ग़ालिब - 111.
क्या ही रिजवाँ से लड़ाई होगी,
ग़र तेरा खुल्द में घर याद आया !!
Kyaa hee rizwaan se ladaai hogee,
Gar teraa khuld mein ghar yaad aayaa !!
- Ghalib
स्वर्ग में अगर तेरा घर याद आया तो क्या स्वर्ग से निकल कर तेरे घर जाने के लिये स्वर्ग के द्वारपाल से मैं लड़ाई झगड़ा करूँगा !
ग़ालिब स्वर्ग में भी चैन से नहीं रह पा रहे हैं। वैसे उन्हें स्वर्ग में जाने की चाहत भी नहीं थी। स्वर्ग के मज़ाक़ उड़ाते उनके कई शेर है। कभी कहते कि ऐसी जन्नत का क्या कीजे, जहां हज़्ज़ारा साल की हूरें हों, तो कभी स्वर्ग और नर्क दोनों की चारदीवारी तोड़ कर मिला देने की बात करते हैं। जिस बेचैनी के आलम से उन्हें, बांदा, लखनऊ, बनारस और फिर कंपनी बहादुर के दर पर फोर्ट विलियम तक की दौड़ करा दी, वह बेचैनी स्वर्ग के अनुपम लोक में भी उनकी हमसफ़र बनी हुयी है।
वे कहते हैं क्या स्वर्ग में भी रिजवाँ से झगड़ा होगा ? रिजवाँ का एक अर्थ है स्वर्ग के दरवाजे का द्वारपाल। स्वर्ग में भी उन्हें अपनी प्रेमिका से मिलने की तड़प बरकरार है। स्वर्ग में उनकी चिंता है कि अगर उनके मन मे प्रेमिका से मिलने की इच्छा जगी तो वे वहां से बाहर निकलेंगे कैसे और कैसे उससे मिलने जाएंगे ?.दरवाजे पर जो रिजवाँ तैनात है वह उन्हें बाहर जाने नहीं देगा और वे बाहर जाने की जिद किये बिना मानेंगे नहीं ! नतीजा तो झगड़ा ही है।
कहते हैं स्वर्ग में सारी कामनाओं का नाश हो जाता है। वहां पूर्ण संतुष्टि और परम आनंद है। पर यह संतोष और परम आनंद उन्हें वहां भी नसीब नहीं। ज़मीन पर तो हज़ारों ख्वाहिशें थी हीं, और हर ख्वाहिश पर उनका दम भी निकला, पर मर जाने के बाद भी उन इच्छाओं ने ग़ालिब का साथ नही छोड़ा। ग़ालिब के इस बेहद खूबसूरत शेर ने स्वर्ग के अपार सुख, अरिक्त संतोष और परम आनंद के थियरी को ध्वस्त कर दिया है। उनकी यह अंदाज़ के बयाँनी कमाल की है। वे इसी अंदाजे बयानी से स्वर्ग के अस्तित्व को भी नकार देते हैं।
अब जरा कबीर को भी इसी अंदाज में देखें,
उहाँ न दोजख भिस्त मोकामा
इहाँ ही राम, इहाँ रहमाना !!
यहां न तो स्वर्ग है और न नरक । यहीं पर राम है और यहीं पर रहीम भी। कबीर भी स्वर्ग या नर्क जैसी किसी लोक पर यकीन नहीं करते हैं। वे राम हो या रहीम, दोनों को यहीं मानते हैं ।
© विजय शंकर सिंह
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