आज फिदेल कास्त्रो की पुण्यतिथि है। 25 नवम्बर 2016 को उनका निधन हवाना, क्यूबा में हो गया था। सैनिक वर्दी में आम प्रदर्शनों की अगुवाई करते हुए कास्त्रो की छवि हमेशा एक सर्वकालिक क्रांतिकारी की रही है। वे ज्यादातर सैनिक पोशाक में देखे जाते रहे हैं। कास्त्रो को अक्सर "कमांडेंट" के रूप में उल्लेखित किया गया है, साथ में उन्हें, उपनाम "एल काबल्लो ", जिसका अर्थ है "हार्स" यानि घोड़ा कहकर भी पुकारा जाता रहा है। इस उपनाम से प्रभावित कास्त्रो जब अपने लोगो के साथ रात में हवाना की सड़कों पर घूमते, तब जोर से चिल्लाते कि "लो आ गया घोड़ा"। क्रांतिकारी अभियान के दौरान कास्त्रो के बागी साथी उन्हें "द जाइंट" के नाम से बुलाते थे। आम तौर पर घंटों चलनेवाले कास्त्रो के जोशीले भाषण को सुनने के लिए लोगों का बड़ा हुजूम इकट्ठा हो जाता। सर्वशक्तिमान अमेरिका के इतने निकट रहते हुए भी क्यूबा के इस कालजयी क्रांतिकारी की हत्या करने की हर चंद कोशिश अमेरिका की सीआईए ने किया था लेकिन वह सफल न हो सकी। भारत के सम्बंध क्यूबा से बहुत घनिष्ठ रहे है। जनसंख्या और क्षेत्रफल में, एक छोटे देश के राष्ट्रपति होने के बावजूद, फिदेल एक वैश्विक नेता थे। वे गुटनिरपेक्ष देशों के प्रमुख और तीसरी दुनिया जो अब इतिहास बन गयी है की एक मजबूत आवाज़ थे। आज के वैश्विक परिदृश्य के बारे में फिदेल कास्त्रो का यह संस्मरण बेहद रोचक और दुनिया की सियासत में उनके स्थान को रेखांकित करता है।
■
दुनिया का दौरा करके हम अभी लौट रहे हैं। इस दौरे में हमें एक क्षण का भी आराम नहीं मिला। यह दौरा जरूरी था। इराक में युध्द के लगभग निश्चित खतरे तथा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संकट के गहराने के बीच 24 और 25 फरवरी को क्वालालंपुर, मलेशिया में महत्वपूर्ण शिखर बैठक थी। शिखर बैठक से पहले और बाद में वियतनाम और चीन में बहुत सारे नजदीकी दोस्तों से मिलना था। जापान से भी बहुत से महत्वपूर्ण और मूल्यवान मित्रों से निमंत्रण मिला था इसलिए वहां रुकना भी जरूरी था। इन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 5 मार्च को राष्ट्रीय एसेंबली का गठन, एसेंबली और कौंसिल ऑफ स्टेट के नेतृत्व और उनके अध्यक्षों तथा उपाध्यक्षों का चुनाव होना था।
मौसम की वजह से हम 3 मार्च को हिरोशिमा से नहीं निकल पाए। इस बिलंब को देखते हुए हमने क्यूबा में अपने कामरेडों से कहा कि वे बैठक को 6 मार्च तक के लिए स्थगित कर दें।
मुझे हवाई जहाज से लौटते हुए ये पंक्तियां लिखनी पड़ीं। इन दिनों दुनिया की यात्रा आसान नहीं है। यह यात्रा समझदारी से करना, फ्लाइट योजनाओं के बारे में बताना और आवश्यक प्राधिकरण आदि के लिए इंतजार करना और भी मुश्किल है। आई एल-62 जहाजों की उम्र, उनके फ्लाइट उपकरणों, उनके ईंधन उपभोग तथा शोर के कारण उनमें यात्रा और भी जटिल हो जाती है। जब वे हवाई पट्टी पर उतरते हैं या उड़ने के लिए पट्टी पर दौड़ते हैं तो बहुत शोर करते हैं। लेकिन वे उड़ते जरूर हैं और जब उड़ते हैं तो उतरते भी अवश्य हैं।
32 साल पहले जब मैं चिली के राष्ट्रपति साल्वाडोर अलेंदे से मिलने गया तो ऐसे ही जहाज में बैठा था। तब से मैं इन जहाजों में बैठ रहा हूं। ये पुराने सोवियत ट्रैक्टरों की तरह मजबूत हैं जिन्हें मानो क्यूबाई चालकों की परीक्षा के लिए ही इनके पायलट ओलंपिक चैंपियन हैं। इनकी मरम्मत करने वाले टेक्नीशियन और मैकेनिक दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं। हम पूरी दुनिया में दूसरी बार इस जहाज में घूमे हैं। मैं पूरी गंभीरता के साथ पूर्व सोवियत संघ की इन मशीनों की तारीफ करता हूं। मैं उनका आभारी हूं और साथी क्यूबावासियों और पर्यटकों से आग्रह करता हूं कि इन जहाजों में यात्रा करें। ये दुनिया के सर्वाधिक सुरक्षित जहाज हैं। मैं इसका जीता जागता प्रमाण हूं।
