Thursday, 8 August 2019

8 नवम्बर 2019, रात 8 बजे - प्रधानमंत्री जी का भाषण / विजय शंकर सिंह

आज 8 अगस्त, रात 8 बजे, प्रधानमंत्री जी द्वारा राष्ट्र को दिया गया संबोधन उनके हर भाषण की तरह ही उत्तम था। वे एक अच्छे वक्ता हैं। मन की बात हम तक खूबसूरती से पहुंचाते हैं। अपने भाषण में उन्होंने जम्मू कश्मीर और लदाख के विकास, वहां के युवाओं के भविष्य बदलने, उनको नए सपने संजोने और उसे पूरा करने की बात कही।

जम्मू कश्मीर पुलिस को केंद्रीय पुलिस के समान सुविधाएं और सेवा लाभ देने की बात की, अन्य सुरक्षा बल तथा सेना को भी उनका मनोबल बढ़े ऐसी बातें की। पुलिस, सुरक्षा बल और सेना के शहीद हुए जवानों को याद किया।  जेके, लदाख को पर्यटन के मानचित्र पर अहम स्थान दिलाने की बात की। सोलर ऊर्जा, हर्बल औषधि और जम्मू कश्मीर तथा लदाख की वनस्पतियों के विकास की बात की।

ईद के दिन सब सामान्य रहेगा यह भी कहा। यह भी कहा कि जैसे पहले विधानसभा थी, विधायक थे, मंत्रिमंडल था और मुख्यमंत्री थे, वह सब जस का तस रहेगा। शांति और विकास उनकी प्राथमिकता रहेगी। पाकिस्तान की चाल कभी सफल नहीं होगी और जम्मू कश्मीर के लिये यह एक नया समय होगा।

इस सुंदर और आशा भरे व्याख्यान में कश्मीरी पंडितों के वापसी के संबंध कोई उल्लेख नहीं है। वे हो सकता हो, इस नए बदलाव से वतन वापसी की बेहतर उम्मीद लगा रखे हों, और अपना ज़िक्र न होने के कारण, थोड़े निराश भी हों। हो सकता है अगले व्याख्यान मे उनके लिये कुछ ठोस योजनाएं हों । कुछ महत्वपूर्ण केंद्रीय कानून जो जम्मू कश्मीर में लागू नहीं है, जैसे, शिक्षा का अधिकार, न्यूनतम मजदूरी कानून, एससीएसटी एक्ट, आदि अब आसानी से लागू किये जा सकेंगे।

भाषण में कुछ तथ्यात्मक भूले भी हैं जो अक्सर पीएम के भाषणों में हो जाती हैं। जैसे
● अनुच्छेद 370 ने देश को अलगाव वाद और आतंकवाद के रास्ते पर धकेला है।
जबकि यह अनुच्छेद 370, सन 1957 से प्रभावी है और कश्मीर 1989 तक शांत था। आतंक का कारण पाकिस्तान तथा तालिबान आदि कट्टरपंथी तत्व हैं।

● यह भी कहना सही नहीं है कि इस अनु को किसी सरकार ने नहीं बदला, पर सत्यता यह है कि, अब तक लगभग 47 संवैधानिक संशोधन इस अनुच्छेद में विभिन्न सरकारों के कार्यकाल में किये जा चुके हैं।

● जम्मू-कश्मीर में भी भारत के अन्य प्रांतों के जैसे ही भूमि सुधार के कानून लागू हुए। बिग लैंडेड इस्टेट्स एबोलिशन एक्ट – 1950, इस कानून के जरिए वहां के बड़े जमींदारों/राजाओं की जमीन छीनी गयी। व्यापक स्तर पर चकबंदी आदि के लिए 1962 में कॉन्सोलिडेशन ऑफ होल्डिंग्स एक्ट-1962 बनाया गया। 

जनचौक वेबसाइट के अनुसार,

● भूमि सुधार की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कानून 1976 में बनाया गया जब वहां के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला थे। उन्होंने एग्रेरियन रिफार्म्स एक्ट-1976 बनाकर पूरे जम्मू-कश्मीर में भूमिहीनों का कायाकल्प कर दिया। हालांकि इससे पहले ही 1953 में यानी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा जेल में बंद किए जाने से पहले शेख अब्दुल्ला ने वहां व्यापक भूमि सुधार को साकार किया था। इस संबंध में पेनीसिलिविया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डेनियल थार्नर का एक लेख पढ़ा जा सकता है जो 12 सितंबर 1953 को ईपीडब्ल्यू में प्रकाशित किया गया था। ।

● प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि जम्मू-कश्मीर में दलितों के अधिकारों के लिये कुछ नहीं हुआ। लेकिन पीएमओ ने उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी कि  दी कंस्टीच्यूशन (जम्मू एंड कश्मीर) शेड्यूल्ड कास्ट आर्डर, 1956 पहले से प्रभावी है जो वहां के दलितों के अधिकारों को सुनिश्चित करता है। 

● आरक्षण के मामले में जम्मू-कश्मीर में जब अनुच्छेद 370 प्रभावी था तब भी वहां अनुसूचित जाति को 8 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 10 प्रतिशत, ओबीसी को 2 प्रतिशत आरक्षण था। हालांकि बेशक इसमें खामियां थीं और सुधार की गुंजाइश थी लेकिन यह कहना कि वहां आरक्षण था ही नहीं, बेबुनियाद है।

