ग़ालिब - 113.
क्यों न ठहरे हदक ए नावक ए बेदाद, कि हम,
आप उठा लाते हैं, पर तीर खता होता !!
Kyon na thahare hadak e naawak e bedaad, ki ham,
Aap uthaa laate hain, gar teer khataa hotaa !!
- Ghalib
हम अत्याचार रूपी तीर के निशाने के लिये, खुद ही समर्पित है। अगर तीर टेढ़ा हो या निशाने से चूक जाय तो हम खुद ही उठा कर तीर चलाने वाले को दे देंगे।
ग़ालिब का यह कमाल का शेर है। ग़ालिब ज़ुल्म के आगे सीना तान कर खड़े हैं, वे तीर यानी ज़ुल्म के निशाने पर खुद ही आ कर खड़े हो गए हैं और यह चुनौती दे रहे हैं कि, अगर दुश्मन का छोड़ा हुआ तीर कहीं निशाने से चूक भी गया तो वे खुद ही तीर उठा कर दुश्मन को दे देंगे कि, ले एक बार और कोशिश कर। यह आत्मविश्वास है और दुश्मन को एक चुनौती भी।
इसी से मिलता जुलता आतिश का यह शेर पढ़े।
तिरछी नज़र से तायर ए दिल हो चुका शिकार,
जब तीर कब पड़ेगा, उड़ेगा निशाना क्या !!
( आतिश )
तेरी तिरछी नज़र से मेरा हृदय पक्षी घायल हो गया है। अब जब तीर चलेगा और वह टेढ़ा हो तो निशाना उड़ कर ही तीर के समक्ष आ जायेगा।
( विजय शंकर सिंह )
#vss
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