इस दुनिया में आज आप किसी चीज को बहुत गंभीरता से नहीं ले सकते। यदि आपने ऐसा किया तो दिल के दौरे या दिमाग की नस फटने का खतरा पैदा हो जाएगा।आवश्यक यात्रा रिपोर्ट हमारा शिष्टमंडल 19 फरवरी को आधी रात से थोड़ा पहले रवाना हुआ। रास्ते में हम केवल पेरिस में ही रुक सकते थे। वहां हम थोड़ी देर के लिए रुके। हमें शहर में एक होटल में थोड़ी देर के लिए विश्राम करना था। जगह बेकार थी। मैं सो नहीं सका। मैंने एक ऊंची मंजिल पर जाकर इस सुंदर और प्रसिध्द शहर के कुछ हिस्सों को देखा। मैंने तीन से छह मंजिली इमारतों की छतों को देखा। उनमें कलाकारी की गई लगती थी। मैं यह जानना चाहता था कि 150 साल पहले उन्हें किस चीज से बनाया होगा।
मैंने हवाना और उसकी समस्याओं को याद किया। ये इमारतें सफेद भूरे रंग की थीं। किसी ने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। कुछ किलोमीटर दूर एक जबर्दस्त भवनसमूह था जिसने सौंदर्य भंग कर दिया था। दाईं ओर दफ्तर तथा रहने के लिए बनाई गई ऊंची इमारतों ने नजारा खराब कर दिया था। मुझे क्रांति से कुछ महीने पहले एक समय सरकार के उपनिवेशी महल रहे भवन के पीछे बनाए गए हेलीपार्ट की याद आ गई। मुझे पहली बार हर किसी के प्रशंसा पात्र एफिल टावर और लार्क द त्रिम्फे बेइज्जत और बौनी चीजें लगीं। मुझे अचानक लगा कि मैं कुंठित शहर नियोजक हूं। पेरिस में मैंने न किसी को बुलाया और न किसी से बात की। जब मैं वहां से चला तो फ्रांस की शानदार क्रांति और उनका शौर्यपूर्ण इतिहास, जिसके बारे में मैंने युवावस्था में पढ़ा था, मेरे जहन में मौजूद था। अमरीकी सरकार के अपमानकारी एकतरफा आधिपत्य के खिलाफ उसके वीरतापूर्ण रुख की मैंने मन ही मन प्रशंसा की।
हम चीन के सुदूर पश्चिम क्षेत्र में उरुमुकी में रुके। वास्तुकला की दृष्टि से यह बहुत सुंदर हवाई अड्डा था। दोस्ताना मेहमाननवाजी। परिष्कृत संस्कृति। दस घंटे उपरांत सूर्यास्त के बाद हम अपने प्रिय तथा वीर वियतनाम की राजधानी हनोई पहुंचे। पिछली बार आठ साल पहले 1995 में जब मैं यहां आया था, उसके बाद यह शहर काफी बदल गया था। गलियों में चहल-पहल और भरपूर रोशनी थी। पैरों से चलने वाली एक भी साइकल नजर नहीं आई। उनकी जगह मोटरसाइकलों ने ले ली थी। गलियों में कारे ही कारें थीं। इसके भविष्य, ईंधन, प्रदूषण और अन्य विपत्तियों के बारे सोचकर मुझे थोड़ी तकलीफ हुई।
हर जगह सुख-साधन संपन्न होटल बन गए थे। कारखानों की तादात बहुत बढ़ गई
थी। उनके विदेशी मालिक प्रबंधन के कड़े पूंजीवादी नियमों का पालन करते हैं। लेकिन यह कम्युनिस्ट देश है जो कर वसूल करता है, आय वितरित करता है, नौकरियां पैदा करता है, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधा का विकास करता है तथा साथ ही अपनी शान और परंपराओं की दृढ़ता के साथ रक्षा करता है। तेल, कोयला से बिजली बनाने वाले संयंत्र, पनबिजली संयंत्र तथा अन्य बुनियादी उद्योग सरकार के हाथों में हैं। उत्कृष्ट मानव क्रांति। जो क्रांति के सृजक रहे हैं उनको बहुत सम्मान दिया जाता है। हो चि मिन्ह बहुत बुलंद मिसाल हैं और रहेंगे।
मैंने मेधावी रणनीतिज्ञ गुएन गियाप के साथ विस्तार से बात की। उनकी याददाश्त उत्कृष्ट है। मैंने उदासी तथा अनुराग के साथ महान व्यक्तियों को याद किया जैसे कि फाम वान डोंग तथा अन्य जो गुजर चुके हैं लेकिन लोगों के अनंत स्नेह के पात्र हैं। पुराने और नए नेताओं में असीम प्यार और दोस्ती है। सभी क्षेत्रों में हमारे संबंध प्रगाढ़ और विस्तृत हुए हैं।
हम दोनों देशों की स्थितियों में अंतर विचार योग्य है। हम ऐसे पड़ोसियों से घिरे हैं जिनके पास हमें देने के लिए कुछ भी नहीं हैं। विशेष रूप से एक पड़ोसी, दुनिया का सबसे अमीर राष्ट्र हमारे खिलाफ जबर्दस्त नाकाबंदी किए हुए है। लेकिन हमारा भी दृढ़ इरादा है कि हम अपने देश के धन और लाभों का अधिकतम हिस्सा वर्तमान तथा भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखेंगे लेकिन ये मतभेद हमारी सुंदर और शाश्वत मित्रता का किसी भी रूप में अतिक्रमण नहीं करते।
