Friday 20 April 2018

Ghalib - Isharat e paaraa e dil / इशरत ए पारा ए दिल - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 61.
इशरत ए पारा ए दिल, ज़ख़्म ए तमन्ना खाना,
लज्ज़त ए रीश ए जिगर, ग़र्क़ ए नमकदां होना !!

Isharat e paaraa e dil, zakhm e tamannaa khaanaa,
Lajzat e reesh e jigar, garq e namak daan honaa !!
- Ghalib

दिल के टुकड़ों का आनन्द यही है कि वे कामनाओं की चोट खायें। दिल के घाव का सुख यही है कि हम उसे नमकदानी में डुबों दे। ताकि उन घावों पर नमक की जलन होती रहे। यह  ही एक आंनद है। ग़ालिब की बात मानें तो !

कामनाएं या इच्छाएं कभी भी समाप्त नहीं होती। एक की पूर्ति होती नहीं है कि अनेक फिर उतपन्न हो जाती है। हर कामना दुःख देती है। वह पूरी हो जाय तो फिर दूसरी ख्वाहिश की खलिश। हज़ारों ख्वाहिशें हैं और हर ख्वाहिश पर दम निकलने की सज़ा। इस कष्ट, वेदना, का असर दिल पर निरन्तर पड़ता रहता है। लेकिन यह सारी कामनायें जीवन और ज़िंदा दिखने का सुबूत भी तो है। कामनाओं और आंनद का यह विचित्र तालमेल है। जब तक जीवन है इच्छाएं रहेंगी और उन इच्छाओँ की एक स्वाभाविक प्रकृति  है कि वे वेदनाएं देती रहेंगी और उन वेदनाओं में भी हमें आंनद की खोज करते रहना है। हमें हर हाल में आंनद से जीना चाहिये। चाहे कामनाओं की पूर्ति हो न हो । सभी इच्छाओं की पूर्ति तो असंभव है। पर अधूरी और न पूरी हुई इच्छाओँ के गम में जी कर तो जीवन को विषादमय नहीं बनाया जा सकता है न । दुःख में भी सुख ढूंढने का यह एक नायाब सोच है।

इसी कामना, दुख, सुख पर सौदा का यह शेर पढ़ें । सौदा अपने शेर में एक मजेदार बात कहते हैं ।

प्यारे बुरा न मानों तो इक बात कहूँ मैं,
किस लुत्फ की उम्मीद पर यह ज़ोर सहूँ मैं !!
( सौदा )

प्रिय, यदि तुम बुरा न मानों तो एक बात पूछूं, किस आंनद की उम्मीद पर मैं तुम्हारे यह सब अत्याचार सहूँ ?

सौदा, ग़ालिब की तुलना में थोड़ा लेनदेन की बात करते हैं। वे प्रेमिका के सारे सितम सहने को तैयार हैं, बशर्ते उन्हें यह भरोसा हो जाय कि उनके प्रेम का लक्ष्य मिल जाएगा। नहीं तो साफ कहते है कि किस उम्मीद पर मै तुम्हारे सारे नाज़ नखरे उठाऊं और सितम सहूँ। ग़ालिब तो नाज़ नखरे और सितम में भी आंनद ढूंढ लेते हैं और खुश हैं ।

© विजय शंकर सिंह

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