चित्र: येल का विवादित चित्र जिसमें एक काले रंग की ग़ुलाम लड़की दिखती है। यह कहाँ से लायी गयी थी, यह किताबों में ‘अस्पष्ट’ है (और भारतीय मन में स्पष्ट)
दक्षिण अफ़्रीका के पूर्व राष्ट्रपति एफ. डब्ल्यू. डी क्लार्क ने अपनी जीवनी में लिखा है कि उनकी पूर्वज ग़ुलाम बना कर भारत से लायी गयी थी। इस प्रकरण का मैंने अपनी पुस्तक ‘कुली लाइंस’ में जिक्र किया है। सनद रहे, ये गिरमिटिया नहीं थे, ये ग़ुलाम थे। इन्हें बिना किसी कॉन्ट्रैक्ट के, जबरन और कुछ को जंजीरों में बाँध कर ले जाया गया था। हिंद महासागर में चल रहा यह ग़ुलाम व्यापार एक ऐसा सब-प्लॉट है, जिसे समझे बिना द्रविड़ राजनीतिक इतिहास तक पहुँचना कठिन है। ख़ास कर यह अंदाज़ा लगाना कि वे किस वर्ग के लोग थे, जिन्हें यूँ पशुओं की तरह जहाजों पर चढ़ा कर सुदूर अनजान द्वीपों और फिरंगी घरों में आजीवन ग़ुलाम बना कर ले जाया गया।
एक तरफ़ अंग्रेज़ों ने मद्रास शहर बसाना शुरू किया था, दूसरी तरफ़ विजयनगर साम्राज्य उजड़ रहा था। विजयनगर के महाराजा के सामंतों (नायकों) ने विद्रोह कर दिया था। उसी दौरान 1671 में एक 23 वर्ष के नवयुवक एलिहू येल मामूली मुनीम की नौकरी पर मद्रास पहुँचे।
नवनिर्मित फोर्ट सेंट जॉर्ज किले के इर्द-गिर्द जार्जटाउन नामक यूरोपीय बस्ती बस गयी थी, और शहर के दूसरे छोर पर कुछ झोपड़ियाँ उग आयी थी। उसे ‘ब्लैक टाउन’ कहा जाता, जहाँ फिरंगियों के तमिल सेवक रहते थे।
“हमारी कंपनी आखिर यहाँ कितना व्यवसाय कर लेगी? हमें क्या मिलेगा? इतने गरम प्रदेश में आने का भला क्या मतलब है?”, एलिहू ने खीज कर अपने एक मित्र से पूछा
“वहाँ पांडिचेरी में फ्रेंच कुंडली मार कर बैठे हैं, पुलिकट में डच। मैसूर से हमें लड़ना पड़ सकता है। औरंगज़ेब धमकियाँ देता रहता है। तुम्हें अब भी मतलब नहीं समझ आ रहा?”
“समझ तो आ रहा है। लेकिन, मुझे यहाँ के असभ्य लोग पसंद नहीं। काले भद्दे लोग। कुछ तो कपड़े भी नहीं पहनते।”
“ग़ुलाम को कपड़े पहना कर क्या करोगे?”, उनके मित्र ने हँस कर कहा
“तुम कुछ छुपा रहे हो”
“छुपाना क्या है? तुम्हें क्या लगता है? इनके फोर्ट गेल्ड्रिया में क्या होता है?”
“डच गुलाम बेचते हैं? फिर हम क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं? मेरा बस चले तो इन तमिलों को कोड़े मार कर जहाज पर ले जाऊँ”
“कर लेना मनमर्जी। वैसे भी तुम बड़े खतरनाक खेल रहे हो। सुना है तुम्हारा अपने वाइस-प्रेसिडेंट की बीवी कैथरीन से चक्कर है?”
“प्रेम है। हम विवाह करेंगे। कभी न कभी।”
कैथरीन विधवा हुई। एलिहू येल ने उनसे भारत का पहला पंजीकृत ईसाई विवाह किया, और वह फोर्ट जॉर्ज के प्रेसिडेंट (गवर्नर) बने। उनका निर्देश था कि हर जहाज पर दस गुलाम तो ज़रूर चढ़ाए जाएँ। बाद में जब तमिल बच्चों का अपहरण कर गुलाम बनाने की शिकायत आयी, तो उन्होंने यह निर्देश दिया कि ग़ुलामों की जाँच कर ली जाए।
एक भ्रष्ट प्रशासक और ग़ुलाम व्यापार में लिप्त येल सिर्फ दस पाउंड वेतन की नौकरी पर भारत आए थे, और धन्ना-सेठ बन कर इंग्लैंड लौटे। उन पर अभियोग लगा। उनके एक सदी बाद एक अन्य युवा मुनीम कलकत्ता आए। अपनी मेहनत से गवर्नर जनरल पद तक पहुँचे। वह भी येल की ही तरह भ्रष्टाचार में लिप्त रह कर अभियोग तक पहुँचे। उनका नाम वारेन हेस्टिंग्स था।
खैर, येल ने भारत में किए अपने पापों का प्रायश्चित अमरीका में एक महाविद्यालय (अब येल विश्वविद्यालय) को किताब दान देकर किया। जब 1985 में युवा राजीव गांधी अमरीका के सीनेट में भाषण देने पहुँचे, तो उन्होंने कहा,
“काश! एलिहू येल मद्रास के गवर्नर न होते। हमारे देश में भी वह विश्वविद्यालय ही बनाते”
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
दक्षिण भारत का इतिहास (1)
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