ग़ालिब - 42.
आराइश ए जमाल से फारिग नहीं हनोज़,
पेश ए नज़र है आईना, दायम नक़ाब में !!
पेश ए नज़र है आईना, दायम नक़ाब में !!
Aaraaish e jamaal se faarig nahin hanoz,
Pesh e nazar hai aaiinaa, daayam naqaab mein !!
- Ghalib.
Pesh e nazar hai aaiinaa, daayam naqaab mein !!
- Ghalib.
आराइश-श्रृंगारकरना.सुसज्जितहोना.सजावट.
जमाल -सौंदर्य.
फारिग - मुक्त.आज़ादहोंना.
हनोज़ -अभी.
जमाल -सौंदर्य.
फारिग - मुक्त.आज़ादहोंना.
हनोज़ -अभी.
श्रृंगार की लालसा से तू अभी मुक्त नहीं हुआ है। परदे मे रहते हुये भी तू अपने सामने सदैव दर्पण रखता है. तू अब भी श्रृंगार अर्थात सजने संवरने में लिप्त है। अपने सामने पड़े दर्पण के सहारे तू सदैव श्रृंगार में रत हैं।
© विजय शंकर सिंह
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