ग़ालिब - 53
इश्क़ की राह में हैं चर्खे मकौकब की वह चाल,
सुस्त रौ जैसे कोई आबला पा होता है !!
सुस्त रौ जैसे कोई आबला पा होता है !!
Ishq kii raah mein hai charkhe mqaukab kii wah chaal,
Sust rau jaise koi aabalaa paa hotaa hai !!
- Ghalib
Sust rau jaise koi aabalaa paa hotaa hai !!
- Ghalib
चर्खे मकौकब - तारो भरा गगन
आबला पा - पांव के छाले
आबला पा - पांव के छाले
प्रेम के उद्वेग में आकाश के तारों की गति ( समय की गति ) इतनी धीमी हो जाती है कि लगता है कोई छालों भरा पांव लिये एहतियात और बच बचा कर ज़मीन पर चल रहा हो।
यह शेर समय की गति पर है। काल सदैव गतिमान रहता है। वह कभी थमता नहीं है। लेकिन कभी कभी वही काल थमा हुआ या रुक रुक कर घिसटता हुआ गुजरता दिखता है तो कभी वह इतनी द्रुत गति से गुजर जाता है कि लगता है कि काश वह थम जाता है। प्रेम और सुख के क्षणों में समय की गति का पता ही नहीं चलता है कि कब वह बीत गया। लेकिन वही समय विरह और दुख के क्षणों में पालथी मार के बैठा प्रतीत होने लगता है।
इस शेर में समय की गति को ही कहा गया है कि जब प्रतीक्षा या विरह या दुःख की घड़ी होती है तो वह इतने धीमे से गुजरती है जैसे कोई व्यक्ति जिसके पांव में छाले पड़े हों और वह संभल संभल कर कदम रख रहा है, यानी वक़्त गुजर ही नहीं रहा है । शेर में भी यह तारों के माध्यम से कहा गया है कि, इश्क़ की राह में तारों भरी रात बीत ही नहीं रही है। यहां इश्क़ जीवन और रात दुख के प्रतीक के रूप में भी रख कर इस शेर की व्याख्या की जा सकती है ।
सच तो यह है कि चाहे संयोग हो या विरह, दुख हो या सुख, समय की गति न थमती है , न तीव्र होती है और न ही मंथर। वह तो अपनी गति से अग्रसर है। पर हमें वह अपनी सुविधा, इच्छा और उद्देश्य के अनुरूप ही गुजरते हुये दिखती है। सारे मनोभाव मन से ही नियंत्रित होते है। गति का यह स्वरूप भी मन के ही अनुसार है।
© विजय शंकर सिंह
हार्दिक बधाई सर्!
ReplyDeleteअद्भुत व्याख्या।
इस क्रम को जारी रखिये