शॉ और कुछ अन्य को सार्वजनिक रूप से अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक टिप्पणी न करने के लिये संदेश भिजवाया था। पर इंफोसिस के नारायणमूर्ति, मोहनदास पई, राहुल बजाज, लार्सन एंड टुब्रो के सीईओ के द्वारा अर्थव्यवस्था के संदर्भ में नकारात्मक टिप्पणी करने के बाद आरबीआई के गवर्नर ने अठारहवीं सदी का ईजाद किया हुआ एक भारीभरकम शब्द से और नीति आयोग ने सरल शब्दों के माध्यम से, वर्तमान आर्थिक स्थिति का संकेत तो दे ही दिया है।
© विजय शंकर सिंह
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