एक पूर्व महिला आईपीएस अधिकारी, एक पूर्व महिला भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी, और सार्वजनिक नीति के मुद्दों पर विशेषज्ञता के लिए एक प्रसिद्ध शिक्षाविद द्वारा, गुजरात सरकार द्वारा, बिलकिस बानो मामले में 11 बलात्कारियों और उम्र कैद के, सजायाफ्ता अपराधियों को, राज अनुकंपा के आधार पर जेल से रहा करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। यह याचिका डॉ मीरान चड्ढा बोरवणकर (पूर्व आईपीएस अधिकारी), मधु बधूड़ी (पूर्व आईएफएस अधिकारी) और सोशल एक्टिविस्ट, जगदीप चोककर ने दायर की है। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने इस मुद्दे के संबंध में पहले की याचिकाओं के साथ इस याचिका को टैग कर दिया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से, अदालत में, अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर पेश हुईं।
इस याचिका में बिलकिस बानो और दो अन्य के साथ सामूहिक बलात्कार के दोषी पाए गए सभी 11 दोषियों की, गोधरा उप-जेल से समयपूर्व रिहाई का निर्देश देने वाले, गुजरात सरकार के, अनुकंपा पर दिए गए, छूट आदेश को रद्द करने के लिए, शीर्ष अदालत से, प्रार्थना की गई है। इन सजायाफ्ता अपराधियों को, न केवल बलात्कार के जुर्म में, बल्कि सात लोगों की हत्या के लिए भी दोषी ठहराया गया है। 2002 में गुजरात राज्य में, लक्षित सांप्रदायिक हिंसा के दौरान एक 3 दिन के शिशु और एक साढ़े तीन साल की बच्ची सहित परिवार के लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी।
याचिका में, राज अनुकंपा पर छूट या समय से पहले रिहाई की प्रक्रिया में पारदर्शिता की आवश्यकता के अभाव का उल्लेख है, पारदर्शिता बनाए रखने की भी बात की गई है, विशेषकर तब, जब अपराध से संबंधित व्यक्ति, जघन्यतम घृणा अपराधों के दोषी और जेल में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे थे। ये ऐसे जघन्य अपराध है, जिससे न केवल "अपूरणीय व्यक्तिगत क्षति और पीड़ित को झेलना पड़ा है, वह अवर्णनीय है। पीड़िता एक जिंदा शव की तरह है और वह बिल्कुल टूट भी गई है। दंगा, हत्या और बलात्कार की इन घटनाओं ने, सामाजिक समरसता के भाव को तो नुकसान पहुंचाया ही, साथ ही, समाज पर भी, यह अपराध, एक गहरा घाव छोड़ गया।"
याचिका में कहा गया है कि, "दोषियों की जल्द रिहाई का आदेश वैधता और औचित्य पर गंभीर सवाल उठाता है, विशेष रूप से लक्षित सामूहिक बलात्कार और मुसलमानों की हत्या के जघन्य और भीषण अपराध को देखते हुए, जिसमें 3 दिन की बच्ची की बर्बर हत्या की एक घटना भी शामिल है। राज अनुकंपा पर यह छूट, और अपराधियों की रिहाई का आदेश, पूरी तरह से, अधिकार क्षेत्र के बिना, दिया गया है, और धारा 432 (2) सीआरपीसी में निहित उद्देश्य और निर्देश का उल्लंघन है।
याचिका में आगे कहा गया है कि-
"कई सामूहिक बलात्कारों और सात हत्याओं के रूप में, सांप्रदायिक रूप से लक्षित घृणा अपराध, वर्तमान मामले में, बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ एक अपराध है, और कोई भी उचित व्यक्ति, इस निष्कर्ष से अलग नहीं हो सकता है कि, राज अनुकंपा पर, बलात्कारियों को छोड़ने का निर्णय, दुर्भावनापूर्ण है और सरकार, न सिर्फ दुर्भावनापूर्ण तरीके से काम कर रही है बल्कि, नियमानुसार, काम न करते हुए, मनमानी तरीके से काम कर रही है। राज्य सरकार का यह निर्णय, समाज में यह संदेश पहुंचा रहा है कि, सरकार, बलात्कारियों, दंगाइयों और हत्यारो के पक्ष में खड़ी है। यह संदेश जा रहा है कि, महिला उत्पीड़न और यौन अपराधियों पर गुजरात सरकार का रवैया न केवल नरम है बल्कि अपराधियों के पक्ष में है। ऐसे निर्णयों से महिलाओ के प्रति हिंसा को बढ़ावा मिलता है, और समाज महिलाओं के लिए असुरक्षित होता जाता है।"
इसके अतिरिक्त, याचिका में, उन समाचार रिपोर्टों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया है जिनके अनुसार, 'पीड़ित-उत्तरजीवी के गांव के मुसलमानों के परिवारों ने दोषियों की रिहाई के बाद डर से गांव छोड़ना शुरू कर दिया है।'
इसमें कहा गया है कि छूट देने की पूरी प्रक्रिया अपारदर्शी थी और "जिस अस्पष्टता के साथ पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया, और आज भी जारी है, आपराधिक न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को जगाने की तो बात ही छोड़िए, जनता के कानून के प्रति भरोसे को तोड़ता है। ऐसी स्थितियों में, शीर्ष अदालत द्वारा, मार्गदर्शन और पारदर्शिता प्रदान करने की आवश्यकता है, जहां राज्य, समय से पहले रिहाई के आदेश में अपने विवेक का प्रयोग करने के लिए अपने कारणों और प्रासंगिक सामग्री का खुलासा करता है। ऐसे प्रशासनिक निर्णय और कृत्य, गोपनीय, मनमाने और सार्वजनिक जांच से परे नहीं हो सकते हैं, यदि कानून के शासन की महिमा में लोगों के विश्वास को बरकरार रखा जाना है तो।"
राज अनुकंपा पर छोड़े गए बलात्कारियों का जब स्वागत, विश्व हिंदू परिषद के लोग, माल्यार्पण कर और उनके पांव छू कर करते हैं तो गुजरात सरकार का सारा खेल समझ में आ जाता है। गुजरात सरकार पर सन 2002 में हुए दंगो मे लिप्तता के आरोप, लगातार लगते रहे हैं। अब यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में सूचीबद्ध है और इस पर क्या निर्णय होता है, यह भविष्य की बात है।
(विजय शंकर सिंह)
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