वियतनाम से हम मलेशिया गए। यह अद्भुत देश है। इसके विशाल प्राकृतिक संसाधन और असाधारण रूप से प्रतिभा संपन्न नेता, जिसने बेलगाम पूंजीवाद के विकास से स्वयं को दूर रखा, इसकी प्रगति के कारण हैं। उन्होंने तीन मुख्य प्रजाति समूहों अर्थात मलयों, भारतीयों और चीनियों में एकता कायम की। औद्योगिक देश जापान तथा दुनिया के दूसरे देशों ने आकर्षित होकर यहां निवेश किया। कड़े नियम और विनिमय लागू किए गए। धन का यथासंभव न्यायपूर्ण वितरण हुआ। देश ने 30 वर्षों में बड़ी तेजी के साथ विकास किया। शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधा की ओर ध्यान दिया जाता है। देश में शांति रही। वियतनाम, जापान, लाओस और कंबोडिया की तरह उस पर पहले उपनिवेशवाद और फिर साम्राज्यवाद का हमला नहीं हुआ।
दक्षिण पूर्वी एशिया में आए प्रलयंकारी संकट ने जब मलेशिया पर आघात किया तो उसने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक तथा ऐसे ही अन्य संगठनों की बात मानने से इनकार कर दिया तथा मुद्रा विनिमय नियंत्रण लागू किए और पूंजी पलायन को रोककर देश और उसकी दौलत को बचाया। यह हमारे गोलार्ध में लंबे समय से दु:ख उठा रही दुनिया से अलग दुनिया है। मलेशिया ने वास्तविक राष्ट्रीय पूंजीवाद का विकास किया है जिसने आय में व्यापक विषमता के बावजूद लोगों का कल्याण किया है। देश का बहुत सम्मान है। पश्चिम तथा नई आर्थिक व्यवस्था के लिए वह सिर दर्द और गलत मिसाल बन गया है।
चीन। वहां हम दोपहर को पहुंचे। वियतनाम की तरह ही क्यूबाई शिष्टमंडल को इतना ध्यान और सम्मान कहीं नहीं दिया गया। 26 फरवरी को सरकारी स्वागत, रात्रि भोज। पार्टी और सरकार के पूर्व और वर्तमान नेताओं, जिनमें से कुछ अभी भी शासन में हैं, जियांग जेमिन, हु जिंताओ, लि पेंग, झू रोंग जी, वेन जिआबाओ और उनके सहायकों से भेंट। एक के बाद एक, यह सिलसिला 27 तारीख तक चलता रहा। 28 फरवरी की सुबह बीजिंग टेक्नोलॉजी पार्क का दौरा। इसके बाद पांडा टेलीविजन फैक्टरी देखने के लिए राष्ट्रपति जियांग जेमिन के साथ ननजिंग का दौरा। अपने जीवन में पहली बार जंबो जैट में बैठा। जियांगसु प्रांत के पार्टी प्रधान सचिव के साथ बैठक। शंघाई के लिए प्रस्थान। विदाई।
वियतनाम और चीन में क्यूबाई शिष्टमंडल का आतिथ्य सत्कार क्रांति के पूरे इतिहास में अभूतपूर्व है। यह वास्तव में विशिष्ट अतिथियों, व्यक्तियों, सच्चे मित्रों के साथ विस्तार से और गहराई के साथ बात करने का अवसर था। इससे हमारे देशों के बीच दोस्ती और मजबूत हुई। क्यूबाई क्रांति के जिन दिनों उसके टिक पाने में किसी का भी विश्वास नहीं था उन बहुत मुश्किल दिनों में चीन और वियतनाम हमारे बहुत अच्छे दोस्त थे। आज उनके अवाम और उनकी सरकारें इस छोटे से देश को आदर देते हैं तथा उसकी प्रशंसा करते हैं जो अपनी जबर्दस्त शक्ति से पूरी दुनिया पर आधिपत्य कायम कर लेने वाली एकमात्र महाशक्ति के निकट स्थित होने के बावजूद दृढ़ता के साथ खड़ा है।
हममें से कोई एक व्यक्ति इस आदर का हकदार नहीं है। यह उन बहादुर और यशस्वी लोगों को मिलना चाहिए जिन्होंने पूरी गरिमा के साथ अपना कर्तव्य पूरा किया।
हमारी बातचीत द्विपक्षीय हित के मुद्दों और हमारे आर्थिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संबंधों में नवीनतम बदलाव तक ही सीमित नहीं थी। हमने आज के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर पूरी दिलचस्पी, बेबाकी और आपसी समझ के साथ बात की।
चीन से हम जापान गए। वहां हमारा आतिथ्य सत्कार और सम्मान किया गया। हम वहां कुछ देर के लिए रुके थे लेकिन पुराने और सच्चे दोस्तों ने हमारा स्वागत किया। हमने तोमोयोशी कोंडो, अध्यक्ष, क्यूबा जापान आर्थिक कॉनफ्रेंस; श्री वातानुकी, अध्यक्ष, नेशनल डाइट ऑफ जापान; श्री मिशूजूका, अध्यक्ष, संसदीय मित्रता लीग से लंबी बात की। शिष्टाचार के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री रियूतारो हाशीमोतो और प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइजुमी के साथ बैठक भी हुई। जापानियों की पहल पर हमने कोरियाई प्रायद्वीप में तनावपूर्ण स्थिति, जो सभी के लिए चिंता का विषय है, से जुड़े मामलों पर भी चर्चा की। इस बातचीत के बारे में विस्तृत सूचना हम उत्तरी कोरिया की सरकार को देंगे। क्रांति की जीत के दिनों से ही उनके साथ हमारे दोस्तीपूर्ण कूटनीतिक संबंध रहे हैं।
