Friday, 23 September 2022

सच्चिदानंद सिंह / आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता (5)

12. चलती गाडी में मीटर की छड़ी और घड़ी। पिछली कड़ी में हमने देखा था कि यदि कोई कोआर्डिनेट सिस्टम (K’) किसी दूसरे कोआर्डिनेट सिस्टम (K) से X ऐक्सिस की दिशा में v गति से जा रहा हो और जिस बिंदु के कोआर्डिनेट्स स्थिर सिस्टम K में x, y, और z हों और गतिमान सिस्टम K’ में x', y', और z' हों तो y = y' और  z = z' रहेगा क्योंकि  Y और Z ऐक्सिस की दिशा में K’ नहीं चल रहा है मगर x' का मान लॉरेंज परिवर्तन नियम के अनुसार होगा x’ = (x-vt)/Sqrt(1-v^2/c^2).

अब कल्पना कीजिये कि K ' में एक मीटर की छड़ी X ऐक्सिस पर इस प्रकार रखी गयी है कि उसका एक सिरा 0 पर हो और दुसरा x = 1 पर. प्रश्न है कि K की अपेक्षा इस एक मीटर की छड़ी की लम्बाई क्या है? समय हमने शून्य रखा है यानी t = 0. तब लॉरेंज के सूत्र के अनुसार
x’ = (x-vt)/sqrt(1-v^2/c^2)

t = 0 रहने पर x’ = x/sqrt(1-v^2/c^2)
इसलिए x = x’. sqrt(1-v^2/c^2)

मीटर का जो छोर K' में शून्य पर है उसका K में कोआर्डिनेट: 0. sqrt(1-v^2/c^2) = 0
मीटर का जो छोर K' में 1 पर है उसका K में कोआर्डिनेट: 1. sqrt(1-v^2/c^2)
तो, K में छड़ की लम्बाई हुई: 1. sqrt(1-v^2/c^2) – 0 = 1. sqrt(1-v^2/c^2)

यानी K में वह छड़ K' की अपेक्षा कम लम्बी है।
निष्कर्ष यह कि जब कोई वस्तु चलती है तो गति की दिशा में उसकी लम्बाई कम हो जाती है.

(कितनी कम? अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन करीब 28000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहा है, यानी v = 7.8 किलोमीटर प्रति सेकण्ड. प्रकाश की गति c = 300000 किलोमीटर प्रति सेकण्ड. तो विभाजक होगा 0.9999999993 और पद हुआ = 1.000000001 यानी 1.000000001 मीटर लम्बी छड़ 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चले तो गति की दिशा में वह सिकुड़ कर एक मीटर की हो जाएगी. लेकिन यदि पचास साल बाद नयी तकनीक के चलते स्पेस स्टेशन प्रकाश की गति की आधी रफ़्तार पर चलने लगे तब? तब हम देखेंगे वह गति की दिशा में 25% सिकुड़ जाएगा!)

K' जितनी तेजी से चलेगा मीटर की छड़ उतनी छोटी होती जाएगी और यदि K' की गति v प्रकाश की गति c  के बराबर हो जाए तो sqrt(1-v^2/c^2) =0 होने से लॉरेंज परिवर्तन के समीकरण से यह भी मिलता है कि प्रकाश की गति सीमान्त है यानी इससे तेज गति किसी वस्तु की नहीं होती. यदि हुई तो उस वस्तु की लम्बाई काल्पनिक हो जाएगी, जिसका कोई अर्थ नहीं होता.

अब घड़ी को देखते हैं. कल्पना करिये की एक घड़ी स्थायी तौर पर K ' में x = 0 पर रख दी गयी है. यह घड़ी हर सेकंड पर टिक करती है. आरम्भ में जब घड़ी चालू की ही जा रही है तब t '=0 . लॉरेंज़ के पहले और चौथे समीकरण हैं:
x’ = (x-vt)/sqrt(1-v^2/c^2)   
t’ = (t-x.v/c^2)/sqrt(1-v^2/c^2)

चूंकि x' शून्य है इस लिए पहले समीकरण से मिलता है: x = vt 
x का यह मान दूसरे समीकरण में रखने से मिलेगा:  t’/sqrt(1-v^2/c^2) = t. पर t’ हम जानते हैं 1 है; तो t हुआ 1/sqrt (1-v^2/c^2) यानी 1 से कुछ अधिक (क्योंकि विभाजक (डिनोमिनेटर) 1 से कम है). 

यानी K’ (गतिमान सिस्टम) में घड़ी कुछ धीमी चलती है.   

