Friday, 20 November 2020

इतिहास - आइये औड़िहार की बात करते हैं

पूर्वांचल में भेड़ियों का प्रकोप बहुत अधिक था । भेड़िये छोटे बच्चों को उठाकर ले जाते थे । हूण भी टिड्डी दल की तरह गाहे-ब-गाहे भारत में आ धमकते थे । ये मध्य एशिया से आते थे । हूण भी पहले बच्चों को मारते थे । बच्चों को मारकर ये अपने शत्रु को समूल उखाड़ फेंकते थे " न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी " की तर्ज पर । गुप्त वंश के राजाओं की लड़ाई हूणों से अक्सर होती थी । हूणों की क्रूरता से तंग आकर माताओं ने भेड़ियों का नाम भी हूणों पर रख दिया था - हुणार । बच्चा जब तंग करता था तो माँ कहा करती थी - शांत बैठो , नहीं तो हुणार आ जाएगा । आज भी पूर्वांचल में कोई भेड़िया नहीं कहता । सभी हुणार कहते हैं । 

सिकंदर की मौत के बाद हूणों ने यूरोप , रोम और रूस पर आक्रमण कर दिया था । हूणों के आक्रमण से रोम मटियामेट हो चुका था । रुस की वोल्गा नदी रक्तरंजित थी । चीन के लोग भी भयाक्रांत हो गये । चीनी लोग "दि ग्रेट वाॅल आॅफ चाइना " के निर्माण में जुट गये थे । हूणों ने तक्षशिला को रौंदकर पाटलिपुत्र की तरफ रुख किया ।  उस समय पाटलिपुत्र पर स्कंदगुप्त का शासन था । वह गुप्त वंश का आठवां राजा था । वह कुमार गुप्त का बेटा था । उसके पास चतुरंगिणी सेना थी । स्कंदगुप्त ने पाटलिपुत्र से पहले वाराणसी के पास गंगा के तट पर हूणों को और आगे बढ़ने से रोका था ।

455 ईसवी में स्कंद गुप्त ने हूणों का समूल नाश किया । दो लाख से ज्यादा हुण मारे गये । मुट्ठी भर हूण बचे थे । कुछ तो यहीं बस गये । कुछ मध्य एशिया की तरफ निकल गये जहाँ उन्होंने जाकर अपनी पराजय की कहानी सुनाई । इस विजय के बाद  स्कंद गुप्त ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण किया । उसने जिस जगह पर हूणों को हराया था , उस जगह का नाम "हुणहार"रखा । मतलब इस जगह पर हूण हारे थे । यही हुणहार आजकल अपभ्रंश होकर औड़िहार बन गया है । 

औड़िहार वाराणसी के निकट गाजीपुर जनपद का एक हिस्सा है । यह अब एक टाऊन की शकल अख्तियार कर चुका है । स्कंदगुप्त ने हूणों को हराकर गाजीपुर में हीं एक विजय स्तम्भ का निर्माण कराया था । विजय स्तम्भ वाली जगह को "सैदपुर भीतरी " के नाम से जाना जाता है । इस विजय स्तम्भ को देखने के लिए देश विदेश से सैलानी आते हैं । स्कंदगुप्त ने 452 - 467 ईसवी तक शासन किया था । अगले 50 वर्षों तक हूणों ने फिर भारत पर हमला करने का दुःसाहस नहीं किया था ।

 ( ई.एस डी ओझा )

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