2 मार्च को हम हिरोशिमा गए। हम हिरोशिमा पीस मेमोरियल म्यूजियम भी गए। हिरोशिमा प्रांत के गवर्नर के साथ हमने प्राइवेट लंच किया। हिरोशिमा के नागरिकों का जो नरसंहार हुआ था उसे देखकर हम कितने विह्वल हुए उसे बताने के लिए शब्द और समय मेरे पास नहीं हैं। जो कुछ वहां हुआ था उसे समझने में मानव कल्पना समर्थ नहीं हो सकती है।
हिरोशिमा पर हुआ हमला एकदम अनावश्यक था और उसे कभी भी नैतिक दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता। सैनिक तौर पर जापान पहले ही हार चुका था। ओसिनिया, दक्षिण पूर्व एशिया तथा जापानी प्रभुसत्ता वाले इलाके फिर से वापस लिए जा चुके थे। मनचूरिया में लाल सेना लगातार आगे बढ़ रही थी। एक भी अमरीकी जान गंवाए बगैर यह युध्द कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाता। केवल अल्टीमेटम देने, या हद से हद लड़ाई के क्षेत्र या जापान के एक दो सैनिक ठिकानों पर इस हथियार के प्रयोग से युध्द समाप्त हो जाता भले ही अतिवादी जापानी नेता कितना ही दबााव देते या हठधर्मी दिखाते रहते।
हालांकि पर्ल हार्बर पर अनुचित और अचानक हमला करके जापान ने युध्द शुरू किया, लेकिन इससे बच्चों, स्त्रियों, वृध्दों तथा हर उम्र के बेकसूर लोगों की भयंकर हत्या का औचित्य नहीं बन जाता।जापान के महान और उदार लोगों ने यह अपराध करने वाले लोगों के खिलाफ घृणा का एक भी शब्द नहीं कहा। इसके विपरीत उन्होंने शांति स्मारक बनवाया है ताकि फिर कभी ऐसा न हो। लाखों लोगों को वहां जाना चाहिए जिससे यह पता चल सके कि वहां क्या हुआ।
वहां चे (ग्वेरा) का चित्र देखकर मैं भाव विह्वल हो गया। यह मानवता के खिलाफ निकृष्टतम अपराध की इस अमर यादगार पर फूल चढ़ाते हुए खींचा गया चित्र था।
हमारी जाति की इस पीढ़ी का दुर्भाग्य है कि उसे अभूतपूर्व तथा अवांछनीय स्थितियों में रहना पड़ रहा है। हमें विश्वास है कि मानव जाति उन पर काबू पा लेगी। हमारे युग से पहले ऐसा लगता था कि मनुष्यों का घटनाओं पर नियंत्रण है लेकिन अब ऐसा लगता है कि घटनाओं का मनुष्यों पर नियंत्रण है।
हमारे इस दौरे के साथ-साथ कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जिन्होंने चारों ओर अनिश्चितता और असुरक्षा के बीज बो दिए हैं। प्रभुसत्ता और स्वतंत्रता काल्पनिक बातें हो गई हैं। सत्य और नैतिकता मनुष्यों का प्रथम अधिकार या विशेषताएं होनी चाहिए लेकिन उनकी जगह लगातार कम हो रही है। तार के जरिए विवरण, अखबार, रेडियो, टेलीविजन, सैलफोन, इंटरनेट दुनिया के हर कोने से हर दिन हर मिनट खबरों का अंबार लगा रहे हैं। घटनाओं से तारतम्य बनाए रखना बहुत मुश्किल है।
समाचारों के इस सागर में मानव बुध्दि अपनी दिशा खो सकती है। लेकिन अस्तित्व की चिंता उससे प्रतिक्रिया कराती है।दुनिया के राष्ट्रों ने पहले कभी खुद को इस कदर एक महाशक्ति का नेतृत्व करने वाले लोगों की शक्ति और स्वेच्छा के सामने झुका हुआ नहीं पाया था। उनके पास निरंकुश शक्ति है। उनके दर्शन, उनके राजनीतिक विचारों, नैतिकता संबंधी उनकी धारणाओं के बारे में किसी को जरा सा भी भान नहीं है। उनके निर्णयों के बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती और न ही उनको चुनौती दी जा सकती है। उनके हर बयान में नष्ट कर देने या मार देने की उनकी ताकत और क्षमता का अहसास मिल जाता है। इसकी वजह से बहुत से देशों के नेताओं में भय और बेचैनी है क्योंकि महाशक्ति के ये नेता ना सुनने के आदी नहीं हैं। उनके पास जबर्दस्त सैनिक, राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी शक्ति है।
दुनिया पर नियमों के शासन तथा विभिन्न देशों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले किसी संगठन का सपना चूर-चूर हो रहा है।