13. गति के योग का नियम
वैचारिक प्रयोगों के बाहर, वास्तविक दुनिया में हम घड़ियों को या मीटर की छड़ियों को चाहे कितनी भी तेजी से चलते रॉकेट में रखें उन्हें हम प्रकाश की गति के निकट नहीं ले जा सकेंगे. उनकी गति इतनी कम होगी कि v^2 और c^2 शून्य के बहुत निकट रहेगा. इस लिए ऐसे प्रयोगों से हम नहीं जान सकेंगे कि वास्तव में गति की दिशा में लम्बाई घटती है या नहीं; या वास्तव में गतिमान घडी धीमी होती है नहीं. 

एक प्रयोग है जिससे इनके अप्रत्यक्ष प्रमाण मिलते हैं. गति के योग के नियम को हमने अध्याय 6  में देखा था. हमने देखा था कि यदि ट्रेन v मीटर प्रति सेकण्ड की रफ़्तार से चल रही है और एक आदमी उस ट्रेन के अंदर ट्रेन की गति की दिशा में w मीटर प्रति सेकण्ड की रफ़्तार से चल रहा है. तब जमीन के मुकाबले आदमी एक सेकण्ड में v+w मीटर आगे बढ़ जाएगा. लेकिन उस समय हमने यह कहा था कि गति के योग का यह नियम, हम देखेंगे, हमेशा सत्य नहीं रह सकेगा. अब उसकी सत्यता जाँचने का समय आ गया है.

कल्पना करिये कि K' सिस्टम में एक बिंदु w की रफ्तार से चल रहा है, उसी देशा में जिस देशा में K' के कोऑर्डिनटस बढ़ रहे हैं. K' की अपेक्षा बिंदु t' समय में x' दूरी ऐसी तय करेगा कि x’ = w.t’ यदि हम गैलीलियन परिवर्तन नियम से x' और t' के मान K (यानी स्थिर सिस्टम) में निकालें तो:
x’ = x – v.t या x = x’ + v.t जहाँ v वह रफ़्तार है जिस पर K' आगे बढ़ रहा है; और
t’ = t
लेकिन, x’ = wt’ है और t’=t. तब हम देखते हैं, x = wt+vt. यदि बिंदु की रफ़्तार K सिस्टम की अपेक्षा W हो तो, x = Wt और तब 
W = v+w 

यानी गैलीलियन परिवर्तन से गति के योग  की सम्पुष्टि होती है.

यदि x’ = w.t’ में x’ और t’ के मान गैलीलियन परिवर्तन की जगह लॉरेंज़ परिवर्तन समीकरणों (पहला और चौथा) के प्रयोग करें तो W का मान (v + w) की जगह हमे यह मिलेगा: 

W = (v+w)/(1+uw/c^2)

यदि इसे प्रयोगों के द्वारा देखा जा सके तो वह लॉरेंज़ समीकरणों को भी प्रमाणित करेगा. और इसे वास्तव में आइंस्टीन के जन्म  के भी पहले फ़िज़ो ने अपने प्रयोगों द्वारा दिखा रखा था! फ़िज़ो के प्रयोग की चर्चा करने के पहले यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि अब तक जहाँ जहाँ प्रकाश की गति c का प्रयोग हुआ है, उन सभी जगहों पर प्रकाश की 'शून्य में गति' अभिप्रेत है. प्रकाश की गति अलग अलग माध्यमों में बदलती रहती है. सीमान्त गति 300,000 किलोमीटर प्रति सेकण्ड प्रकाश की शून्य में गति है. (साफ़ पानी में प्रकाश की गति इससे करीब एक चौथाई कम होकर 225,000 किलोमीटर प्रति सेकण्ड रह जाती है.)   

फ़िज़ो के प्रयोग के लिए, मानिये कि एक ट्यूब में स्थिर (गतिहीन) द्रव में प्रकाश की गति v है. यदि द्रव w रफ़्तार से उसी दिशा में बहने लगेगा तब प्रकाश की गति क्या रहेगी? द्रव स्थिर हो या गतिमान, प्रकाश की गति द्रव कके सापेक्षित w  रहेगी और द्रव की गति ट्यूब के सापेक्षित v  है तो फ़िज़ो का प्रयोग था कि ट्यूब के सापेक्षित प्रकाश की गति क्या थी? 

स्पष्टतः यह वही प्रश्न है जिसे अध्याय 6 में हमने देखा था - चलती ट्रेन की जगह बहता द्रव है और चलते मनुष्य की जगह प्रकाश. यदि ट्यूब के सापेक्षित प्रकाश की गति W है तो देखना था कि यह W ऊपर लिखे समीकरण 1  से मेल खा रहा या 2  से. 

प्रयोग ने स्थापित किया कि समीकरण 2 से, यानी लॉरेंज़ के समीकरण से मिलते W से. यह प्रयोग कई बार किया गया - प्रायोगिक भौतिकी के अग्रणी विशेषज्ञों ने इसे अलग अलग किया और हर बार लॉरेंज़  के समीकरण सम्पुष्ट हुए.
(क्रमशः)

सच्चिदानंद सिंह 
Sachidanand Singh 

आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता (4)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/09/4_76.html 

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