Thursday, 26 April 2018

Ghalib - Umra bhar dekhaa kiye marne kii raah / उम्र भर देखा किये मरने की राह - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 67.
उम्र भर देखा किये मरने की राह,
मर गये, पर देखिये, दिखलाये क्या !!

Umra bhar dekhaa kiye marne kii raah,
Margaye, par dekhiye, dikhalaayen kyaa !!
- Ghalib.

जीवन भर मृत्यु की प्रतीक्षा में ही रह कर हम, सब उद्योग करते रहे, और जब मर जाते हैं तो सब हम यहीं छोड़ कर चले गए, अब उसे क्या दिखलाएँ। अब उसे कौन देखने वाला है।

मनुष्य जीवन भर मृत्यु की प्रतीक्षा करते करते कुछ न कुछ जोड़ने की जुगत में लगा रहता है। धीरे धीरे मृत्यु का समय भी आ जाता है। तब भी उसकी तृष्णा नहीं जाती है। वह कुछ न कुछ बटोरने में लगा ही रहता है। और अंत मे जब मृत्यु आती है तो सब कुछ जोड़ना घटाना यही ऐसे ही पड़ा रह जाता है। और वह यहां से रुखसत हो जाता है। जीवन भर वह कुछ पाने और कुछ खोने की उधेड़बुन में ही रह जाता है।

इस पर मेरे मित्र श्योदान सिंह जी ने विदुर नीति का एक सारगर्भित श्लोक भेजा है, उसे भी मैं जोड़ दे रहा हूं । वह श्लोक भी ग़ालिब के इस शेर के कथ्य से मिलता जुलता है।

आदमी में यह प्रवृत्ति  अंतिम सांस तक रहती है।शायद प्रकृति  प्रदत्त है।इसका भी कुछ अच्छा उद्देश्य हो सकता है।हम समझ नहीं पाते हैं।

दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत् ।
यावज्जीवं च तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत् ॥
( विदुर नीति )

दिनभर ऐसा काम करो जिससे रात में चैन की नींद आ सके ।
वैसे ही जीवन भर ऐसा काम करो जिससे मृत्यु पश्चात सुख मिले अर्थात सद्गति  प्राप्त हो ।

© विजय शंकर सिंह

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