चौरीचौरा कांड की हिंसा के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था जिसके कारण देश व्यापक निराशा छा गयी थी। 1927 में सायमन कमीशन के विरोध के बाद यह तन्द्रा टूटी। 1929 में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य के प्रस्ताव का समर्थन किया और 26 जनवरी 1930 को यह प्रस्ताव कांग्रेस ने पास भी कर दिया। लेकिन 12 मार्च को गांधी जी अपने मुट्ठी भर सहयोगियों के साथ साबरमती आश्रम अहमदाबाद से सागर तट पर स्थित एक छोटे से गांव दांडी के लिये प्रस्थान करते हैं तो किसी को भी यह आशा नहीं थी कि, इतिहास एक करवट बदलने वाला है । अंग्रेज़ी हुक़ूमत ने भी प्रारंभ में इस यात्रा का कोई संज्ञान नहीं लिया। 24 दिन की इस यात्रा में दिन प्रतिदिन बढ़ती भीड़ ने ब्रिटिश इंटेलिजेंस के कान खड़े किये और तब ब्रिटिश राज हरकत में आया। लेकिन यात्रा, वह भी शांतिपूर्वक चल रही थी, तो कोई कानूनी कार्यवाही की भी जाती तो कैसे की जाती ? 6 अप्रैल को यह यात्रा जब दांडी पहुंची तब तक देश का माहौल बदल गया था। अवसाद जो पसरा था, वह खत्म हो गया था। ब्रिटिश संवाददाताओं के अनुसार, जैसे जैसे गांधी आगे बढ़ते गए, देश का बैरोमीटर बढ़ता गया।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में दांडी मार्च (नमक सत्याग्रह) को टाइम पत्रिका ने दुनिया को बदल देने वाले 10 महत्वपूर्ण आंदोलनों की सूची में शामिल किया है । यह मार्च नमक पर ब्रिटिश राज के एकाधिकार के खिलाफ निकाला था. अहिंसा के साथ शुरु हुआ यह मार्च ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा रहा था। टाइम पत्रिका ने लिखा है कि भावुक और नैतिक मूल्यों के साथ इस मार्च ने ब्रिटिश राज के खात्मे का संकल्प किया.। टाइम पत्रिका के मुताबिक भारत पर लंबे समय तक चली ब्रिटिश हुकूमत में चाय, कपड़ा और यहां तक कि नमक जैसी चीजों पर सरकार का एकाधिकार था ।. ब्रिटिश राज के समय भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था, बल्कि उन्हें इंग्लैंड से आने वाले नमक के लिए कई गुना ज्यादा पैसे देने होते थे.। दांड़ी मार्च के बाद आने वाले महीनों में 80,000 भारतीयों को गिरफ्तार किया गया. टाइम पत्रिका ने लिखा है कि इस सत्याग्रह की वजह से ब्रिटिश राज के खिलाफ अवज्ञा फैली । 6 मार्च को नमक बना कर गांधी जी ने ब्रिटेन साम्राज्य को चुनौती दे दी। उन्हें नमक कानून तोड़ने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया।
भारत में नमक पर कर आरंभिक काल से ही लगाया जाता रहा है। परंतु मुगल सम्राटों की अपेक्षा इस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में इसमें अत्यधिक वृद्धि कर दी गई। 1835 में इस पर ब्रटिस नमक व्यापारियों के हितों के लिए कर लगा दिया गया। जिससे भारत में नमक का आयात होने लगा और इस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों को बहुत फायदा हुआ। 1858 के सत्ता परिवर्तन के बाद भी कर पलगा रहा। भारतीयों द्वारा इसकी आरंभ से ही निंदा की गई। 1885 के कांग्रेस के पहले सम्मेलन में एस ए स्वामीनाथन अय्यर ने यह मुद्दा उठाया। बाद में गांधीजी ने 1930 में इसे व्यापक मुद्दा बना दिया। दांडी मार्च के बाद गांधी की गिरफ्तारी के पश्चात सरोजनी के नेतृत्व में धरसाना में नमक सत्याग्रह हुआ। राजगोपालाचारी ने मद्रास के वेदमरण्यम में उसी वर्ष नमक कानून तोड़ा। दांडी मार्च को अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियाँ मिली। मगर नमक कानून 1946 तक चलता रहा जबतक कि जवाहरलाल नेहरु अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री बन कर इसे निरस्त नहीं कर दिया।
जर्मन विद्वान एम जे स्लेडन ने अपनी पुस्तक साल्ज में लिखा कि नमक कर और तानासाही में सीधा संबंध है। इसका प्रमाण इतिहास देता है कि सर्वाधिक निरंकुश सभ्यताएं वे हैं जिन्होंने कि नमक और उसके व्यापार पर कर लगाया है। नमक कर सबसे पहले चीन में लगाया गया। 300 इ. पु. में लिखी गई पुस्तक ग्वांजी में नमक कर लगाने की अनुशंशा की गई थी। ग्वांजी की अनुसंशाएं जल्दी ही चीनी सरकारों की नमक नीति बन गई। एक समय नमक कर चीन की राजस्व का आधा था और उसने चीन की दीवार के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
चंद्रगुप्त में नमक का चौथाइ हिस्सा कर के रूप में लिया जाता था। मुगलों के समय हिंदुओं से 5% और मुसलमानों से 2.5% नमक कर लिया जाता था। 1759 में ब्रिटिशों ने जमीन की लगान दुगनी कर दी और नमक के परिवहन पर भी कर लगा दिया। 1767 को तंबाकू और नारियल के बाद 7 अक्टूबर 1768 को नमक पर भी कंपनी के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया। 1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने नमक कर को फिर से कंपनी के अंतर्गत कर दिया। उसने इसके लिए एजेंट बनाए। कंपनी सर्वाधिक बोली लगाने वालों को पट्टों पर जमीन देती थई। इसने मजदूरों के शोषण को जन्म दिया। 1788 में नमक थोक विक्रेताओं को निलामी लगाकर दी जाने लगी। इसने नमक के दाम को एक रुप्ए से बढ़ाकर 4 रूप्ए कर दिया। यह अत्यधिक दर्दनाक स्थिति थि जिसमें केवल कुछ लोग ही नमक के साथ भोजन करने में समर्थथ थे। 19वीं सदी के आरंभ में नमक कर को अधिक लाभदायक बनाने के लिए और उसकी तस्करी को रोकने के लिए इस्ट इंडिया कंपनी ने जाँच केंद्र बनाए। जी एच स्मिथ ने एक सीमा खिंची जिसके पार नमक के परिवहन पर अधिक कर देना पड़ता था। 1869 तक यह सीमा पूरे भारत में फैल गई। 2300 मील तक सिंधु से मद्रास तक फैले क्षेत्र में लगभग 12 हजार लोग तैनात किए गए थे। यह कांटेदार झाड़ियों पत्थरों, पहाड़ों से बनी सीमा थी जिसके पार बिना जाँच के नहीं जाया जा सकता था। 1923 में लॉर्ड रीडिंग के समय नमक कर को दुगुना करने का विधेयक पास किया गया। 1927 में पुनः विधेयक लाया गया जिसपर वीटो लग गया। 1835 के नमक कर आयोग ने अनुसंशा की कि नमक के आयात को प्रोत्साहित करने के लिए नमक पर कर लगाया जाना चाहिए। बाद में नमक के उत्पादन को अपराध बनाया गया। 1882 में बने भारतीय नमक कानून ने सरकार को पुनः एकाधिकार स्थापित करा दिया।
© विजय शंकर सिंह
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