दांडी यात्रा के दूसरे दिन, 13 मार्च को गांधी और उनके सहयात्री, बवेजा गांव पहुंचे और वहां उनका पड़ाव था। गांधी ने यात्रा की तैयारी के दौरान, रास्ते में पड़ने वाले गांवों से, कुछ जरूरी सूचनाएं मंगवाई थी। उन्होंने बवेजा गांव के संबंध में मिली सूचनाओं के बारे में, ग्रामीणों से कहा कि, 'उन्हें 'इसे पढ़कर दुख हुआ। यह अजीब बात है कि अहमदाबाद के इतने नजदीक स्थित गांव में भी, खादी के उपभोग के लिए चरखों, आदतन खादी पहनने वालों लोगों और करघों की संख्या शून्य है।' उनके रास्ते का अगला गाँव, नवगाम था, वहां भी, एक ही खादी पहनने वाला व्यक्ति था और चरखा भी एक ही था, जबकि, उस गांव की आबादी, लगभग, एक हजार थी।" बवेजा और नवगाम में गांधी जी ने जो भाषण दिया उससे उनकी संप्रेषण क्षमता, जनता तक अपनी बात पहुंचने की दुर्लभ क्षमता का, संकेत मिलता है। वे दोनो भाषण, आगे इसी भाग में मैने दे दिए है।
गिरफ्तार किए जाने की आशंका तो गांधी सहित पूरे कांग्रेस नेतृत्व को, दांडी यात्रा की योजना प्रकाशित होते ही, होने लगी थी। पर जब सरकार की तरफ से, ऐसा कोई संकेत नहीं मिला तो, तो लोग निश्चिंत तो दिखते थे, निश्चिंत थे नहीं। 12 मार्च, यात्रा शुरू होने के ठीक पहले, गांधी जी को उम्मीद थी कि, उन्हे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। वे मानसिक रूप से इस प्रकार की, किसी भी गिरफ्तारी के लिए, तैयार थे। कांग्रेस ने, यदि गांधी गिरफ्तार हो जाते हैं तो, अगला कार्यक्रम क्या होगा, इसकी भी रणनीति बना ली थी। पर 13 मार्च तक यात्रा आ गई थी, और गांधी की गिरफ्तारी की कोई भी सुगबुगाहट नहीं थी। फिर भी, गांधी जी ने, 13 मार्च को, अपनी गिरफ्तारी से आशंकित होकर, जवाहरलाल नेहरू को, एक पत्र लिखा कि, "मेरी आसन्न गिरफ्तारी के बारे में मुझे जो खबर दी गई थी, वह बिल्कुल प्रामाणिक बताई गई थी। लेकिन हम यात्रा के दूसरे दिन में पहुंच गए हैं। आज हमारी तीसरी रात होगी, जब हम गिरफ्तारी की उम्मीद कर रहे हैं।" (रामचंद्र गुहा, गांधी द ईयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड) दरअसल, 11,12,13 मार्च की हर रात को गांधी जी को लगता था कि, उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। पर यह हुई नहीं। यात्रा में कोई व्यवधान नहीं पड़ा। दांडी यात्रा का दूसरा पड़ाव, 2,500 की आबादी वाले गांव, बरेजा गांव में किया गया।
यात्रा के अगले पड़ाव बरेजा में, गांधी ने जनता को संबोधित करते हुए कहा,
"मार्च शुरू होने के बाद यह हमारा दूसरा पड़ाव है। हमारे पहले पड़ाव की तरह, यहाँ भी मुझे इस गाँव के बारे में, जो जानकारी हमने चाही थी, दी गई है। मुझे इसे पढ़कर दुख हुआ। यह अजीब बात है कि, अहमदाबाद के इतने पास के स्थान पर खादी के उपभोग के लिए करघों, आदतन खादी पहनने वाले लोगों, और काम करने योग्य, चरखो की संख्या, लगभग शून्य है। उत्तर और दक्षिण भारत के अपने दौरों के दौरान, मैंने, अपने एक नियम का पालन किया था, अर्थात्, मेरा बाल काटने वाला नाई, खादी पहनने वाला होना चाहिए। लेकिन यहां आप, खादी जैसी चीज से, खुद को दूर रखते हैं। खादी, हमारे स्वतंत्रता संग्राम की नींव हैं। सभी को खादी पसंद है, लेकिन आजकल लोग इस डर से डरे हुए हैं कि, खादी पहनने वालों को, जेल में जाकर, मरना पड़ेगा। बरेजा के पास एक भी खादी पहनने वाला नहीं है, जो वास्तव में एक बहुत ही दर्दनाक तथ्य है। यहां खादी की दुकान खोलकर, आप इस दाग को जरूर हटा सकते हैं। हम अपनी माँ को इसलिए नहीं छोड़ते क्योंकि वह देखने में मोटी या बदसूरत है और उसकी जगह भरने के लिए दूसरी औरत को गोद ले लेते हैं, जो उससे भी ज्यादा खूबसूरत है। विदेशी कपड़ा हमें कभी आजादी नहीं दिलाएगा। मैं आपसे विनती करता हूं कि आप इस ढेर से विलासिता का सामान त्याग कर खादी खरीद लें।"
