Saturday, 21 April 2018

22 अप्रैल, पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएं और पृथ्वी सूक्त - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह


दुनिया भर के देश 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के रूप में मनाते हैं। यह दिवस पर्यावरण जागरूकता को समर्पित एक वार्षिक आयोजन है ।  इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में  पर्यावरण से जुड़े एक शैक्षणिक कार्यक्रम से की थी। यह दिवस अब 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है। यह तारीख उत्तरी गोलार्द्ध में वसंत और दक्षिणी गोलार्द्ध में शरद के मौसम की होती है।

तीव्र औद्योगिक विकास ने यूरोप और अमेरिका के अनेक सघन औद्योगिक क्षेत्रों में पर्यावरण को बहुत ही हानि पहुंचाई। नदियां, जंगल और भूमिगत जल श्रोत भी विषैले होने लगे। इन सब की वैज्ञानिक रपटों ने देश मे पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता उतपन्न की। 9 सितम्बर 1969 में सिएटल, वाशिंगटन में एक सम्मलेन का आयोजन किया गया, जिसमें विस्कोंसिन के अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन घोषणा की कि 1970 की वसंत में पर्यावरण पर राष्ट्रव्यापी जन प्रदर्शन किया जायेगा। यह जन प्रदर्शन किसी के विरुद्ध नहीं बल्कि जनता को जागरूक करने के लिये किया जाएगा। सीनेटर नेल्सन ने पर्यावरण को एक राष्ट्रीय एजेंडा में जोड़ने के लिए पहले राष्ट्रव्यापी पर्यावरण विरोध की प्रस्तावना दी। उन्होंने यह लड़ाई सीनेट में भी शुरू की । उनका उस समय की औद्योगिक और पूंजीवादी लॉबी ने बहुत विरोध किया। क्यों कि यह जागरूकता और पर्यावरण बचाओ आंदोलन से पूंजीपतियों का हित टकरा रहा था। जेराल्ड नेल्सन कहते हैं कि,
  "यह एक जुआ था, लेकिन इसने काम किया। लोग जगे, जुटे और खड़े हो गये। बाद में सरकार ने भी जन स्वास्थ्य और भावी पीढ़ी के लिये इस ओर ध्यान दिया। "

इसी बीच पर्यावरण के प्रति सचेत और एक्टिविस्ट तथा जाने माने फिल्म और टेलिविज़न अभिनेता एड्डी अलबर्ट ने पृथ्वी दिवस, के मनाये जाने के बारे में जन जागृति उतपन्न करने और जन जागरण हेतु बहुत से प्राथमिक और महत्वपूर्ण कार्य किये, जिसका उन्हें व्यापक समर्थन मिला। अल्बर्ट के योगदान को चिर स्थायी बनाने के लिये 1970 के बाद, एक रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी दिवस को अलबर्ट के जन्मदिन, 22 अप्रैल, को मनाये जाने की परंपरा पड़ी। अलबर्ट को टीवी शो ग्रीन एकर्स में प्रभावी भूमिका के लिए भी जाना जाता था, जिसने तत्कालीन अमेरिकी समाज के सांस्कृतिक और पर्यावरण चेतना पर बहुमूल्य प्रभाव डाला था ।

भारतीय परंपरा में पर्यावरण की चिंता वेदों के काल से की गयी है। समस्त प्रकृति ही पूज्य थी। प्रकृति पूजा के अनेक प्रसंग वैदिक साहित्य में भरे पड़े है।  यजुर्वेद के एक लोकप्रिय मंत्र में समूचे पर्यावरण को शान्तिमय बनाने की अद्भुत स्तुति है। स्वस्तिवाचन की इस अद्भुत ऋचा में द्युलोक, अंतरिक्ष और पृथ्वी से शान्ति की भावप्रवण प्रार्थना है।

।। ॐ द्यौ शांतिरन्तरिक्ष: शांति: पृथ्वी शांतिराप: शान्ति: रोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिब्रह्म शान्ति: सर्वं: शान्ति: शान्र्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॐ।।
( यजुर्वेद- 36.17 )

"जल शान्ति दे, औषधियां-वनस्पतियां शान्ति दें, प्रकृति की शक्तियां - विश्वदेव, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शान्ति दे। सब तरफ शान्ति हो, शान्ति भी हमें शान्ति दें।"
यहां शान्ति भी एक देवता हैं।

प्रथम वेद ऋग्वेद में भी वायु, सरिता जल, और पृथ्वी के कण कण को मधुर होने की कामना की गयी है।

"मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धव:। माध्वीर्न: सन्त्वोषधी:।। मधु नक्तमुतोष सो मधुमत्पार्थिवं रज:। मधु घौरस्तु न: पिता।। मधुमान्नो वस्पतिर्म धुमां अस्तु सूर्य:। माध्यवीर्गावो भवन्तु न:।।
( ऋग्वेद 1.90/6,7,8 )

वायु मधुमय है। नदियों का पानी मधुर हो, औषधियां, वनस्पतियां मधुर हों। माता पृथ्वी के रज कण मधुर हों, पिता आकाश मधुर हों, सूर्य रश्मियां भी मधुर हों, गाएं मधु दुग्ध दें।

भूमि पर तो अथर्ववेद में पूरा भूमि सूक्त ही है। यह भूमि, धरित्री, जो धारण करती है के महत्व को दर्शाता है। भूमि के प्रति पग पग पर कृतज्ञता व्यक्त की गयी है। पृथ्वी सूक्त में कहा गया है,

"देवता जिस भूमि की रक्षा उपासना करते हैं वह मातृभूमि हमें मधु सम्पन्न करे। इस पृथ्वी का हृदय परम आकाश के अमृत से सम्बंधित रहता है। वह भूमि हमारे राष्ट्र में तेज बल बढ़ाये। '
यामश्विनावमिमातां विष्णुयस्यां विचक्रमे। इन्द्रो यां चक्र आत्मनेऽनमित्रां शचीपतिः। सा नो भूमिर्वि सृजतां माता पुत्राय मे पयः।।10।।

यत्ते मध्यं पृथिवि यच्च नभ्यं यास्त ऊर्जस्तन्वः संवभूवुः। तासु नो धेह्यभि नः पवस्व माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः। पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु।।12।।

सूर्य और चन्द्र से इस पृथिवी का मानो मापन हो रहा है। मापन से यहां यह अभिप्राय है कि पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हुए सूर्य व चन्द्र मानो पृथिवी को माप ही रहे हैं। इन सूर्य-चन्द्र के द्वारा सर्वव्यापक प्रभु पृथिवी पर विविध वनस्पतियों को जन्म दे रहे हैं। यह पृथिवी शक्ति व प्रज्ञान के स्वामी जितेन्द्रिय पुरूष की मित्र है। यह भूमि हम पुत्रों के लिए आप्यायन के साधनभूत दुग्ध आदि पदार्थों को दे ।

पृथ्वी सूक्त के 12.1.7 व 8 श्लोक कहते हैं,
"हे पृथ्वी माता आपके हिम आच्छादित पर्वत और वन शत्रुरहित हों। आपके शरीर के पोषक तत्व हमें प्रतिष्ठा दें। यह पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र- माता भूमि पुत्रो अहं पृथिव्या:। (वही 11-12) स्तुति है।

"हे माता! सूर्य किरणें हमारे लिए वाणी लायें। आप हमें मधु रस दें, आप दो पैरों, चार पैरों वाले सहित सभी प्राणियों का पोषण करती हैं।"

यहां पृथ्वी के सभी गुणों का वर्णन है लेकिन अपनी ओर से क्षमायाचना भी है,

"हे माता हम दायें- बाएं पैर से चलते, बैठे या खड़े होने की स्थिति में दुखी न हों। सोते हुए, दायें- बाएं करवट लेते हुए, आपकी ओर पांव पसारते हुए शयन करते हैं- आप दुखी न हों। हम औषधि, बीज बोने या निकालने के लिए आपको खोदें तो आपका परिवार, घासफूस, वनस्पति फिर से तीव्र गति से उगे-बढ़े। आपके मर्म को चोट न पहुंचे।"

63 मंत्रों में गठित इस पृथ्वी सूक्त को अमरीकी विद्वान ब्लूमफील्ड ने विश्व की श्रेष्ठ कविता बताया है।
पृथ्वी दिवस का भले ही 1970 से मनाया जाना प्रारम्भ हुआ हो, पर पृथ्वी, जल, जंगल, और जीव के प्रति भारतीय वांग्मय में सदैव उदात्त और जागरूक भाव रहा है। पर्यावरण के प्रति लोग सचेत रहें इसी लिये प्रकति में देवत्व की अवधारणा की गयी है।
पृथ्वी दिवस की अंनत शुभकामनाएं !!

( वैदिक ऋचाये और उनके अर्थ, महामहोपाध्याय गोपीनाथ कविराज के एक लेख का अंश है । यह लेख मनीषी की लोकयात्रा में है। गोपीनाथ कविराज काशी के थे और प्राच्य वांग्मय पर उन्होंने बहुत काम किया है । )

© विजय शंकर सिंह

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