ग़ालिब - 71.
उस चश्मे फुसुगर का अगर पाये इशारा,
तूती की तरह आईना गुफ्तार में आवे !!
तूती की तरह आईना गुफ्तार में आवे !!
Us chashme fusughar kaa agar paaye ishaaraa,
Tootii kii tarah aaiinaa guftaar mein aawe !!
- Ghalib
Tootii kii tarah aaiinaa guftaar mein aawe !!
- Ghalib
चश्मे फुंसुगर - जादुभरी आंखें
तूती। - एक प्रकार की छोटी चिड़िया.
गुफ्तार। - वार्तालाप करना.
तूती। - एक प्रकार की छोटी चिड़िया.
गुफ्तार। - वार्तालाप करना.
जादू भरी आंखों का इशारा अगर उस आईने को मिल जाय तो वह आईना तूती की तरह बोल पड़े। बात करने लगे।
आंखों पर बहुत लाजवाब शायरियां हुई है। हिंदी में भी और अन्य भाषाओं में आंखों की सुंदरता पर बहुत कुछ कहा गया है। खंजन नयन से लेकर मृग नयनी तक की उपमाएं, फारसी में कहें तो आहू जैसे चश्म की बात खूब की गई है। यह शेर ग़ालिब के अतिश्योक्ति अलंकार का उदाहरण है। आईना निर्जीव है। वह बोल नहीं सकता । पर उस दर्पण में अपना दीदार करने वाली आंखों का जादू भरा संकेत पाते ही वह निर्जीव दर्पण बोल उठता है। वह जीवंत हो उठता है। यही ग़ालिब का अंदाज़ ए बयाँ है जिसके लिये वह खुद को अलग मानते हैं और हैं भी।
यहां प्रशंसा आंखों की है, या उसके जादू भरे अंदाज़ की या फिर दर्पण की या फिर तीनों की या फिर मिर्ज़ा ग़ालिब की ? हम सब अपना अपना अनुमान लगा सकते हैं ।
इसी तरह का एक शेर सौदा का है। उसे भी देखें,
कैफियत ए चश्म उसकी, मुझे याद है सौदा,
सागर को मेरे हाँथ से लेना कि, चला में !!
( सौदा )
सागर को मेरे हाँथ से लेना कि, चला में !!
( सौदा )
मुझे उसके आंखों की हालत का अंदाज़ याद आ गया। अब तुम यह प्याला थाम लो। मैं चला । उन मदभरी मदिर आंखों की याद से ही मुझे नशा आ गया । अब मुझे इस प्याले की ज़रूरत नहीं रही।
सौदा तो जीव थे। इंसान थे। मदिर आंखों के नशे में वे जाम भूल गए। यह सम्भव भी है। पर ग़ालिब ने तो, दर्पण को ही जीवित कर दिया। उनके आंखों की फुसुगरी तो सच मे अद्भुत है।
© विजय शंकर सिंह
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