खादी, गांधी के लिए एक विचार था, आंदोलन था और वह इसे स्वावलंबी जीवन और, आत्मनिर्भरता का मूल मानते थे। खादी, चरखा और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार के बाद, गांधी आते हैं, सरदार पटेल की गिरफ्तारी पर। सरदार पटेल, यदि दांडी यात्रा के कुछ दिनों पहले गिरफ्तार नहीं हो गए होते तो, वे गांधी जी की इस ऐतिहासिक यात्रा में जरूर साथ रहते। बल्लभभाई पटेल की गिरफ्तारी पर, वे अपनी बात, बरेजा की सभा में रखते हुए कहते हैं,
"इस समय सरदार जेल में हैं, और मैं यहां आपसे यह कहने आया हूं कि, आप हमारे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हों। इस मामले पर विचार करें और इस संग्राम में, शामिल होने के लिए तैयार हो जाएं। हमारे गांवों की स्थिति कई मामलों में दयनीय है। आजादी के इन जवानों की मदद से आप अपने गांव को साफ-सुथरा बना पाएंगे। ऐसा करने में ज्यादा समय नहीं लगता है। परिश्रम और देखभाल सभी आवश्यक हैं। यहां के लोगों की संख्या पच्चीस सौ है। यदि आप ऐसा संकल्प करें तो आप गांव को सुंदर बना सकते हैं और जितनी सुविधाएं चाहें उतनी प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा करने से आप यहां की खेती बाड़ी में मदद करेंगे और अपनी ताकत भी बढ़ाएंगे। मेरे हिसाब से आज के स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा बिल्कुल भी उचित शिक्षा नहीं है। गांव में बड़ी संख्या में ईसाई और मुसलमान भी हैं। अगर आप सब एक साथ आएंगे तो आप गांव के लिए बहुत कुछ कर पाएंगे। पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए इन सभी समुदायों को एक होना होगा।"
अछूतोद्धार के अपने कार्यक्रम पर बोलते हुए वे कहते हैं,
जहां तक भंगियों का सवाल है, मैं मानता हूं कि वे धरती के मैल नहीं हैं। हम उनकी बेहतरी के लिए कुछ नहीं करते। हम, उन्हें केवल निम्न जन्म का मानकर, खुद अपने आप को ही नीचा दिखाते हैं।"
अब वे आगे बोलते हैं,
"अब, यह कहने के बाद, मैं अन्य बातों की ओर मुड़ता हूँ। हम इस अत्याचारी और दमनकारी सरकार से, अपनी आजादी पाने के लिए आगे आए हैं। अगर हम अपने घर को व्यवस्थित तरीके से व्यवस्थित नहीं कर सकते हैं, तो हम देश की सरकार कैसे चलाएंगे? इसलिए, मैं आपको अनुशासन और संगठन सीखने के लिए कहता हूं। गौ-रक्षा के बारे में भी सोचें। मेरे साथ चल रहे इस समूह में पशुपालन के विशेषज्ञ भी हैं जो आपकी मदद कर सकेंगे। धीमी गति से सुधारने का परिचय देकर आप, गौ-रक्षा के प्रश्न का समाधान कर सकते हैं। इन बातों के बारे में जरूर सोचें। जिस सरकार से मुक्ति पाने की, हमने शुरुआत की है, उसके खिलाफ यह संघर्ष पांच, या पच्चीस, या यहां तक कि लाखों लोगों के मारे जाने के साथ भी, अपने अंत तक नहीं पहुंचने वाला है। लेकिन हमें डटे रहना है। हमें अन्य चीजों का भी साथ-साथ ध्यान रखना होगा।"
