Sunday, 18 September 2022

सच्चिदानंद सिंह / आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता - रिलेटिविटी (2)

(आइंस्टीन के लिखे से मैं उतना ही उतार रहा हूँ जितना विषय को बढ़ाने के लिए मुझे आवश्यक लगता है; और तभी, जब मैं आश्वस्त हो जाता हूँ कि मैं इसे 'समझ' पाया हूँ. मेरी समझ में भूल हो सकती है. यदि आपको कहीं लगे कि कोई भूल दिख रही है तो कृपया अवश्य इंगित करें. मुझे लाभ होगा.)

पिछली कड़ी में ज्यामिति की अवधारणा 'दूरी' से शुरु कर के यह दिखाया गया था कि किसी 'जगह' (या बिंदु) की स्थिति जानने के लिए तीन समधरातलों (प्लेन्स) की एक ऐसी प्रणाली की कल्पना उपयोगी होगी जो तीनो आपस में ढृढ़तापूर्वक जुड़े हों और एक दूसरे पर लम्बवत हों. यह रेने द'कार्तेस का कोआर्डिनेट सिस्टम कहलाता है. हमने यह भी देखा था कि चलती गाडी से गिराया गया पत्थर गाड़ी के अंदर खड़े आदमी को सीधी रेखा में गिरता दिखेगा और गाड़ी के बाहर खड़े किसी को वक्र रेखा में. ऐसा इस लिए कि उनके कोआर्डिनेट सिस्टम भिन्न हैं. इस प्रश्न का, कि वह पत्थर 'वास्तव में' सीधी रेखा में गिर रहा है या वक्र रेखा में, यही उत्तर है कि किसी वस्तु का 'पथ' स्वतंत्र रूप से कोई माने नहीं रखता - वह हमेशा उस कोआर्डिनेट सिस्टम पर निर्भर करता है जिसमे हम उसे देख रहे हैं.

4. गैलीलियन (गैलीलियो की) कोआर्डिनेट प्रणाली 
न्यूटन का गति का पहला नियम कहता है कि यदि कोई वस्तु रुकी हुई हो या सीधी रेखा में समान गति से चल रही हो तो वह तब तक रुकी या वैसे ही चलती रहेगी जब तक उस पर किसी बल का प्रयोग न किया जाए. न्यूटन का ही गुरुत्वाकर्षण नियम कहता है कि मात्रा (मास) में आकर्षण शक्ति है. तब इस समान गति से चलती किसी वस्तु पर पहले नियम को लागू होते देखने के लिए आवश्यक है कि वह वस्तु किसी दूसरी वस्तु (मास) से बहुत दूर हो. 

इसका एक उदाहरण हमें तारा मंडल में मिलता है. तारे एक दूसरे से बहुत बहुत दूर हैं. वे लगभग सरल रेखा में चल रहे हैं. लेकिन यदि हम उन्हें पृथ्वी से देखते हैं तो हमारा कोआर्डिनेट सिस्टम पृथ्वी से जुड़ा रहता है और तारे हमें स्रस्ल रेखा में चलते नहीं दीखते. इस कोआर्डिनेट सिस्टम में दिखता है कि तारे पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं.  

गैलीलियन कोआर्डिनेट सिस्टम वह कोआर्डिनेट सिस्टम है जिसमे ये तारे सरल रेखा में चलते दिखेंगे. (ध्यान रहे ये सारे कोआर्डिनेट सिस्टम - चाहे पृथ्वी से जुड़ा या गैलीलियन - सभी काल्पनिक हैं. व्यावहारिक दुनिया में, जैसा पहले कहा जा चुका है एक दूसरे पर लंबवत तीन समधरातल कहीं नहीं मिलते जो कोआर्डिनेट सिस्टम बनाएं.)

5. सापेक्षता का सिद्धांत (सीमित अर्थ में)
(अंग्रेजी शब्द Principle और Theory दोनों के लिए हिंदी पर्याय सिद्धांत का ही प्रायः प्रयोग होता आया है. इस शीर्षक में प्रिंसिपल ऑफ़ रिलेटिविटी है, इसे रिलेटिविटी थ्योरी नहीं समझा जाए.)

