Tuesday 17 April 2018

खलील जिब्रान की लघुकथा - अंर्तदृष्टि / विजय शंकर सिंह

मैंने और मेरे दोस्त ने देखा कि मंदिर के साये में एक अंधा अकेला बैठा था. मेरा दोस्त बोला, 
“देश के सबसे बुद्दिमान आदमी से मिलो.”
मैंने दोस्त को छोड़ा अर अंधे के पास जाकर उसका अभिवादन किया. फिर बातचीत शुरू हुई.
कुछ देर बाद मैंने कहा, 
“मेरे पूछने का बुरा न मानना, आप अंधे कब हुए?”
“जन्म से अंधा हूं.” उसने कहा.
“और आप विशेषज्ञ किस विषय के हैं?” मैंने पूछा.
“खगोलविद हूं.” उसने कहा.
फिर अपना हाथ अपनी छाती पर रखकर वह बोला, “ये सारे सूर्य, चन्द्र और तारे मुझे दिखाई देते हैं.”
खलील जिब्रान
***
© विजय शंकर सिंह

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