(प्रजाबंधु 16/03/1930)
जैसे ही गांधी ने खेड़ा जिले में प्रवेश किया, वहां की पुरानी यादें, कुछ मीठी, कुछ कड़वी, उनके मन में भर गईं। इस जिले में काम करने के दौरान ही वह लोगों के जीवन में एक समय घुलमिल गए थे। खेड़ा सत्याग्रह, गांधी जी का पहला सत्याग्रह कहा जाता है। सन् 1918 ई. में गुजरात जिले की पूरे साल की फसल मारी गई थी। किसानों की दृष्टि में फसल, चौथाई भी नहीं हुई थी। स्थिति को देखते हुए लगान की माफी होनी चाहिए थी, पर सरकारी अधिकारी किसानों की इस बात को सुनने को तैयार नहीं थे। किसानों की जब सारी प्रार्थनाएँ निष्फल हो गई तब महात्मा गांधी ने उन्हें सत्याग्रह करने की सलाह दी और लोगों से स्वयंसेवक और कार्यकर्ता बनने की अपील की। गांधी जी की अपील पर वल्लभभाई पटेल अपनी अच्छी खासी, चलती हुई वकालत छोड़ कर, इस सत्याग्रह में शामिल हो गए। यह उनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ था। उन्होंने गाँव-गाँव घूम-घूम कर, किसानों से, प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कराया कि, वे अपने को झूठा कहलाने और स्वाभिमान को नष्ट कर जबर्दस्ती बढ़ाया हुआ कर देने की अपेक्षा, अपनी भूमि को जब्त कराने के लिये तैयार हूँ। उधर, सरकार की ओर से, कर की अदायगी के लिए, किसानों के मवेशी तथा अन्य वस्तुएँ, कुर्क की जाने लगीं। किसान अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहे। तब, महात्मा गांधी ने किसानों से कहा कि, जो खेत जबरन कुर्क कर लिए गए हैं, उनकी फसल काट कर ले आएँ। गांधी जी के इस आदेश का पालन करने, एक सत्याग्रही, मोहनलाल पंड्या आगे बढ़े और वे एक खेत से प्याज की फसल उखाड़ लाए। इस कार्य में कुछ अन्य किसानों ने भी उनकी सहायता की। वे सभी पकड़े गए, मुकदमा चला और उन्हें सजा हुई। इस प्रकार किसानों का यह सत्याग्रह चल निकला। यह सत्याग्रह गांधीजी का पहला आन्दोलन था। बाद में, सरकार को अपनी भूल का, एहसास हुआ। पर उसे वह, खुल कर स्वीकार नहीं करना चाहती थी। अत: उसने बिना किसी सार्वजनिक घोषणा किए ही, गरीब किसानों से लगान की वसूली बंद कर दी। सरकार ने यह कार्य बहुत देर से और बेमन से किया और यह प्रयत्न किया कि किसानों को यह अनुभव न होने पाए कि सरकार ने किसानों के सत्याग्रह से झुककर, किसी प्रकार का कोई समझौता किया है। इससे किसानों को अधिक लाभ तो नहीं हुआ, पर उनकी नैतिक विजय अवश्य हुई।
रास्ते में स्थित, एक छोटे से गांव, वासना में, जहां ग्रामीण, दांडी यात्रियों का स्वागत करने और उनके नेता को सुनने के लिए एकत्र हुए थे, उन्हे बरबस रोक लेते हैं। एक संक्षिप्त भाषण में, गांधी ने उन्हे समझाया कि, "नमक कर को समाप्त करने या कुछ करों की छूट का मतलब उनके लिए स्वराज नहीं होगा। स्वराज जीतना इतना आसान नहीं था जितना वे सोच सकते हैं। यह सत्याग्रह, स्वराज्य प्राप्ति के लिए, केवल एक रास्ता है, और इसका पालन करके वे, स्वतंत्रता के लक्ष्य तक पहुँच सकते है। उन्होंने नवगाम, वावड़ी, आगम, माहेलज और अन्य गांवों के मुखियाओं की प्रशंसा की, जिन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया था। "सरकार द्वारा उन्हें दिए जाने वाले, महज पांच रुपये के लिए, वे मुखियापन से क्यों चिपके रहते हैं? यदि कलेक्टर किसी मुखिया को बुलाता है, तो, वह कहे, 'हमें हमारे सरदार को वापस कर दो। हमें भू-राजस्व में छूट प्रदान करें।"
