ग़ालिब - 56.
इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश 'ग़ालिब',
कि लगाये न लगे, और बुझाये न बने !!
इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश 'ग़ालिब',
कि लगाये न लगे, और बुझाये न बने !!
Ishq par zor nahiin, hai wo aatish 'Ghalib',
Ki lagaaye na lage, aur bujhaaye na bane !!
- Ghalib
Ki lagaaye na lage, aur bujhaaye na bane !!
- Ghalib
प्रेम पर किसी का वश नहीं है। यह उस आग की तरह है जिसे हम लगाना चाहें तो लगा नही सकते, और लग जाने के बाद बुझाना चाहें तो बुझा नहीं सकते ।
इश्क़ पर बहुत साहित्य लिखा गया है। दुनिया की हर भाषा मे प्रेम को विषय वस्तु बना कर रचनायें की गईं हैं। यह रचनाएँ गद्य में भी हैं और पद्य में भी। प्रेम से जुड़े साहित्य की विपुलता को देखते हुए ढाई आखर के इस शब्द को रचनाकारों ने सबसे गहरा और असीम बना दिया गया है। कला की हर विधा में इश्क़ बड़ी प्रमुखता से मौजूद है। इश्क़ के बिना कला की कल्पना नहीं की जा सकती है। ग़ालिब इसी प्रेम के एक विशिष्ट रूप को इस शेर में कहते हैं। प्रेम में विवशता, परवशता और उन्माद को वे रेखांकित करते हुये कहते हैं कि यह उस आग की तरह है जो आप स्वयं चाहे तो भी न लगा सकते हैं और न ही खुद बुझा सकते हैं।
इश्क़ की इस गज़ब तासीर पर मीर का यह शेर पढ़ें ।
इब्तदा में ही सब मर गये यार,
कौन इश्क़ की इंतेहा लाया !!
( मीर तक़ी मीर )
कौन इश्क़ की इंतेहा लाया !!
( मीर तक़ी मीर )
प्रेम है, का दावा करने वाला प्रेमी तो प्रेम के प्रारंभ में ही फना हो गया। प्रेम के चरम तक कौन पहुंच पाया है।
यह इश्क़ हक़ीक़ी का भाव है। जहां प्रेम का अर्थ ही ईश्वर में विलीन हो जाना है । यह प्रेम की चरम स्थिति है । अमीर खुसरो के शब्दों में कहें तो,
खुसरो दरिया प्रेम का वाकी उल्टी धार,
जो उबरा सो डूब गया जो डूबा सो पार !!
( अमीर खुसरो )
जो उबरा सो डूब गया जो डूबा सो पार !!
( अमीर खुसरो )
अमीर खुसरो कव्वाली के जन्मदाता माने जाते हैं। उन्होंने सूफी संगीत या सूफियाना कलाम को एक नयी परम्परा दी है। उत्तर प्रदेश के एटा जिले के पास पटियाली के मूल रूप से रहने वाले खुसरो, दिल्ली में ख्वाजा निज़ामुद्दीन के परम शिष्यों में से एक थे। ये भी वही उसी दरगाह परिसर में दफन हैं जहां इनके गुरु हजरत निजामुद्दीन की दरगाह है।
गालिब भी खुसरो से दूर नहीं बल्कि पास ही, में सोए पड़े हैं। पर जो रौनक खुसरो के दरगाह में दिखती है वैसी हलचल गालिब के मज़ार पर नहीं है। लोहे का दरवाजा बंद रहता है। गालिब वैसे ही कहीं इश्क़ की कहानियों में खोए हुए पड़े होंगे।
© विजय शंकर सिंह
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