Saturday, 24 September 2022

सच्चिदानंद सिंह / आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता - रिलेटिविटी (6)

14. रिलेटिविटी थ्योरी से हम दूसरे प्राकृतिक नियमों के बारे में क्या जानेंगे?
हमने सापेक्षता के सिद्धांत में देखा कि यदि K' एक ऐसा कोआर्डिनेट सिस्टम है को K की अपेक्षा समान गति से सरल रेखा में गतिमान हो तब वे सारी प्राकृतिक घटनाएं जो K में दृष्टिगोचर होतीं हैं, K' में भी उन्ही प्राकृतिक नियमों के अनुसार दृष्टिगोचर रहेंगी जिनके अनुसार वे K में होतीं हैं.

हमने यह भी देखा कि शून्य में प्रकाश की गति अपरिवर्तनशील (कान्स्टन्ट) रहती है चाहे कोआर्डिनेट सिस्टम किसी गति से चले. इन दोनों को मिला कर किसी कोआर्डिनेट सिस्टम से समय t पर घट रही किसी घटना के तीनो कोऑर्डिनटस  x, y, और z को दुसरे कोआर्डिनेट सिस्टम में देखने  से जो कोऑर्डिनटस मिलेंगे, वे हमने पाया कि गैलीलियन परिवर्तन  नहीं बल्कि लॉरेंज़ परिवर्तन से मिलेंगे. और इसके चलते क्लासिकी मैकेनिक्स के निष्कर्षों से कुछ अलग निष्कर्ष मिले.

हमारी इस सोच में प्रकाश की गति के नियम की महत्वपूर्ण भूमिका रही. इसे लॉरेंज़ परिवर्तन नियमों से जोड़ कर हम इस निष्कर्ष पर पँहुचते हैं: प्रकृति के प्रत्येक सामान्य नियम को हमेशा इस प्रकार स्थापित करना है कि वह नियम बिलकुल उसी रूप में तब भी लागू रहे जब हम दिशा-काल के मान उनके मौलिक कोआर्डिनेट सिस्टम K  में x, y, z, और t को एक दूसरे कोआर्डिनेट सिस्टम K' में नए दिशा-काल मान x’, y’, z’, और t’ से बदल दें; और x, y, z, t और उनके अनुरूप  x’, y’, z’, t' के परस्पर सम्बन्ध लॉरेंज़ परिवर्तन समीकरणों से मिलें.

रिलेटिविटी थ्योरी के अनुसार प्रत्येक प्राकृतिक नियम को ऐसा होना ही है! और इसके चलते यह थ्योरी किसी नए प्राकृतिक नियम के पूर्वानुमान में बहुत सहायक होती है. यदि कोई ऐसा प्राकृतिक नियम मिल जाता है जो रिलेटिविटी के इस थ्योरी से बेमेल हो तब थ्योरी की दो आधारभूत मान्यताओं में से कम से कम किसी एक को गलत सिद्ध करना पड़ेगा. 

अब देखेंगे इस थ्योरी से कैसे नतीजे निकलते हैं.

15. थ्योरी के नतीजे
जैसा कहा जा चुका है, रिलेटिविटी के स्पेशल थ्योरी का विकास एलेक्ट्रोडायनमिक्स और ऑप्टिक्स की खोजों से हुई. इस थ्योरी से भौतिकी के उन क्षेत्रों के नियमों में कोई ख़ास बदलाव नहीं आए. लेकिन इस थ्योरी ने उनकी सैद्धांतिक संरचना को काफी सरल कर दिया. उससे बहुत अधिक महत्वपूर्ण यह है कि इसके चलते उन क्षेत्रों के अनेक साध्यों को प्रतिपादित करने के लिए आवश्यक स्वतंत्र परिकल्पनाओं की संख्या पहले से बहुत कम हो गयी. 

लेकिन इस थ्योरी से असंगत नहीं होने के लिए क्लासिकी मैकेनिक्स में परिवर्तन आवश्यक थे. ये परिवर्तन मुख्यतः वहां जरूरी हैं जहाँ गति v बहुत तेज है - प्रकाश की गति c के तुलनीय. ऐसी तेज रफ़्तार हमें बस इलेक्ट्रान और आयन्स के मामलों में मिलती है. (तारों की गति की चर्चा तब तक नहीं होगी जब तक रिलेटिविटी के जनरल थ्योरी की बात नहीं हो जाए.) 

