ग़ालिब - 52.
इस सादगी पर कौन न मर जाये ऐ खुदा,
लड़ते हैं, मगर हाँथ में तलवार नहीं है !!
इस सादगी पर कौन न मर जाये ऐ खुदा,
लड़ते हैं, मगर हाँथ में तलवार नहीं है !!
Is sadagee par kaun na mar jaay ai Khuda,
Ladte hain magar, haanth mein talwaar nahin hai !!
Ghalib.
Ladte hain magar, haanth mein talwaar nahin hai !!
Ghalib.
उनके भोलेपन पर कौन न कुर्बान हो जाय ऐ ईश्वर, वे लड़ तो रहे हैं, पर उनके हाँथ में कुछ भी नहीं है ।
यह प्रेयसी की मासूमियत, भोलेपन और सरल भाव के साथ उसकी झगड़ने की अदा को लक्षित कर के यह शेर कहा गया है। कहते हैं, कि दिल्ली दरबार मे मिर्ज़ा ग़ालिब के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी ज़ौक़ थे। ज़ौक़ खुद भी एक बड़े शायर थे और मिर्ज़ा के प्रतिद्वंद्वी भी थे। दरबार मे बादशाह के निकट पहुंचने की प्रतिद्वंद्विता में उनके मुसाहिबों की आपसी लाग डाट, चुगली आदि चलती रहती है। यह तब भी थी और आज भी है। मिर्ज़ा के एक दोस्त थे जो ज़ौक़ और मिर्ज़ा दोनों के ही मुखबिर खास थे। आप इसे डबल एजेंट कह सकते हैं। ज़ौक़ को ही लक्ष्य कर के यह बात कही गयी है।
© विजय शंकर सिंह
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