गांधी जी के लिए खेड़ा जिला, अनजान नहीं था। जैसे ही वह खेड़ा जिले में दाखिल हुए थे, उन्हे बारह वर्ष पहले किए, अपने सत्याग्रह की याद आ गई। तब उन्होंने, जिले के लगभग सभी गांवों को देखा था और उनमें से कई गावों का तो, पैदल ही भ्रमण किया था। नवगाम में जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा,
"खेड़ा जिले में प्रवेश करते ही, यहां से जुड़ी पुरानी यादें, कुछ मीठी, कुछ कड़वी, मन में भर जाती हैं। खेड़ा जिले में काम करते हुए मैं लोगों के जीवन में घुलमिलकर, एक हो गया था। मैंने, लगभग यहां के सभी गांवों को, देखा है। मैंने,, उनमें से कई को, पैदल ही कवर किया। मैं, आज़ादी के इस युद्ध के बीच, नवगाम आया हूं। यह हमारा तीसरा पड़ाव है, असलाली पहला था, बरेजा दूसरा और नवगाम अब तीसरा है। वल्लभभाई को खेड़ा जिले से काफी उम्मीदें थीं। इस जिले में गिरफ्तार होने के बाद, उन्होंने, अपने लिए गौरव हासिल किया है।"
सरदार पटेल की गिरफ्तारी की चर्चा करते हुए, गांधी जी ने कहा,
"वल्लभभाई को गिरफ्तार करने के लिए सरकार को कोई न कोई बहाना मिल ही गया। सरकार अच्छी तरह से जानती थी कि, खेड़ा में, यदि बल्लभभाई, गिरफ्तार नहीं किए गए तो, सरदार का ही सिक्का चलेगा, न कि सरकार का। किसी भी तरह, सरदार को नोटिस तामील करने के लिए मजिस्ट्रेट पर दबाव डाला गया और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। एक गरीब मजिस्ट्रेट क्या कर सकता है बेचारा, जहां सारा माहौल ही खराब हो? हममें से, किसी को भी, आत्म-बलिदान की आवश्यक भावना और आवश्यक आत्म-विश्वास नहीं है कि, वह सरकार को यह बताए कि वह, इस तरह का नोटिस जारी नहीं कर सकती। क्या फर्क पड़ता है इससे ? एक व्यक्ति को सरकार से वेतन मिलता है ? और, इसके अलावा, वह वेतन कौन देता है ? मैं मजिस्ट्रेट को यह समझाने वाला कौन होता हूं कि ऐसा करने वाला ईश्वर है ? मैं यह कैसे कर सकता हूं ? मजिस्ट्रेट के लिए सरकार भगवान, रक्षक और सब कुछ है। आदि आदि बातें दिमाग में आती हैं। हैं न ?"
खेड़ा के कुछ मुखियाओं ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इस पर वे, कहते हैं,
"पाटीदार और धरला, खेड़ा जिले के दो प्रमुख समुदाय, दोनों साहसी हैं। वे इस सरकार से लड़ने के लिए क्या करेंगे? प्रश्न पूछने से पहले मैं आप सभी को बधाई देना चाहता हूं। यहाँ के सभी मातादारों ने, मेरी उपस्थिति में बहुत साहस दिखाया और कहा कि वे मुखिया के पद को स्वीकार नहीं करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप अब उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। मैं आपको, आपके इस्तीफे पर बधाई देता हूं। यदि आप किसी के दबाव में इस्तीफे की पेशकश कर रहे हैं, तो मुझे आपसे उन्हें, वापस लेने के लिए कहना चाहिए। इससे न केवल मुझे पीड़ा होगी, बल्कि मैं उन लोगों से आपकी रक्षा करूंगा जो आपको इस्तीफा देने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर सकते हैं। यह लड़ाई सच्चाई पर आधारित है। मुझे अयोग्य मदद से कोई जीत नहीं चाहिए।" गांधी यहां अपने सिद्धांत, साधनों की पवित्रता पर आते हैं।
अब वे अपने सत्याग्रह के बारे में कहते हैं,
