ग़ालिब - 46
इक खेल है, औरंगे सुलेमां मेरे नज़दीक,
इक बात है , ऐजाजे मसीहा मेरे आगे !!
इक खेल है, औरंगे सुलेमां मेरे नज़दीक,
इक बात है , ऐजाजे मसीहा मेरे आगे !!
Ek khel hai, aurange sulemaan mere nazdeeq,
Ek baat hai aizaaje maseeha mere aage !!
- Ghalib
Ek baat hai aizaaje maseeha mere aage !!
- Ghalib
सुलेमान - एक बादशाह था, जिसके बहुत सी कहानियां प्रचलित है।
ऐजाज़ - चमत्कार
मसीहा - ईसा मसीह
ऐजाज़ - चमत्कार
मसीहा - ईसा मसीह
सुलेमान बादशाह का सिंहासन मेरे लिये खिलवाड़ सरीखा है और ईसा मसीह के चमत्कार मेरे लिए मामूली सी चीज है ।
गालिब का आत्मसम्मान भाव बहुत प्रसिद्ध है। वह खुद को किसी के सामने नीचा न देख सकते थे और न सुन सकते थे। आत्मसम्मान भाव की पराकाष्ठा उन्हें लोगों में अहंकारी के रूप में चर्चित कर देती थी। जब वे कहते हैं कि दुनिया मे और भी शायर लेखक अच्छे होंगे पर ग़ालिब की कथ्य शैली बिल्कुल अलग है तो यह उनका आत्म सम्मान ही नहीं बल्कि उनका आत्मविश्वास और अदब पर उनकी पकड़ भी बोलती है।
इसी से मिलता जुलता एक शेर इन्शा का भी है। वे भी खुद को आला मुकाम पर रखते है, जरा इसे पढिये,
एक तिफ्ले दबिस्तान है फलातून मेरे आगे,
क्या मुंह है अरस्तू जो करे चूँ मेरे आगे !!
क्या मुंह है अरस्तू जो करे चूँ मेरे आगे !!
फलातून, यानी अफलातून यानी प्लेटो, मेरे सामने स्कूल में पढ़ने वाले एक बच्चे के समान है और अरस्तू, एरिस्टोटल की क्या हिम्मत कि मेरे सामने कुछ बोले।
इन दोनों ही शेरों में तीन नाम आये हैं। सुलेमान, अफलातून और अरस्तू का । सुलेमान तो बादशाह था, अफलातून और अरस्तू तो प्रख्यात यूनानी दार्शनिक । तीनों के क्षेत्र अलग, रुचियाँ अलग और उपलब्धियां अलग । यही हाल ग़ालिब और इन्शा का भी। ग़ालिब भी जिस क्षेत्र में नामचीन हैं उसमें वे खुद को सुलेमान और चमत्कार दिखाने वाले ईसा से कम नहीं समझते हैं। ग़ालिब के कलाम भला किस चमत्कार से कम हैं।
© विजय शंकर सिंह
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