Friday 20 April 2018

सहारा बिरला डायरी, कलिखो पुल आत्महत्या, मेडिकल काउंसिल रिश्वत मामला और जज लोया की संदिग्ध मौत पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

सुप्रीम कोर्ट ने निम्न मामलों में जांच से इनकार कर के अपना दृष्टिकोण साफ कर दिया। ये मामले है,

• सहारा बिड़ला पेपर्स.
इन पेपर्स में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप है कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुये उनके नाम पर बिरला और सहारा ने लाखों रुपये उन्हें दिए और वह धनराशि दस्तावेज में दर्ज है।
इस मामले में दायर याचिका में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते वक्त नरेंद्र मोदी समेत कई राजनेताओं पर इस डायरी का हवाला देते हुए घूस लेने का आरोप लगाया गया था और कोर्ट से इसकी जांच के लिए आदेश देने का आग्रह किया गया था.

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महज डायरी और कागजातों में नाम लिखे होने के आधार पर जांच के आदेश नहीं दिए जा सकते. कोर्ट के मुताबिक याचिका में दिए गए तथ्य स्वीकारयोग्य नहीं हैं. इनको पुख्‍ता सुबूत के तौर पर नहीं गिना जा सकता. इस तरह के पेश दस्तावेजों और सामग्री के आधार पर संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ जांच नहीं हो सकती. इस पर जस्टिस अरुण मिश्र ने कहा कि तब तो आपको पता होगा कि जांच के आदेश देने के बाद क्या हुआ. यहां सुप्रीम कोर्ट ने जांच के आदेश दिए तो दूसरी ओर आरोपी निचली अदालत से आरोपमुक्त हो गए. जाहिर है कि हम न्यायपालिका को विरोधाभासी हालात में नहीं देखना चाहते.
मतलब जांच इस लिये नहीं की जानी चाहिये कि कहीं निचली अदालत सब को दोषमुक्त न कर दे। सुप्रीम कोर्ट न्यायपालिका को विरोधाभासी हालत में नहीं देखना नहीं चाहती।

• कलिखो पुल की सुसाईड डायरी.
कलिखो पुल अरुणांचल के मुख्यमंत्री थे। उनकी मृत्यु जो एक आत्महत्या का परिणाम थी, की भी जाँच नहीं होगी, जब कि उनका सुसाइड नोट उपलब्ध है।

इन्होंने कथित तौर पर घर पर पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली। वह सीएम आवास में ही रह रहे थे और यहीं उन्होंने फांसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली।  कालिखो पुल कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हुए थे और मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। बताया जाता है कि सत्ता जाने के बाद वह मानसिक यंत्रणा के दौर से गुजर रहे थे। फ़रवरी 2017 में उनकी पत्नी ने उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर पुल के द्वारा लिखे गए सुसाइड नोट को प्रमाण मानते हुए उनकी मौत की सी.बी.आई जांच कराने की मांग की। ऐसा माना जाता है कि सुसाइड नोट में पुल ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और उच्चतम न्यायलय के न्यायधीशों के ऊपर उन्हें परेशान करने का आरोप लगाया है |
इस सुसाइड नोट की जांच में आरोप बड़े जजों पर था तो जांच कैसे होगी ! भला जज कहीं झूठ बोलता है ! राम राम !!

• मेडिकल कॉलेज घूसकांड.
इस मामले में सीजेआई जस्टिस दीपक मिश्र पर भी कुछ आरोप  हैं।
मामला मेडिकल कॉलेजों को मान्यता देने में हुए कथित भ्रष्टाचार का है। सीबीआई ने इस बारे में एक केस दर्ज कर रखा है। आरोप है कि मेडिकल कॉलेजों से जुड़े एक मामले का फैसला एक कॉलेज के हक में करवाने के लिए दलाल विश्वनाथ अग्रवाल ने पैसे लिए। याचिकाकर्ता की मांग थी कि मामले में सुप्रीम कोर्ट के जजों पर आरोप लग रहे हैं, इसलिए पूर्व चीफ जस्टिस की निगरानी में इस मामले की एसआईटी जांच होनी चाहिए।
उन्होंने खुद ही अपने मामले की सुनवाई की। यह न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत कि व्यक्ति स्वयं अपना जज नहीं बन सकता है के सर्वथा विपरीत है। इसकी भी स्वतंत्र जाँच न हुयी और न होगी।

• जज लोया की मौत.
चूंकि इस मामले में संदेह एक असरदार अपराधी पर है तो सुप्रीम कोर्ट ने बिना जांच, बिना गवाही, बिना जिरह, बिना फोरेंसिक निष्कर्ष और बिना छानबीन के ही इस निष्कर्ष पर पहुंच गयी कि जजों के बयान को असत्य मानने का कोई कारण नहीं है। अतः जाँच नहीं होगी। जो कारण सुप्रीम कोर्ट ने गिनाये हैं उनमें सबसे बड़ा कारण यही है कि जजों की बात पर अविश्वास का कोई कारण नहीं है।

जब संदेहों की जांच कराने और जांच से कोई भागता है तो कितनी भी आप कानूनी दलीलें दें, संदेह और पुख्ता हो जाता है। यह एक मनोवैज्ञानिक निष्कर्ष है।

अवमानना की शक्ति का अहंकार आप को कभी कभी न्याय पूर्ण निर्णय लेने से बाधित भी करता होगा और हमे इसका डर, निर्भीकता से अपनी बात आप के इजलास में कहने से रोकती भी होगी, मेरे आका । इस अनावश्यक अहंकार और भय का शमन होना चाहिये। न्याय हो, यह तो ज़रूरी है ही, पर न्याय होता दिखे यह भी कम ज़रूरी नहीं है।

© विजय शंकर सिंह

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