कराची में जिस होटल में मैं ठहरा था वह शाहराहे फैसल पर ‘दिल्ली स्वीट्स’ के सामने से अंदर जाती एक पतली सड़क पर था। कभी-कभी मुख्य सड़कों से होटल तक टहलता हुआ आता था।
क्रासिंग पर सड़क के किनारे एक मोची की दुकान थी। बिलकुल वैसी ही जैसी अपने यहाँ होती है। दुकान तो वैसी ही थी, लेकिन मोची में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ था। इस दुकान के मोची एक लम्बे तगड़े, गोरे चिट्टे, चेहरे पर चमकती हुई लाली, खशखशी काली दाढ़ी रखे, शलवार कमीज़ पहने, बिलकुल सीधे तने बैठे एक पठान थे। कहीं से लगता ही नहीं था कि वो मोची हैं। मेरे दिमाग़ में अपने यहाँ के मोची की जो तस्वीर थी वह गिर कर टुकड़े-टुकड़े हो गयी।
मैंने उनसे यह जानने के लिए कि क्या वे वाकई मोची हैं, पूछा, क्या वे जूतों पर पाॅलिश कर सकते हैं? वे फ़ौरन तैयार हो गये। पाॅलिश करने लगे। मैंने मौका पाकर बातचीत का सिलसिला शुरू कर दिया। पठान मोची ने भारत में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं ली। जाहिर है मैं उनकी नज़र में मोहाजिरेां का आदमी था।
उन्होंने जूतों पर ऐसी पाॅलिस की जैसी हमारे मोची नहीं करते। यह मैं इसलिए नहीं लिख रहा हूँ कि मैं उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हो गया था, बल्कि यह हकीकत थी।
मैंने उनका शुक्रिया अदा किया। पैसे दिये। हिम्मत करके मैंने पठान मोची से पूछा, ”आपकी एक तस्वीर खींच सकता हूँ।“
उन्होंने मेरी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए कहा, ”नहीं।“
अब मैं क्या कर सकता था। चाहता तो मैं ये था कि उन्हें बताऊँ कि पठान मोची महोदय आप इस्लाम की धुंधली पड़ गयी उस उज्जवल परम्परा के प्रतीक हैं जो जातिवाद को अस्वीकार करती है और ‘डिगनिटी ऑफ लेबर’ को महत्व देती है। मैं चाहता हूँ कि अपने देश को आपकी तस्वीर दिखाऊँ और पूछूँ कि आप वहाँ क्यों नहीं हैं?
रात देर तक होटल के कमरे में मैं पठान मोची और उनके वतन विलोचिस्तान के बारे में सोचता रहा जिस पर कुछ दिनों पहले पाकिस्तान के चीफ़ जस्टिस का बड़ा तीखा बयान आया था। उन्होंने कहा था बिलोचिस्तान में वही हालात पैदा हो रहे हैं जो बांग्लादेश बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान में थे।
बिलोचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और धनवान राज्य है क्योंकि वहाँ सोने और गैस के बड़े भंडार हैं और सबसे अधिक अशान्त प्रदेश भी है क्योंकि वहाँ बिल्लोची-पाकिस्तान सेना युद्धरत हैं। एक रिर्पोट के अनुसार बिलोची बच्चे पाकिस्तान का राष्ट्रीय गीत नहीं गाते, न पाकिस्तानी झंडा वहाँ फहराया जाता है। बिलोचिस्तान में स्कूल और यूनिवर्सिटी अध्यापकों की ‘टारगेट किलिंग’ होती है क्योंकि उन्हें केन्द्र सरकार या पंजाबी सत्ता का गुप्तचर माना जाता है।
पाकिस्तान की हर समस्या की तरह बिलोचिस्तान की समस्या भी जटिल और बहुआयामी है जहाँ बिल्लोच राष्ट्रीयता, आर्थिक शोषण, जातीय संघर्ष, सत्ता का आतंक आदि आपस में घुल मिल गये हैं। पाकिस्तानी सेना के सिपुर्द कर दिए गये बिलोचिस्तान में सेना ने ऐसी हिंसा और आतंक फैलाया है कि उसका दूसरा उदाहरण पाकिस्तान में नहीं मिलता।
सन् 1947 में भारत छोड़ने से पहले अंगे्रजों ने अपने आधीन रहे महाराजाओं, नवाबों को यह छूट दी थी कि वे चाहें तो भारत या पाक के साथ विलय करें और चाहें तो स्वतंत्र रूप से रहें। यह छूट बिलोचिस्तान के सबसे बड़े सामन्त कलात के खान को भी दी गयी थी। चूँकि पाकिस्तान बनने के बाद कलात का क्षेत्र पाकिस्तान में आया था इसलिए कलात के खान और पाक सरकार के बीच यथास्थिति बनाये रखने का समझौता हुआ था।