ट्रेन के उदाहरण को याद करें. ट्रेन समान गति से सीधी  रही है. कल्पना कि एक कौवा भी समान गति से सरल रेखा में उड़ रहा है - ट्रेन से भिन्न दिशा में. जमीन पर खड़े व्यक्त्यि को ट्रेन और कौवा दोनों समान गति  से भिन्न दिशाओं में जाते दीखेंगे. ट्रेन में खड़े आदमी को भी कौवा समान गति से उड़ते दिखेगा, सरल रेखा में लेकिन कौवे की दिशा और गति, दोनों ट्रेन में बैठे इस आदमी को उनसे भिन्न दिखेंगे जो जमीन पर के आदमी को दीख रहे हैं. 

(यह थोड़ा पेचीदा या भ्रामक लग सकता है किन्तु है नहीं. कल्पना करते हुए पढ़े, स्पष्ट हो जाएगा. उदाहरण: मान लें कि आप ट्रेन में पूर्व दिशा की ओर जा रहे हैं और कौवा आप से लंबवत उत्तर की ओर जा रहा है और गाड़ी कौवे से दूर जा रही है. ट्रेन से देखने पर आपको लगेगा कौवा 'ठीक उत्तर' की ओर नहीं जाकर 'उत्तर-पश्चिम' की और जा रहा है. गति भी आपको कम लगेगी। लेकिन गति समान - constant - लगेगी और कौवा सरल रेखा में उड़ता ही दिखेगा.)

तो ट्रेन से भी कौवा एक सरल रेखा में (किन्तु भिन्न दिशा में) और समान गति से (उससे गति से भिन्न जो जमीन पर खड़े व्यक्ति को दीख रही है) से जाता दिखेगा. ध्यान देने की बात है कि ट्रेन में बैठा व्यक्ति जिस कॉओर्डिनटे सिस्टम में कौवे को देख रहा है वह सिस्टम जमीन पर खड़े व्यक्ति के कॉओर्डिनेट सिस्टम के मुकाबले, स्माकं गति से सरल रेखा में जा रहा है. 

गति स्थानांतरण की है - अंग्रेजी में जिसे ट्रांसलेशन कहते हैं - वस्तु एक जगह से दूसरी जगह जा रही है. एक दूसरी गति भी सम्भव है - घूर्णन या रोटेशन. यदि रोटेशन होता तो ट्रेन में बैठा व्यक्ति कौवे  को एक सरल रेखा में जाते नहीं देख  सकता था. जैसे गैलीलियन कोआर्डिनेट सिस्टम में सीधी  चलते तारे पृथ्वी से जुड़े कोआर्डिनेट सिस्टम में पृथ्वी की परिक्रमा करते दीखते हैं क्योंकि यह कोआर्डिनेट सिस्टम एक धुरी पर घूम रहा है.

इसी चर्चा का अमूर्त, थोड़े पारिभाषिक भाषा में रूप होगा: यदि कोई वस्तु, मात्रा m, किसी कॉओर्डिनेट सिस्टम K के अपेक्षा समान गति से सरल रेखा में जा रही हो तो वह किसी दुसरे कोआर्डिनेट सिस्टम K’ की अपेक्षा भी समान गति से सरल रेखा में जाएगी यदि  K’ K से सामान गति से सरल रेखा में जा रहा हो.

तब, यदि K गैलीलियन कोआर्डिनेट सिस्टम है तो वे सारे कोआर्डिनेट सिस्टम K’ भी गैलीलियन होंगे यदि K’ K की अपेक्षा स्ररल रेखा में समान गति से चल रहा हो. और तब K’ में भी मैकेनिक्स के वे सभी नियम लागू रहेंगे जो K में देखे जाते हैं. अब इसे थोड़ा अधिक व्यापक बनाते हैं: यदि K' एक ऐसा कोआर्डिनेट सिस्टम है को K की अपेक्षा समान गति से सरल रेखा में गतिमान हो तब वे सारी प्राकृतिक घटनाएं जो K में दृष्टिगोचर होतीं हैं, K' में भी उन्ही प्राकृतिक नियमों के अनुसार दृष्टिगोचर रहेंगी जिनके अनुसार वे K में होतीं हैं.इसे ही सापेक्षता का सिद्धांत (एक सीमित अर्थ में) कहते हैं.