धरती से मीटरों ऊपर हवा में मैंने तार के जरिए यह वृत्तांत पढ़ा,
'अपने साप्ताहिक रेडियो संबोधन में राष्ट्रपति बुश ने संयुक्त राष्ट्र महासंघ के प्रति अपना अनादर व्यक्त किया और बताया कि वह 'अपने मित्रों और साथियों के प्रति दायित्व' के कारण ही इस संगठन से परामर्श करते हैं, इसलिए नहीं कि वहां के विचार-विमर्श का उनके लिए कोई मोल है।'
पूरी दुनिया के लोग भारी संख्या में सार्वभौमिक जुल्म के भूमंडलीकरण के खिलाफ बोल रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र ऐसा संगठन है जो लाखों युवा अमरीकियों सहित 5 करोड़ लोगों की जान ले लेने वाले युध्द के बाद अस्तित्व में आया। इसलिए दुनिया के सभी देशों और सरकारों की नजरों में उसका महत्व होना चाहिए। इसमें बहुत कमियां हैं और कई मामलों में यह पुराना पड़ गया है। दुनिया के सभी देशों का प्रतिनिधित्व करने वाली इसकी महासभा केवल विचार-विमर्श का मंच है। उसके पास कोई वास्तविक शक्ति नहीं है, वह केवल राय जाहिर कर सकती है। सुरक्षा परिषद कथित रूप में कार्यपालक निकाय है जहां केवल पांच विशिष्ट देशों का मत चलता है। इनमें से भी केवल एक देश वीटो के जरिए बाकी सब के मत को रद्द कर सकता है। ऐसे ही एक सर्वाधिक शक्ति संपन्न देश ने अपने उद्देश्यों के लिए अनेक बार इस शक्ति का प्रयोग किया। हमारे पास फिर भी वही एक संगठन है।
इसको खत्म करने से इतिहास का वही युग लौट आएगा जो नाजीवाद के उदय से पहले था। इसकी परिणति भयंकर महाविपत्ति में होगी। 20वीं शताब्दी के आखिरी दो तिहाई हिस्से में जो हुआ, यह हममें से कुछ ने देखा है। हमने नए किस्म के साम्राज्य का जन्म और तेजी से विकास होते हुए देखा है जो कि संपूर्ण और सर्वग्रासी है। यह प्रसिध्द रोमन साम्राज्य से हजार गुना शक्तिशाली है तथा अपने मौजूदा परम मित्र, जिसकी छाया किसी समय ब्रिटिश साम्राज्य हुआ करता था, से सौ गुना अधिक शक्तिशाली है। केवल डर, अंधेपन और अज्ञान के कारण स्पष्ट चीज दिखाई नहीं दे रही है।
यह समस्या का केवल निराशावादी पक्ष है। वास्तविकता इससे अलग हो सकती है। इससे पहले इतनी कम अवधि में पूरी दुनिया में ऐसे जबर्दस्त प्रदर्शन नहीं हुए जैसे कि इराक के खिलाफ युध्द की घोषणा के बाद हुए।
अमरीकी सरकार के दो महत्वपूर्ण साथी इंग्लैंड और स्पेन संकट में फंस गए हैं। दोनों देशों में भारी संख्या में जनमत युध्द के खिलाफ है। यह सही है कि इराक ने दो बहुत गंभीरऔर अनुचित कार्य किएईरान पर हमला और कुवैत पर कब्जा। यह भी सही है कि इस देश से जबर्दस्त प्रतिशोध लिए गए हैं। इसके लाखों बच्चे भूख और बीमारी से मर गए हैं। इसके लोगों ने वर्षों तक लगातार बमबारी झेली है। उसमें बिलकुल भी सैनिक क्षमता नहीं है जो अमरीका तथा इस क्षेत्र में उसके मित्रों के लिए खतरा बन सके। यह घिनौने उद्देश्य वाला अनावश्यक युध्द होगा। यदि यह युध्द संयुक्त राष्ट्र के अनुमोदन के बगैर हुआ तो अमरीकी अवाम के एक महत्वपूर्ण तबके सहित पूरी दुनिया के लोग इसका विरोध करेंगे।
विश्व अर्थव्यवस्था पहले से ही मौजूद जबर्दस्त संकट से नहीं उबर पाई है। इस युध्द के उसके लिए गंभीर परिणाम होंगे। इसके बाद दुनिया के किसी देश के लिए सुरक्षा और शांति नहीं रहेगी। विश्व जनमत भी विरोध कर रहा है। यह उनकी और दुनिया के अन्य देशों की सुरक्षा के लिए जरूरी है। दुनिया को अपनी ताकत से धमकाने, अपने नए हथियारों के परीक्षण या अपनी सेनाओं को प्रशिक्षण देने के लिए अमरीका को युध्द की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह हलचल सब जगह देखी जा सकती है लेकिन मलेशिया में गुट निरपेक्ष आंदोलन की शिखर बैठक में यह बिलकुल स्पष्ट थी।
यह बहुत महत्वपूर्ण बैठक थी जिसमें देश तथा शासन प्रमुखों ने तहजीबपूर्ण भाषा में अपने विचार रखे, निष्कपट घोषणाएं कीं और उत्तरदायित्व की भावना प्रदर्शित की। डॉ. महाथिर ने बड़े व्यवस्थित, गंभीर और सक्षम तरीके से विचार-विमर्श का संचालन किया।