"कई दिन और रातों की खोज के बाद, मैंने इस अंतिम संघर्ष में, अपना जीवन दांव पर लगाने और अपने सहकर्मियों को अपने साथ ले जाने का फैसला किया है, ताकि वे भी अपने जीवन का बलिदान कर सकें। मैं इस युद्ध को जीतने के लिए, केवल, सत्य पर निर्भर हूं। अगर मुझे इसमें आपका समर्थन है तो मुझे खुशी होगी। अगर आप इस्तीफा न दें तो भी मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"
आगे गांधी कहते हैं,
"जब हम स्वराज जीतेंगे तो एक सफाईकर्मी भी, वल्लभभाई से, काम लेने के लिए स्वतंत्र होगा। जब वे जेल में थे तो, वल्लभभाई पूछते थे कि वे किससे लड़ सकते हैं, जबकि चपरासी से ऊपर के सभी अधिकारी भारतीय थे। आपको यह याद रखना चाहिए। वर्तमान सरकार चाहे जो सोचे, लेकिन, मेरे खिलाफ, इसकी बंदूकें और बारूद, धूल या कंकड़ से ज्यादा नहीं हैं। आपका वर्तमान कर्तव्य, अपने काम के माध्यम से, सरकार को अपनी ताकत दिखाना है। यदि आप पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने पर तुले हुए हैं, तो अपने वचन के प्रति सच्चे रहें। आपको तुलसीदास के शब्दों को याद रखना चाहिए और उन पर अमल करना चाहिए:
"रघुओं का तरीका तो ऐसा ही रहा है,जीवन खो सकता है लेकिन प्रतिज्ञा कभी नहीं।"
गांधी एक जबरदस्त संप्रेषण क्षमता के व्यक्ति थे। गांव और ग्रामीणों को कैसे जोड़ना है और उनके मन, मस्तिष्क तक, कैसे अपनी बात पहुंचानी है, इसमें वे सिद्धहस्त थे। मुखियाओं के इस्तीफों के मुद्दे पर, गांधी का सारा जोर इस संकल्प पर था कि, इस्तीफा देने वाले मुखिया, अपना इस्तीफा, बिना किसी दबाव के दे रहे हैं और स्वेच्छा से इस महासमर में, उतर रहे हैं, या वे किसी दबाव में हैं। रामचरितमानस के उपरोक्त उद्धरण के बाद वे आगे कहते हैं,
"यहां उपस्थित लोगों को, सबसे पहले मैं, यह याद दिलाता हूं। मेरी बात सुनो और अगर तुम्हें ऐसा लगता है, और यह सच लगता है कि, तुम्हारे पास इस्तीफा देने की ताकत नहीं है, तो सुनो। खेड़ा जिले के लोगों ने मुझे अपने प्यार से सींचा है। इस जिले का कोई भी निवासी, पहले मुझसे, वादा करे और फिर मेरी पीठ में छुरा घोंप दे, यह उचित नहीं है। यदि आपने स्वेच्छा से इस्तीफा नहीं दिया है तो, फिर यदि आप, सच्चाई से, अपने इस्तीफे वापस ले लेते हैं, और यदि आप सच्चाई से उनका पालन करते हैं, तब भी, मैं आपको बहादुर व्यक्ति के रूप में मानूंगा। क्योंकि, आप का मुखिया के पद से इस्तीफा, स्वेच्छा और दृढ़ संकल्प के साथ होना चाहिए।"
अब वे रामराज्य का उल्लेख करते हुए कहते हैं,
"वर्तमान संघर्ष में, जिसे हमने रामराज्य की स्थापना के लिए शुरू किया है, गरीब और अमीर दोनों ही, मुझे आर्थिक मदद देने के लिए तैयार हैं, लेकिन मैं लोगों को, खुद को, मजबूत करने के लिए देखता हूं। जब तुम मेरे पीछे चलकर नमक बनाने के लिए आगे आओगे, तो मेरी शक्ति दुगनी हो जाएगी। आपको अपने पथ पर अग्रसर करके, मैं, हम सभी के बीच स्वराज लाना चाहता हूं। मैं आप के इस्तीफे या आप से पैसे मांग सकता हूं; लेकिन फिलहाल, मैं इस लड़ाई के लिए सैनिकों की मांग कर रहा हूं। नमक कानून की सविनय अवज्ञा आंदोलन में, सभी पुरुषों और महिलाओं, युवा और बूढ़े सभी को जुट जाना चाहिए।"
नवगाम में भी उन्हे खादी का इस्तेमाल करने वाले लोग नहीं मिले तो इस पर वे कहते हैं,
