Sunday 29 April 2018

Ghalib - Unki ummat mein hun main / उनकी उम्मत में हूँ मैं - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 70.
उनकी उम्मत में हूँ मैं, मेरे रहे क्यों काम बंद,
वास्ते जिस राह के ' ग़ालिब ' गुम्बद ए बेदर खुला !!

Unkii ummat mein huun main, mere rahe kyon kaam band,
Waaste jis raah ke ' Ghalib ' gumbad e bedar khulaa.
- Ghalib

उम्मत - इस्लामी भाईचारा
गुम्बद ए बेदर - बिना दरवाज़े का गुम्बद या गोल छत। यहां     इसका अर्थ आकाश से है।

मेरे भी काम क्यों रुकें, आखिर मैं भी तो उनकी उम्मत ( इस्लामी भाईचारा ) में ही हूँ, जिसकी राह में सारा आकाश खुला है। यानी मेरे लिये उपलब्ध है।

ग़ालिब यहां एक धार्मिक आस्था से ओतप्रोत व्यक्ति के रूप में नज़र आते है । ग़ालिब का यह शेर उनकी आस्था का परिचय कराता है। ग़ालिब कहते हैं कि वह भी तो उसी उम्मत ए इस्लाम को माननेवालों की उम्मत के ही तो भाग हैं, जो सबके काम पूरा करता है। फिर मेरे लिये ही क्यों उसकी कृपा बन्द होगी ? बिना दर ओ दीवार , दरवाजे और दीवाल के , यह गोल गुम्बद यानी,  आकाश मेरे लिये भी तो उपलब्ध है। मैं ही क्यों उसकी, ईश्वर की कृपा से वंचित रहूंगा।

इसी से मिलता जुलता एक दोहा कबीर का भी है ।
जिसु कृपा करें तिसु पूरन साज
' कबीर ' का स्वामी गरीब नवाज !!

जिस पर ईश्वर की कृपा है उसके समस्त कार्य पूर्ण हो जाते हैं। कबीर कहते हैं, हमारे स्वामी गरीबों पर कृपा करने वाले है ।
© विजय शंकर सिंह

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