अमरीका और उसकी वित्तीय संस्थाओं पर तीसरी दुनिया के देशों की पूरी तरह से निरर्भता के कारण कुछ समझदारी भी दिखाई गई क्योंकि उनको छेड़ने का मतलब है सरकार का खात्मा या अर्थव्यवस्था को अस्थिर बनाना।
सम्मेलन के दौरान दिए गए भाषणों में कुछ बातों पर लगभग एकमत था।
एक : इराक के खिलाफ युध्द नहीं छेड़ा जाना चाहिए, संयुक्त राष्ट्र की अनुमति के बगैर तो बिलकुल नहीं।
दो : इराक सुरक्षा परिषद द्वारा स्वीकार किए गए विनियमों का पालन करे।
तीन : किसी को आशा नहीं थी कि युध्द टाला जा सकता है।
चार : उम्मीद के अनुसार अल्पविकास, गरीबी, भूख, अज्ञान, बीमारी, अदा न किया जा सकने वाला विदेशी ऋण, अस्थिरता पैदा करने वाले अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के प्रयास तथा तीसरी दुनिया पर आघात करने वाली अन्य असंख्य विपदाओं का विश्लेषण किया गया और उनकी निंदा की गई।
हमारे शिष्टमंडल ने शिखर सम्मेलन के सभी सत्रों में हिस्सा लिया तथा दूसरे शिष्टमंडलों से भी मिला। हमसे सूचना देने, अनुभव बांटने और कुछ खास क्षेत्रों में सहयोग करने के लिए कहा गया।
हमने देखा कि किस तरह से बिल्कुल अलग-अलग संस्कृतियों, धार्मिक विश्वासों और राजनीतिक विचारों वाले व्यक्तियों ने हमारे प्रति आत्मीयता और विश्वास दिखाया।
हमारे सामने यह बात स्पष्ट हो गई कि अपने भाईचारे, सिध्दांतों के लिए दृढ़ प्रतिबध्दता के कारण हमारे लोगों की प्रशंसा की जाती है।
हमने उनमें से बहुतों को वेनेजुएला में फासीवादी तख्तापलट के बारे में बताया तथा इस बारे में दस्तावेजी सूचना देने का प्रस्ताव किया। इस घटना के कारण प्रति दिन तीस लाख बैरल तेल का उत्पादन रुक गया जिससे दुनिया को बहुत नुकसान पहुंचा। बोलिवरियन अवाम की जबर्दस्त जीत के कारण तेल उत्पादन शुरू हो गया है। हमने धनी और गरीब राष्ट्रों को स्पष्ट किया कि मध्य पूर्व जैसे नाजुक क्षेत्र में युध्द कितना जोखिमपूर्ण होगा। हमने दूसरों को अपने इस विश्वास के बारे में बताया कि यदि इराक सुरक्षा परिषद ही नहीं बल्कि अमरीकाजहां बहुतों को संदेह है और उसके परम मित्रों ग्रेट ब्रिटेन, स्पेन और इटलीजहां बहुत लोग विरोध कर रहे हैं, सहित पूरी दुनिया की विधायिकाओं को, संसदों को, गुट निरपेक्ष देशों के नेताओं, सामाजिक संगठनों के नेताओं को यह दिखा सके कि वह संयुक्त राष्ट्र के संकल्प सहित सभी अपेक्षाओं को पूरा कर रहा है तो युध्द टाला जा सकता है।
इराक की शांति और अखंडता के लिए लड़ाई सैनिक नहीं बल्कि राजनीतिक है। यदि सत्य की स्थापना और झूठ का पर्दाफाश हो जाए तो इस क्षेत्र में शांति बनी रह सकती है। इसमें अमरीकी अवाम का भी लाभ होगा। इस युध्द के एकमात्र विजेता हथियारों के निर्माता होंगे या वे लोग जो यह असंभव सपना संजोए हुए हैं कि 6.3 अरब मानवों, जिनमें से बहुसंख्यक भूखे और गरीब हैं, पर ताकत के जोर से शासन चलाया जा सकता है।
अपनी अल समद मिसाइलों को नष्ट करने के इराकी सरकार के फैसले का हम समर्थन करते हैं। हम इराक से आग्रह करते हैं कि यदि उसके पास कोई रासायनिक या जैव हथियार बचा है तो वह उसे नष्ट कर दे।
अमरीकी सरकार के पास इराक पर हमले का कोई कानूनी या नैतिक बहाना नहीं है विशेषकर ऐसी स्थिति में जब दुनिया फिलिस्तीनी अवाम का नरसंहार देख रही है और इज्रायल के पास अमरीका द्वारा प्रदान किए गए सैकड़ों परमाणु हथियार और उन्हें चलाने के साधन उपलब्ध हैं।
दुनिया के सामने अकाटय रूप में प्रदर्शित किया गया संपूर्ण सत्य ही इराकी अवाम को नैतिक ताकत और पूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समर्थन देगा जिससे कि वे अपने खून के आखिरी कतरे तक अपने देश और उसकी अखंडता की रक्षा कर सकें।
अपने समय की स्पष्ट समझ के अभाव में इस घटना, जिसने हमें यहां इकट्ठा किया है, का केवल सापेक्ष महत्व होगा। क्यूबा दुनिया के कुछ खास देशों में से है जिसकी विशेष स्थितियां हैं। शेष दुनिया की तरह हमारे लिए भी भूमंडलीय जोखिम हैं लेकिन कोई भी देश दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मौजूद समस्याओं से जूझने तथा इस धरती पर मानवीय और न्यायपूर्ण समाज स्थापित करने के लिए योजना बनाने तथा सपने संजोने के मामले में हमसे बेहतर तैयार नहीं है। आंतरिक और बाह्य खतरों का मुकाबला करने में इससे अधिक एकताबध्द, अधिक अटल या अधिक सक्षम और कोई देश नहीं है।