किसी वस्तु की गतिज ऊर्जा (काइनेटिक एनर्जी), यदि उसकी द्रव्यमान (मास) m हो तो इस सुपरिचित पद से मिलती है: mv^2/2
रिलेटिविटी थ्योरी के अनुसार इसका पद होगा: mc^2/sqrt(1-v^2/c^2)

यदि वस्तु की गति प्रकाश की गति के निकट पंहुचने लगे तो गतिज ऊर्जा अनंत के निकट पंहुचने लगेगी. इस लिए किसी वस्तु की गति प्रकाश की गति तक नहीं पहुँच सकती. यदि गतिज ऊर्जा के लिए हम इस थ्योरी से 'सीरीज़' निकालें तो उसका रूप होगा:  
mc^2 + mv^2/2 + (3/8)mv^4/ c^2 + … 

तीसरा पद और उसके बाद के सभी पद बहुत छोटे होंगे, शून्य के बहुत निकट. और पहले पद mc^2 में वस्तु की गति v नहीं है. यदि हम बस यह देख रहे हैं कि किसी 'बिंदु-द्रव्यमान' (पॉइंट मास) की ऊर्जा गति पर किस तरह निर्भर करती है तब इसे रखने की कोई आवश्यकता नहीं है. इस पद का महत्व आगे के अध्यायों में आएगा.

स्पेशल थ्योरी का सबसे अहम नतीजा है द्रव्यमान (मास) के विषय में भौतिकविदों की नयी सोच. रिलेटिविटी के थ्योरी के आने के पहले भौतिकी में दो संरक्षण (Conservation) नियम थे - ऊर्जा-संरक्षण का नियम और द्रव्यमान संरक्षण का नियम. दोनों नियमों को स्वतंत्र माना जाता था. रिलेटिविटी थ्योरी के चलते अब उन दोनों को मिलाकर एक नियम रहा गया है. अब हम संक्षेप में देखेंगे कि यह एकीकरण कैसे हुआ और उसके क्या अर्थ हैं.

रिलेटिविटी थ्योरी के अनुसार ऊर्जा संरक्षण का नियम यदि एक कॉओर्डिनटे सिस्टम (K) में लागू होता है तो उसे उन  कोआर्डिनेट सिस्टम (K') में भी लागू होना चाहिए जो K से एक समान स्थानांतरण (घूर्णन नहीं) गति में गतिमान हैं. ऐसे एक सिस्टम से दूसरे में कोऑर्डिनटस को बदलने के लिए लॉरेंज़ के समीकरण के उपयोग होते हैं - जो क्लासिकी मैकेनिक्स में नहीं होते थे. 

इन बातों को ध्यान में रखते हुआ, मैक्सवेल के इलेक्ट्रोडायनमिक्स के समीकरण पर विचार करने से ये निष्कर्ष मिलते हैं: यदि v गति से चलरही एक वस्तु विकिरण से E ऊर्जा प्राप्त करती है, इस तरह कि उसकी गति में कोई फर्क नहीं पड़ता, तो उसकी ऊर्जा E / sqrt(1 – v^2/c^2) से बढ़ जाएगी.

जैसा ऊपर लिखा गया है, पहले उस वस्तु की गतिज ऊर्जा थी 
mc^2/sqrt(1-v^2/c^2). 
अब उसकी कुल ऊर्जा हो गयी: 
mc^2/sqrt(1-v^2/c^2) + E /sqrt(1 – v^2/c^2) 
यानी (mc^2+E)/sqrt(1-v^2/c^2) 
या {(m + E/c^2)c^2}/ sqrt(1-v^2/c^2)

या, इस वस्तु की ऊर्जा अब वही है जो v की गति से चल रही उस वस्तु की होगी जिसका द्रव्यमान (m+E/c^2) हो. तब हम कह सकते हैं कि यदि कोई वस्तु E ऊर्जा ले तो उसका द्रव्यमान  E/c^2 से बढ़ जाता है. तब किसी वस्तु का द्रव्यमान सदा समान (constant) नहीं रहता अपितु वस्तु की ऊर्जा में परिवर्तन होने से बदल जाता है. 

इस सम्बन्ध को प्रयोग द्वारा सम्पुष्ट नहीं किया जा सकता. इसी के चलते भौतिकीविद द्रव्यमान के संरक्षण के नियम को सही पाते रहे हैं. 

(आइंस्टीन ने इसे 1920 के पहले लिखा था. अब जब कि तत्वों पर अल्फ़ा कणों या प्रोटोन या न्यूट्रॉन या गामा किरणों की बौछार से नाभिकीय परिवर्तन करना सम्भव है, द्रव्यमान और ऊर्जा के बीच के इस सम्बन्ध E = mc^2 की प्रयोगों द्वारा पुष्टि हो चुकी है)
(क्रमशः)

सच्चिदानंद सिंह
Sachidanand Singh

आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता - रिलेटिविटी (5) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/09/5_23.html


No comments:

Post a Comment