"मैंने नवगम के बारे मे पता किया है। एक हजार की आबादी में, केवल एक व्यक्ति खादी पहनने वाला है और कसम खाने के लिए सिर्फ एक चरखा है। मैं आपसे अब खादी पैदा करने और पहनने का संकल्प लेने के लिए कहता हूं। इस तरह आप रुपये बचा लेंगे। 5,000 प्रति वर्ष। चरखे पर काम करने से महिलाएं भी अपनी शक्ति में काफी इजाफा करेंगी।"
मुखियाओं के इस्तीफे पर वे पुनः चर्चा करते हैं,
"याद रखें कि आपने जो इस्तीफा दिया है, उसमें मुझे भगवान का हाथ दिखाई देता है। खेड़ा जिले ने यह शुभ शुरुआत की है। मैंने अपने जीवन के इस आखिरी संघर्ष को शुरू किया है क्योंकि भगवान मुझे इस काम के लिए अपना साधन बनाना चाहते हैं। इस कंकाल का जीवन जो आपको संबोधित कर रहा है, वह ईश्वर है, और वह जो भी करता है, अच्छा करता है। आइए अब हम अपने होठों पर रामनाम के साथ, इस आंदोलन में भाग लें।"
यह पूरा भाषण गुजराती पत्र प्रजाबंधु, के 16 मार्च 1930 के अंक में छपा था।
तीसरे दिन गांधी नौ मील चले थे। दांडी यात्रियों के समूह के साथ चल रहे, एक अखबार के रिपोर्टर ने इस पर टिप्पणी की, "गांधी, गठिया से पीड़ित, थे, जिसका दर्द, कल रात काफी बढ़ गया था। वह बड़े दबाव के साथ चल रहे हैं। सुबह की कुछ दूर की यात्रा के बाद, अधिकांश भाग के लिए महात्माजी को दो लड़कों ने अपने कंधों का सहारा दिया। उनकी तकलीफ देख कर, उनके लिए एक टट्टू की व्यवस्था गांव वालों ने की, लेकिन बार-बार मिन्नत करने के बावजूद गांधी जी ने उस टट्टू पर सवार होने से मना कर दिया।"
लेकिन अगली सुबह, यानी यात्रा के चौथे दिन, ऐसा लगता है कि गांधी ने अपनी ताकत वापस पा ली है, क्योंकि वह 'एक पल के लिए बिना रुके' आगे बढ़ते रहे। एक प्रेस कार यात्रियों के पीछे पीछे जा रही थी, जिसमे अखबार के रिपोर्टर बैठे थे। पत्रकारों को दर्शकों ने फटकार लगाई, और पूछा कि, 'क्या उन्हें खुद पर शर्म नहीं आ रही है, जब साठ वर्षीय गांधी और उनके सहयोगी, पैदल चल रहे हैं, और इस तरह वे, अपने पैरों के नीचे की जमीन को पवित्र बना रहे हैं, और आप, मोटर पर जा रहे हैं ?" मजबूर होकर प्रेस रिपोर्टरों ने अपनी कार छोड़ दी और वे भी उसी यात्रा में शामिल हो गए। रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब, गांधी द ईयर चेंज्ड द वर्ल्ड में इसका जिक्र किया है। उस रात, गांधी का यात्रा दल, नाडियाड, शहर के पास दाभान नामक स्थान पर रुका। उन्होंने अपनी यात्रा के पहले चार दिनों में सैंतीस मील की दूरी तय कर ली थी।
जैसे जैसे, गांधी समुद्र की ओर बढ़ रहे थे, उनके साथ लोग जुड़ते चले जा रहे थे। गांधी लगातार एक बड़ी भीड़ को आकर्षित कर रहे थे। दाभान नामक स्थान पर पहुंच कर, उन्होंने एक सूखे तालाब के तलहटी में एक बड़ी सभा को संबोधित किया, जिसमें लगभग 10,000 लोग उपस्थित थे। उनमें से वे सात मुखिया भी थे, जिन्होंने सरकार के साथ अपने असहयोग के रूप में, अपना इस्तीफा, गांधी जी को, सौंप दिया था। दाभान से, गांधी नाडियाड शहर के लिए रवाना हुए, जहां उन्होंने एक स्थानीय धार्मिक स्थल के परिसर में, दाभान से भी, बड़ी सभा को संबोधित किया। वहां, लगभग, 40,000 लोग उन्हें सुनने के लिए आये थे। लोग भूमि पर, और भवनों की प्राचीर पर और वृक्षों पर बैठ कर गांधी जी को सुन रहे थे।
....क्रमशः
विजय शंकर सिंह
© Vijay Shanker Singh
गांधी की दांडी यात्रा (4)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/09/4_20.html
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