जब तक सारी प्राकृतिक घटनाओं को क्लासिकी मैकेनिक्स से समझा (या होते दिखाया) जा सकता तह तब तक सापेसखिता के इस सिद्धांत की सत्यता पर संदेह करने का कोई कारण नहीं था. किन्तु उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में एलेक्ट्रोडायनामिक्स और ऑप्टिक्स में ऐसी चीजें मिलीं जिन्हे समझने के प्रयास में क्लासिकी मैकेनिक्स की अपर्याप्तता दिखने लगी.

क्लासिकी मैकेनिक्स के पक्ष में दो बातें हैं, जिन्हे जानना उचित होगा. पहली यह कि इस पर आधारित ग्रहों और तारों की गति आदि की गणना आश्चर्यजनक रूप से सही सिद्ध होती रही है. इसका अर्थ यह, कि सापेक्षता का सिद्धांत मैकेनिक्स में बखूबी सही है; यद्यपि इलेक्ट्रोडायनामिक्स और ऑप्टिक्स में यह अपर्याप्त प्रतीत हुआ था. (यह बात अपने आप में नहीं जंचती है कि कोई सिद्धांत भौतिकी की एक शाखा में सही रहे और दूसरी में नहीं.)

सापेक्षिता के सिद्धांत के पक्ष में एक दूसरा तर्क तरह है: मानिये कि सिद्धांत सही नहीं है. तब K, K', K''  आदि कोआर्डिनेट सिस्टम जो गैलीलियन सिस्टम से समान, रैखिक गति पर गतिमान हैं उनमे भौतिकी के सारे नियम पूरी तरह लागू नहीं होंगे जैसे वे गैलीलियन सिस्टम में लागू होते हैं, इस स्थिर गैलीलियन सिस्टम को नाम देते हैं K० और कल्पना करते हैं कि उसमे कोई गति नहीं है. तब इस परिस्थिति को ट्रेन वाले उदाहरण में इस प्रकार देखा जा  सकता है. जमीन पर  का कॉओर्डिनेट सिस्टम K० है - जो गतिमान नहीं है. ट्रेन का कोआर्डिनेट सिस्टम गतिमान है - समान गति से एक दिशा में. यदि ट्रेन में हम इस दिशा में (गति की दिशा में) शहनाई बजाएं और फिर इसकी लम्बवत दिशा में बजाएं तो दोनों सुरों में अंतर होना चाहिए, जो नहीं मिलता.

या, ट्रेन की जगह पृथ्वी की सोचें जो 30 किलोमीटर प्रति सेकण्ड की रफ़्तार से परिक्रमा पथ पर चली जा रही है - एक दिशा में. यदि इस दिशा के समानांतर शहनाई बजाएं और इसके लम्बवत बजाएं तो सुर में फर्क नहीं मिलते. यानी गतिमान कोआर्डिनेट सिस्टम में सभी नियम वैसे ही लागू होते हैं जैसे तब होंगे जब सिस्टम स्थिर हो. यह सापेक्षिता के सिद्धांत के पक्ष में एक प्रबल तर्क है. 

इस तर्क की आगे फिर विवेचना होगी.   

6. क्लासिकी मैकेनिक्स में व्यवहृत गतियों के योग का नियम
अपने पुराने उदाहरण में, अब हम मान लेते हैं कि ट्रेन v मीटर प्रति सेकण्ड की रफ़्तार से चल रही है. एक आदमी उस ट्रेन के अंदर ट्रेन की गति की दिशा में w मीटर प्रति सेकण्ड की रफ़्तार से चल रहा है. तब जमीन के मुकाबले आदमी किस रफ़्तार से चल रहा है? स्पष्ट उत्तर है v + w. यदि ट्रेन रुकी रहती तब भी वह एक सेकण्ड में w मीटर चलता, यदि वह रुका रहता तब भी ट्रेन की गति के चलते वह जमीन की अपेक्षा एक सेकण्ड में v मीटर आगे बढ़ जाता. जब दोनों चलायमान हैं तब वह स्पष्टतः एक सेकण्ड में v+w मीटर आगे बढ़ जाएगा. 

गति के योग का यह नियम, हम देखेंगे, हमेशा सत्य नहीं रह सकेगा.
(क्रमशः)

सच्चिदानंद सिंह 
© Sachitanand Singh

आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता - रिलेटिविटी (2) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/09/1_18.html 

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