जब मैं आंतरिक खतरों की बात करता हूं तो इसका मतलब राजनीतिक खतरे नहीं हैं। पिछले 44 वर्ष के वीरतापूर्ण संघर्ष से हमने इतनी ताकत और जागरूकता पैदा कर दी है कि साम्राज्यवाद की सेवा में तत्पर विश्वव्यापी विनाश और अस्थिरीकरण के कपटी आचार्य हमारी आंतरिक व्यवस्था और हमारी क्रांति के समाजवादी रास्ते में तोड़-फोड़ नहीं कर सकते।
जब एक अत्यंत शक्तिशाली विदेशी सत्ता ने हमसे यह रास्ता छोड़ देने को कहा तो हमारी जनता ने उत्तर में देश के संविधान में क्यूबा की समाजवादी प्रकृति पर कायम रहने की धारा जोड़ दी। अब अपनी क्षुद्र और हास्यास्पद उम्मीद को पूरा करने के लिए वे चालबाजी और झूठ पर उतर आए हैं।
आंतरिक खतरों से मेरा आशय सामाजिक या नैतिक खतरों से है जो हमारे लोगों को प्रभावित कर सकते हैं और उनकी सुरक्षा, शिक्षा या स्वास्थ्य को जोखिम में डाल सकते हैं। सब जानते हैं कि धूम्रपान की आदत के खिलाफ हमने कितनी जद्दोजहद की है और इस आदत को बहुत हद तक कम कर दिया है। इसी प्रकार हम शराब पीने की बुराई या गर्भ के दौरान शराब पीने जैसी दुर्भाग्यपूर्ण आदत के खिलाफ लड़ रहे हैं क्योंकि इसकी वजह से मंद बुध्दि या गंभीर रूप से अपंग बच्चे पैदा हो सकते हैं।
नशीली दवाओं के सेवन की बुराई भी सिर उठा रही है। इन दवाओं के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए हमारे तटों पर इनकी सफाई की जाती है। इसमें से कुछ पदार्थ हमारे देश में पहुंच जाता है। धरती पर अधिकांश समाजों में लगी इस बीमारी को अपने यहां आने से रोकने तथा उसका उन्मूलन करने के लिए आवश्यक उपाय करने में हमने एक मिनट की हिचकिचाहट भी नहीं दिखाई। हमें पूरी तरह से मालूम था कि इस मुद्दे के थोड़े से भी उल्लेख से यह प्रचार हो जाएगा कि इस मामले में हमारी स्थिति बहुत खराब है जबकि हमारे समाज की शुध्दता को देखते हुए हमारी स्थिति सर्वोत्तम है। फिर भी हम इस मुद्दे को यहां उठाने से नहीं हिचकिचा रहे हैं क्योंकि हमारी सभी लड़ाइयां लोगों की हिम्मत पर लड़ी और जीती गई हैं।
और भी बहुत सी लड़ाइयां लड़ी जानी हैं। इनमें से कुछ काफी लंबा समय लेंगी क्योकि ये पुरानी आदतों और रिवाजों से ताल्लुक रखती हैं या वो कुछ ऐसे भौतिक तत्वों पर निर्भर हैं जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। लेकिन हमारे पास भी अचूक हथियार हैं। इनमें सबसे बड़ा हथियार शिक्षा है। हालांकि इस क्षेत्र में हमने किसी भी राष्ट्र से अधिक बड़े प्रयास किए हैं लेकिन इसकी अपार संभावनाओं को समझने में हम अभी भी बहुत पीछे हैं। हम स्वयं द्वारा निर्मित मानव पूंजी का पूरा उपयोग नहीं कर पाए हैं। हर चीज का कायाकल्प होगा और शीघ्र ही हम संसार के सर्वाधिक शिक्षित और सुसंस्कृत लोग होंगे। क्यूबा के बाहर और भीतर किसी को भी इस बात में संदेह नहीं है।
स्वास्थ्य सुविधा के क्षेत्र में भी उसी तेजी के साथ प्रगति की जा रही है। इस मामले में भी दुनिया में हमारा अग्रणी स्थान है। यहां गत वर्षों में संचित मानव पूंजी और अनुभव निर्णायक तत्व होंगे। संस्कृति, कला और विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति की जाएगी।
खेलों में हम सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचेंगे।हमारे सामने बड़े कार्यों के ये कुछ उदाहरण हैं। किसी की भी उपेक्षा नहीं की जाएगी।लेकिन हमेशा यही सही रहता है कि काम खुद अपनी दास्तान बतलाए।पतनशील साम्राज्यवादी पूंजीवादी व्यवस्था अपनी नव उदार भूमंडलीकरण की अवस्था में पहुंच गई है। मानवता के सामने मौजूद विकराल समस्याओं का उसके पास कोई समाधान नहीं है। मुश्किल से एक शताब्दी में इन समस्याओं में चार गुनी वृध्दि हो गई है। इस व्यवस्था का कोई भविष्य नहीं है। यह प्रकृति को नष्ट कर रही है और भूखों की संख्या बढ़ा रही है। बहुत से क्षेत्रों में हमारा शानदार और मानवीय अनुभव दुनिया के बहुत से देशों के लिए उपयोगी होगा।