● जम्मू कश्मीर न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 पहले से लागू था। अभी हाल ही में इसी अधिनियम के तहत एक अधिसूचना 28 अक्टूबर 2017 को जारी किया गया। इसके मुताबिक अनस्किल्ड मजदूरों को प्रतिदिन 225 रुपए, स्किल्ड मजदूरों को  350 रुपए,  हाइली स्किल्ड मजदूरों को 400 रुपए प्रतिदिन और प्रशासनिक या लिपिकीय कार्य करने वाले मजदूरों को 325 रुपए प्रतिदिन दिया जाना तय किया गया।

● जम्मू-कश्मीर विधानसभा में एससी और एसटी के लिए आरक्षण नहीं है। लेकिन वहां आरक्षण भौगोलिक स्थितियों के अनुसार है।जम्मू-कश्मीर संविधान संशोधन, 1988 के बाद वहां कुल 111 सीटें थीं। इनमें से 24 सीटें रिक्त रहती थीं।  इनके रिक्त होने की वजह यह थी कि ये सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के हिस्से की थीं। यह सांकेतिक था कि पाक अधिकृत कश्मीर भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है और दावेदारी है। अब प्रधानमंत्री से यह सवाल तो बनता ही है कि केंद्र शासित राज्य बनने के बाद विधानसभा का जो स्वरूप होगा उसमें ये 24 सीटें रहेंगी या नहीं रहेंगी।

● जम्मू-कश्मीर विधानसभा (अनुच्छेद 370 के हिसाब से) देश की इकलौती विधानसभा रही जहां महिलाओं की समुचित भागीदारी के लिए विशेष प्रावधान राज्यपाल के पास होते थे। इसके मुताबिक राज्यपाल विधानसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी कम होने पर अपने स्तर से दो महिलाओं को विधानसभा में मनोनीत कर सकते थे।


अगर भविष्य में राज्य की स्थिति ठीक हुयी तो केंद्र शासित जम्मू कश्मीर को पुनः  राज्य के रूप में बहाल भी किया जा सकता है। ऐसा संकेत भी उन्होंने दिया। उनका भाषण सधा हुआ था। मैंने बहुत ध्यान से सुना पर जिन कश्मीरी भाइयों औऱ बहनों के लिए यह भाषण अधिक ज़रूरी और महत्वपूर्ण था, उन्होंने इसे सुना या नहीं सुना, यह मुझे नही पता।

आज के भाषण से एक बात यह समझ मे आ गयी कि, 2014 के बाद पूरे देश मे विकास तेज़ी से हो रहा था, बस जम्मू और कश्मीर ही इस अद्भुत विकास की गति से महरूम रहा। अब विकास तो पूरे देश का होना है तो, यह अभिन्न अंग कैसे छूट जाता। इसी लिये सरकार ने 370 हटा कर विकास का मार्ग खोला है। सरकार का यह तर्क तो जम रहा है।

अब सरकार को चाहिये कि 371 से जुड़े राज्यों को भी विकास की जद में लाया जाय। एक बात और सरकार को जहां जहां लगे कि विकास रुका है और नहीं हो रहा है, वहां वहां उतना हिस्सा काट कर यूनियन टेरिटरी बनाते चले, ताकि विकास न रुके। और हां, किसी से पूछने और राय लेने की भी ज़रूरत नहीं है, सरकार कभी कोई निर्णय गलत लेती ही नहीं, यह तो जनता समझ नहीं पाती है तो कुछ न कुछ बोलती, लिखती पढ़ती रहती है। अब जो हो चुका है, वह हो चुका है, अब सरकार अपने विकास के एजेंडे पर चले।

© विजय शंकर सिंह

1 comment:

  1. आपका लेख तथ्यों की सही पड़ताल पर आधारित न होकर स्वनिर्मित दंतकथाओं से प्रेरित ज्यादा लगता है। संक्षेप में यह बता दूं कि श्रीमती इंदिरा गांधी के कार्यकाल में जब श्रीनगर में खेले जा रहे एकदिवसीय क्रिकेट मैच में पूरा स्टेडियम पाकिस्तान के लहराते झंडों से पट गया था, तभी श्रीमती गांधी को यह आभास हो गया था कि कश्मीर हाथ से निकल गया है। इसलिए 1989 वाली बात आपकी तथ्य से परे है।
    शौचालय की सफाई हेतु राजा हरि सिंह और उनके पूर्वजों द्वारा बसाए गए तत्कालीन भंगी भाइयों की अद्यतन स्थिति का पहले आप स्वयं आकलन कर लें, फिर उसके आलोक में अनुसूचित जाति वाले अपने वक्तव्य की स्वयं समीक्षा कर लें।
    कश्मीर से संवंधित अधिकांश संविधान संशोधन वहां राज्यपाल शासन (राष्ट्रपति शासन नहीं) बढ़ाने से संबंधित हैं।
    आप पहले कश्मीर जा के एक सप्ताह रहें, फिर न्यूनतम मजदूरी पर अपनी टिप्पणी दें तो बेहतर रहेगा।
    हाँ, भूमि सुधार के मामले में वहां की स्थिति जरूर अच्छी है। लेकिन इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता के मामले में और उस पर आधारित जनसंख्या के मामले में भी कश्मीर उत्तर प्रदेश, बिहार एवम अन्य समतल प्रदेशों के सामने कहीं नहीं टिकता।
    सादर।

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