Friday, 6 April 2018

Ghalib - Ek naubahaar e naaz ko taake hai fir nigaah / इक नौबहार ए नाज़ को ताके है फिर निगाह - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 47.
इक नौबहार ए नाज़ को ताके है फिर निगाह,
चेहरा फरोग ए मय से गुलिस्ताँ किये हुये !!

Ek naubahaar e naaz ko taake hai, fir nigaah,
Chehraa farogh e may se gulistan kiye huye !!
- Ghalib

मेरी निगाह नव यौवन से युक्त किसी सुंदरी को फिर से देखना चाहती है, जिसका चेहरा मदिरापान के कारण पुष्प के समान खिल उठा हो ।

मद्यपान किसी युवती के आनन को क्या किसी पुष्प के समान उत्फुल्ल कर देता है यह तो शायर जानें या उसकी कल्पना करना पर बिल्कुल इसी थीम पर फारिग बुखारी नामक एक शायर से एक और खूबसूरत शेर लिखा है ।

शराब पी के निखरता है यूं शबाब तेरा,
जैसे शेर का मिसरा, कोई उठाता है !!
- फारिग बुखारी 

मदिरापान कर के तेरा यौवन निखर उठता है जैसे एक खूबसूरत कविता की पंक्ति कोई अपने आप कहने लगे ।
दोनों शेरों की थीम एक ही है पर दोनों के अर्थ और संप्रेषण में थोड़ा अंतर है। शराब उर्दू शायरी का अभिन्न प्रतीक है। अधिकतर खूबसूरत शेर, नज़्म, ग़ज़लें शराब के इर्द गिर्द बुनी गयी है। यह भी एक अज़ीब विसंगति है कि इस्लाम मे जहां शराब पर सख्त पाबन्दी है, वही, मय साक़ी और मयखाना के प्रतीकों से बहुत खूबसूरत और उच्च खयाल के सूफियाना कलाम भी कहे गए है। गालिब के इस शेर में भी कोई सूफियाना नुक्ता छुपा हो तो कोई आश्चर्य नहीं हो सकता है। मदिरा उर्दू साहित्य के प्रतीकों में प्रसाद या कृपा के रूप में वर्णित है। जैसे कृपा प्राप्त होने पर चेहरा खिल उठता है और सर्वत्र उजास दिखने लगता है, वैसा ही यहां कहा गया है कि मद्यपान के बाद सौंदर्य, खिले हुए पुष्प सा खिल उठता है। 

© विजय शंकर सिंह

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