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रभाव के कारण कलात में 'अंजुमन-ए-वतन पार्टी' का गठन हो चुका था जो भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस से निकली थी। इस पार्टी के नेता मुहम्मद अमीन खोसा और अब्दुल समद अचाकज़ई बिल्लोच राष्ट्रीयता और स्वाधीनता के प्रतीक थे। जनमत भी बिल्लोच स्वतंत्राता के पक्ष में था। हालात को बिगड़ते देख पाकिस्तानी सेना ने 1948 में हस्तक्षेप किया। नेताओं को गिरफ्ष्तार कर लिया गया और क्लात पर पाकिस्तानी सत्ता स्थापित हो गयी। लेकिन कलात के खान के छोटे भाई प्रिंस अब्दुल करीम खाँ ने विद्रोह कर दिया। पाकिस्तान सेना के साथ गोरिल्ला युद्ध करते हुए वे गिरफ़्तार हुए और उन्हें दस साल की सजा दी गयी। कलात में विद्रोह का दूसरा चरण 1958 में नवाब नवरोज़ खाँ का विद्रोह माना जाता है जिसे पाकिस्तानी सेना ने कुचल दिया था और नवाब को फाँसी पर चढ़ा दिया था।
पाकिस्तान का उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रदेश भी ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ाँ (1890-1988) के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस से बहुत निकट था और विभाजन का कट्टर विरोधी था। कांगे्रस के भारत विभाजन स्वीकार कर लिये जाने से ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ाँ, जिन्हें सरहदी गाँधी भी कहा जाता है, ने बहुत आहत होकर कांगे्रस से कहा था, ”आपने हमें भेड़ियों के बीच छोड़ दिया है।“ पाकिस्तान बनने के बाद लम्बे समय तक पाकिस्तान विरोध के आरोप में सरहदी गाँधी को जेल में रखा गया था। 1988 में उनकी मृत्यु भी ‘हाउस अरेस्ट’ के दौरान हुई थी। पाकिस्तान का सीमान्त प्रदेश भी बिलोचिस्तान की तरह न केवल लम्बे समय तक प्रताड़ित रहा, बल्कि उसे सरकारी आतंक भी झेलना पड़ा था।
बांग्लादेश के निर्माण के बाद बिलोचिस्तान और दूसरे सीमावर्ती प्रान्त नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्राविंस (अब इसे ‘खैबर पख़्तून ख़ाँ’ कहा जाता है) के नेताओं में यह राय बनी थी कि अब पाकिस्तान के शासक और सेना अपनी साम्राज्यवादी नीतियों से उठाए नुकसान के कारण अधिक लोकतान्त्रिाक हो गये होंगे और सीमावर्ती प्रदेशों को अधिक अधिकार देना स्वीकार कर लेंगे। दोनों सीमावर्ती प्रान्तों के नेताओं, गौस बख़्श बिज़ेनजो, सरदार अता उल्ला मिंगल, गुलखान नासिर, खै़र बक्श मारी, नवाब अकबर खाँ बुगती और खान वली खाँ ने प्रदेश की सरकारों के लिए अधिक स्वायत्ता की माँग की थी जिसे राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने ठुकरा दिया था। केन्द्र ने दोनों प्रान्तीय सरकारों को भंग कर दिया था। दोनों मुख्यमंत्राी गिरफ़्तार कर लिए गये। राजनैतिक दलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। पाकिस्तान के राजनैतिक नेताओं, सेना और शासक वर्ग ने बांग्लादेश में जो किया था वही सीमावर्ती प्रदेशों में दोहराया जाने लगा। परिणामस्वरूप मीर हज़ार खाँ मारी, अपने हज़ारों समर्थकों के साथ अफगानिस्तान चले गये और वहाँ से पाकिस्तान के विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी जो आतंकवादी गोरिल्ला पद्धति से आज तक जारी है। लेकिन सत्ता की प्रति हिंसा और अधिक भयावह रूप धारण कर चुकी है।
पाकिस्तान ही नहीं बल्कि पूरे उप-महाद्वीप की सरकारें प्रायः सीमावर्ती अल्पसंख्यक समूहों की आकांक्षाओं का सम्मान नहीं करतीं और साम्राज्यवादी ढंग से उन पर अपना निर्णय लादती रहती हैं। यही असंतोष का कारण बन जाता है। बिलोचिस्तान में, अन्य उसी तरह के इलाकों की तरह शिक्षा नहीं है, विकास के नाम पर भ्रष्टाचार है, अपराधी तत्त्वों को शासन का संरक्षण प्राप्त है, फूट डालने और विभाजित करने वाले समूहों का बोलबाला है। स्थानीय प्राकृतिक सम्पदा को लूटा जा रहा है।
