ग़ालिब - 69.
उस कदह का है दौर, मुझ को नक़द,
चर्ख ने ली है, जिससे गर्दिश दाम !!
उस कदह का है दौर, मुझ को नक़द,
चर्ख ने ली है, जिससे गर्दिश दाम !!
Us kadah kaa hai daur, mujh ko naqad,
Charkh ne lee hai, jis'se gardish daam !!
- Ghalib
Charkh ne lee hai, jis'se gardish daam !!
- Ghalib
कदह - मधु पात्र, मदिरा पात्र
चर्ख - आसमान
चर्ख - आसमान
मुझे उस मदिरा पात्र का मूल्य नक़द दे कर खरीदना पड़ रहा है, जो आसमान ने अपनी गति से खरीद कर दी है।
इसका भावार्थ इस प्रकार है।
जिस ईश्वर की असीम कृपा से यह सारा आकाश निरन्तर गतिशील है, उसी कृपा को प्राप्त करने के लिये, मुझे खुद को पहले उसे ( ईश्वर को ) समर्पित करना होगा। चर्ख यानी आसमान गतिशील है। सभी नक्षत्र तारे सभी गतिशील है। वे निरन्तर चलायमान है। आसमान को तो ईश्वर की कृपा बिना मांगे मिल रही है। पर मुझे ईश्वर की कृपा के लिये खुद को ईश्वर को समर्पित करना होगा। यहां कदह, मधु पात्र या मदिरा ईश्वर का प्रतीक है। आसमान या समय की गतिशीलता ईश्वर के कृपा के ही कारण है।
ग़ालिब इसी को बेहद खूबसूरती से कहते हैं कि यह एक अजब दौर है कि हम पर ईश्वर की कृपा बिना मांगे , बिना किसी उपासना या इबादत के, या बिना समर्पण के नहीं मिलती है। जब कि पूरी कायनात उसके कृपा से बिना समर्पण के ही निरन्तर गतिशील है।
© विजय शंकर सिंह
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