गांधी नाम राम का जपते थे, लेकिन हिंसा को अहिंसा से खत्म करने का मंत्र उन्होंने शिव से सीखा। इसलिए मैं गांधी को वैष्णव नहीं, शैव मानती हूं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि सत्याग्रह का पहला प्रयोग काली पर किया गया था। करनेवाला कोई और नहीं महादेव थे. महादेव का दर्शन कृष्ण के उस दर्शन से एकदम विपरीत है जो उन्होंने कुरुक्षेत्र में अर्जुन से कहा था. गीता शांति के लिए हथियार उठाने को प्रेरित करती है, जबकि शिव कहते हैं कि युद्ध और अशांति को हथियार से खत्म नहीं किया जा सकता है.
शिव का दर्शन कहता है कि महिषासुर के रक्तबीजों को खत्म करते हुए काली हिंसा की जिस चरम सीमा पर पहुंच गयी थी, उसे हिंसा से खत्म नहीं जा सकता है। उनकी नजर में काली को रोकने का हथियार केवल सत्याग्रह था। यह आश्चर्य का विषय है कि गांधीवाद पर काम करनेवाले किसी शोधकर्ता ने सत्याग्रह की परिकल्पना पर कोई शोध नहीं किया। हिंदू धर्म की व्याख्या करनेवाले किसी विचारक ने शिव के सत्याग्रह की चर्चा नहीं की। काली पूजा दरअसल उस सत्याग्रह की वर्षगांठ है, जिसने दुनिया को पहली बार बताया कि अतिहिंसा पर केवल अहिंसा से काबू पाया जा सकता है। इतिहिंसा पर काबू पाने का सत्याग्रह ही सबसे बडा हथियार है...
..
गांधी ने शिव से केवल सत्याग्रह का मंत्र नहीं सीखा। आप अगर गौर से देखेंगे तो आप गांधी के जीवन पर शिव का प्रभाव अधिकतम दिखेगा। शिव पितांबर धारी नहीं हैं लेकिन विष्णु के आराध्य हैं। शिव स्वर्ग या क्षीर सागर में निवास नहीं करते उनसे मिलने तमाम देवता कैलाश स्थित उनके आश्रम में जाते हैं जहां वो अपने परिवार के साथ सादा जीवन जीते हैं। गांधी का साधा जीवन हमें उनके पितांबर धारी विष्णु से ज्यादा बाघ की खाल लपेटे शिव के करीब लगता है। शिव जिस न्यूनतम जरुरत में जीने का उदाहरण हैं गांधी उसी की तो बात करते हैं..गांधी तो विष्णु के शरीर पर आभूषण की आलोचना करते हैं..इंद्र के जीवन शैली को पागल दौड करार देते है। वो शिव ही है जिसे गांधी अपने जीवन में उतारने को व्याकुल दिखते हैं।
.
गांधी का समाजवाद भी शिव से प्रभावित है। आर्य के देवताओं में शिव अकेले हैं जिन्हें अनार्य भी पूजते हैं। गांधी ने जिस हरिजन की बात की है उसे सबसे पहले पूजने का अधिकार शिव ने ही दिया। सनातनी कर्मकांड से शिव खुद को अलग रखे। शिव समस्त मानव के लिए हैं। शिव के लिए कोई अछूत नहीं है..गांधी उसी जगत की बात करते थे जिसके आराध्य शिव हैं।
.
गांधी का नेतृत्व भी हमें विष्णु के बदले शिव के करीब दिखता है। आजादी की लडाई भी एक समुद्र मंथन ही था। सत्ता रूपी अमृत हर कोई पाना चाहा और उसे पाने के लिए जिससे जो बन पडा वो किया, लेकिन जहर किसके शरीर ने ग्रहण किया। ईश्वर और राक्षस दोनों के हिस्से का जहर तो अकेले शिव के शरीर में चला गया ठीक उसी प्रकार जैसे हिंदू और मुस्लिमों के हिस्से का जहर नाथू की गोली के रूप में गांधी के शरीर में चला गया। शिव का नेतृत्व कुछ पाने का नहीं अपना सबकुछ दे देने का था..गांधी कहां शिव से अलग हैं..मुझे तो बिडला हाउस में सोया हुआ गांधी शिव दिखते हैं और दांतों से जीव काटती हुई हिंसा...
( कुमुद सिंह )
No comments:
Post a Comment