बिलोचिस्तान में सेना और बिल्लोच ग्रुप्स के संघर्ष से आम आदमी का जीवन नरक बना हुआ है। सेना के आतंक का दायरा इतना बड़ा है कि उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। हज़ारेां लोग सेना और आई.एस.आई. की कस्टडी से ‘ग़ायब’ हो जाते हैं। कुछ लोग इस तरह उठाये या पकड़े जाते हैं कि पकड़ने वालों की पहचान नहीं हो पाती। इन उठाये गये लोगों की लाशें मिलती हैं जिन्हें देख कर यह अनुमान लगाया जाता है कि भयानक शारीरिक यंत्राणाएँ देकर मारा गया है। 2004 से लेकर अब तक कई हज़ार लोग लापता हो चुके हैं। बिलोचिस्तान के मुख्यमंत्राी मुहम्मद असलम रैसानी ने केन्द्र सरकार को चेतावनी देते हुए यह कहा था कि लोगों का इस तरह लापता होना गृहयुद्ध तक भड़का सकता है। पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने बिलोचिस्तान की कानून व्यवस्था पर रिपोर्ट माँगी थी। बिलोचिस्तान के चीफ सेक्रेटरी ने जो रिपोर्ट उन्हें सौंपी थी उसे चीफ जस्टिस ने असन्तोषजनक बताते हुए खारिज कर दिया था। चीफ जस्टिस ने चीफ सेक्रेट्ररी से कहा है कि प्रदेश की सेना, पुलिस तथा पूरा प्रशासन उनके आधीन है फिर भी वे बिगड़ती हुई कानून व्यवस्था को संभाल नहीं पाते हैं। चीफ जस्टिस ने प्रशासन से एक सप्ताह के अन्दर विस्तार से यह जानकारी चाही थी कि 2008 से 2010 तक टारगेट किलिंग में कितने लोग मारे गये हैं, कितने लोग लापता हैं, कितने लापता लोगों की लाशें मिल चुकी हैं।
‘गार्डियन’ अख़बार में 29 मार्च, 2011 में प्रकाशित संवाददाता की रिपोर्ट बिलोचिस्तान की स्थिति को बहुत स्पष्ट ढंग से सामने रख देती है। रिपोर्ट के कुछ अंश इस प्रकार हैं।
‘कार एक ऊँचे गेट के सामने रुक गयी, वह खुला और हमारे पीछे बंद हो गया। अंदर 55 साल की लाल बीबी शाल में इस तरह लिपटी थी कि सिर्फ़ दो आँखें खुली थीं; वे हमारा इन्तज़ार कर रही थीं। वह काँप रही थीं। उसके हाथों में उसके मृत बेटे नजीबउल्लाह की तस्वीर थी। उसने बताया कि उसके बीस साल के बेटे की मोटरसाइकिल पार्ट्स की एक दुकान थी। उसे पिछली अपै्रल में चेक पोस्ट पर एफ.सी. ने पकड़ा था उसके बाद उसका पता नहीं चला। तीन महीने बाद क्वेटा के बाहर एक पार्क में उसकी लाश मिली थी। उसके जिस्म पर बहुत बुरी तरह ‘टार्चर’ करने के निशान थे।’ उसने दुःख में डूबी आवाज़ में बताया था कि उसके मुँह में सिर्फ़ दो दाँत बचे थे।’
"पकड़े जाने वाले प्रायः 20 से 40 तक की उम्र वाले पुरुष होते हैं। राष्ट्रीय विचारों वाले, छात्र, दुकानदार, मजदूर। प्रायः वे खुलेआम दिन में पकड़े जाते हैं। बसों से खींच लिया जाता है, दुकानों से बाहर निकाल लिए जाते हैं, एफ.सी. चेक पोस्टों पर रोक लिया जाता है। उन्हें पकड़ने वाले वर्दी पहने सिपाही और सादी पोशाक में गुप्तचर एजेंसियों के लोग होते हैं।वे ग़ायब हो जाते हैं। मिलते हैं तो मरे हुए। लगभग 15 लाशें हर महीने मिलती हैं यद्यपि पिछले शनिवार को बिलोचिस्तान की अलग-अलग तीन जगहों से आठ लाशें मिली थी।“
सिर्फ़ यही बिलोचिस्तान का सच नहीं है। वहाँ पंजाबियों की टारगेट किलिंग्स के अलावा, मुसलमानों के दो गिरोह भी हत्याएँ और ‘सुसाइड बाम्बिंग’ करते रहते हैं। तालिबान भी अपने हितों के लिए हिंसात्मक तरीके से सक्रिय है।
(अगली किश्त अंतिम होगी)
© असग़र वजाहत
पाकिस्तान का मतलब क्या (9)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/12/9.html
#vss
No comments:
Post a Comment