Tuesday, 24 November 2020

शब्दवेध (27) श्रुति

भाषा के लिए भारोपीय भाषाओं में कितने शब्द प्रयोग में आते हैं उसका हमें पता नही। भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त शब्दों का भी पता नही। यहाँ तक कि संस्कृत की क्षत्रछाया में आने वाली बोलियों  में प्रचलित शब्दों का भी ज्ञान नहीं। तथ्य संकलन किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो, यह अपने आप में बहुत बड़ा काम है और इस दिशा में जिन साधनों, जितने समय और जैसी एकाग्रता की अपेक्षा है उसका मुझमें अभाव भी रहा है।

जिन तथ्यों की जानकारी मुझे है उसका भी पूरा उपयोग नहीं कर पाता। समय की सीमा के अतिरिक्त पाठकों के सिर दर्द की भी चिंता रहती है। संख्या बढ़ने से बोझ बढ़ता है; परिणाम में अंतर नही आता। परन्तु इस परिधि में भी, शब्दों के आपसी संबंध को समझना कम टेढ़ा और साहसिक काम नही है। 

उदाहरण के लिए हम तमिऴ के चोल्/शोल् - बोलना; शोल् मोऴि - मुहावरा, लोकोक्ति, को लें। हमारी आज की जानकारी के अनुसार यह उन बोलियों में से किसी का शब्द है, जिसका विलय सं. और त. आदि में  हुआ था।  क्या शोल का हिं. शोर - ऊँची आवाज में बहुत से  लोगों का एक साथ बोलना से; शोर का श्रव =बहुत से लोगों द्वारा कहे जाने (तु. नाम> नामी, सरनाम या नामवर आदि ) से,  श्रवण -  सुनना, सुनने की इन्द्रिय,, श्रुति, श्रव्य, श्रुत, अल्प- /बहु-- श्रुत- वान/ -ज्ञ, श्रुधी से कोई संबंध है या नहीं और यदि है तो इसका इतिहास कितना पीछे जाता है। 

यहाँ हम भाषा के अनुनादी सिद्धान्त के एक नियम की याद दिला दें कि जिन वस्तुओं और स्रोतों से कोई ध्वनि नहीं निकलती उनकी संज्ञा उनसे किसी भी दृष्टि निकटता, संबंध या विरोध प्रदर्शित करने वाले ऐसे स्रोतों से मिलती है जिनसे ध्वनि पैदा होती है, इसलिए कान और सुनने के समस्त  कार्य व्यापार से लिए मौखिक उच्चार से संज्ञा मिलना स्वाभाविक  ही था। 

परन्तु क्या यह मुख से उत्पन्न किसी ध्वनि से व्युत्पन्न शब्द है?  फिर बोलने के लिए इसका प्रयोग क्यों नहीं होता? सुनने के लिए ही क्याें। हम खींच तान से कुछ भी सिद्ध करने क्यों न लगें, सामान्यतः मुख से उच्चरित किसी ध्वनि को इसके निकट नहीं पाते।  

जिस स्रोत से इससे मिलती जुलती ध्वनि निकलती प्रतीत होती है वह जल है जिससे चर/सर स्र/श्र/श्ल की ध्वनि निकलती  कल्पित की गई है। सं. के आचार्य किसी भी स्रोत से उत्पन्न ध्वनि को, विशेषतः जिसका वाचिक आशय में प्रयोग हुआ हो, शब्दन/भाषण या कथन मानते रहे हैं यह अर्थपाठ से ऐसी धातुओं की विशाल संख्या से ही समझा जा सकता है। अतः शोर, शोल्, श्रव, श्रुत, श्रव, श्रवण, श्रावक सभी केे नाद का स्रोत जल - स्राव, स्रोत, सोता, श्रावण - बरसात  का मौसम सभी का अनुनादी स्रोत जल है न कि मुख।

भगवान सिंह 
( Bhagwan Singh )

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