विभिन्न कारणों से जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण क्षति, आर्थिक संकट, महामारी और तूफान आदि को देखते हुए हमारे भौतिक, वैज्ञानिक और तकनीकी संसाधन अधिक प्रचुर हैं। लोगों की सुरक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। इससे बड़ी प्राथमिकता नहीं हो सकती है।
विदेश से राजनीतिक खतरों और हमलों के बावजूद अपने देश और समाजवाद की रक्षा करने का हमारा दृढ़ निश्चय तनिक भी कमजोर नहीं पड़ेगा। इसके विपरीत हम जन युध्द की अपनी अवधारणाओं के गंभीर अध्ययन और उन्हें उत्तरोत्तर आदर्श बनाने में लगे हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि कोई भी तकनीक, कितनी भी परिष्कृत हो इनसान को हरा नहीं सकती। साथ ही हमारा निश्चय और हमारी चेतना लगातार बलशाली होगी।
विचारों की हमारी लड़ाई में एक मिनट का भी आराम नहीं किया जाएगा जो कि हमारा सबसे शक्तिशाली राजनीतिक हथियार है। पिछली 24 फरवरी को जब हम मार्ती के आह्वान पर चलाए गए पिछले स्वतंत्रता संघर्ष की यादगार में आयोजन कर रहे थे तो जेम्स केसन नामक एक व्यक्ति, जो यूनाइटेड स्टेट्स इंटेरेस्ट्स सेक्शन इन क्यूबा का प्रमुख है, अमरीकी सरकार द्वारा पोषित प्रतिक्रांतिकारियों के एक समूह से मिला। वे क्राई ऑफ बेयर की यादगार मनाने के लिए मिले थे। इस तारीख का देशभक्तिपूर्ण महत्व है और हमारे लोगों के लिए यह बहुत पवित्र दिन है। दूसरे कूटनीतिज्ञों को भी निमंत्रण भेजा गया लेकिन केवल यही महाशय पधारे।
लेकिन उसने चुपचाप इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया। जब उससे एक पत्रकार ने पूछा कि क्या उसकी वहां मौजूदगी से क्यूबा सरकार के आरोप सही सिध्द नहीं हो जाते हैं तो केसन ने उत्तर दिया, 'नहीं, क्योंकि उन्होंने सभी कूटनीतिज्ञों को निमंत्रण भेजा है और
हमारा देश लोकतंत्र और बेहतर जीवन के लिए लोगों के संघर्ष का समर्थन करता है। मैं अतिथि के रूप में यहां आया हूं।'
एक और पत्रकार ने पूछा कि क्या विरोधियों के बीच उसकी उपस्थिति को क्यूबा सरकार द्वारा अमित्रता का कार्य नहीं माना जाएगा क्योंकि वह विरोधियों को तोड़-फोड़ करने वाला समूह बताती है तो उसने कहा, 'मुझे परवाह नहीं है।'
बहुत अच्छी स्पेनिश में उसने यह भी कहा, 'दु:ख की बात है कि क्यूबा सरकार डरी हुई है। उसे अंतरात्मा की स्वतंत्रता से डर है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से डर है, मानवाधिकारों से डर है। इस समूह ने दिखा दिया है कि वे निडर क्यूबावासी हैं। वे जानते हैं कि लोकतंत्र आ रहा है। हम उन्हें यह बताना चाहते हैं कि वे अकेले नहीं हैं। पूरी दुनिया उनके साथ है। हमारा देश लोकतंत्र तथा बेहतर जीवन और न्याय के लिए लड़ने वाले लोगों का समर्थन करता है।'
यह समाचार में लिखा था, 'विदेशी कूटनीतिज्ञ अकसर विरोधियों से मिलते हैं लेकिन वे सामान्यत: जन समारोहों में नहीं आते और सरकार के बारे में अपनी राय प्रेस को नहीं बताते।'
'मैं यहां एक अतिथि के रूप में आया हूं। मैं पूरे देश में घूमते हुए स्वतंत्रता और न्याय की चाह रखने वाले लोगों से मिलूंगा।'
कोई भी देख सकता है कि यह एकदम निर्लज्ज और ढीठतापूर्ण उकसावा है। जाहिर है कि डर कूटनीतिक कवच पहने इस बदमाश और उससे ये सब बातें कहने देने वाले लोगों को है। उसकी हरकतों से ही पता चल जाता है कि इस 'देश भक्तिपूर्ण' समारोह में कितनी शराब चली।
वास्तव में क्यूबा केवल इतना डरा हुआ है कि वह इस अजीब अधिकारी के बारे में शांति के साथ निर्णय लेगा। इंटेरेस्ट्स सेक्शन में काम करने वाले अमरीकी खुफिया एजेंट उसे यह बता सकते हैं कि क्यूबा का इस कार्यालय के बगैर भी काम चल जाएगा जो प्रतिक्रांतिकारी पैदा करने का ठिकाना और हमारे देश के खिलाफ तोड़-फोड़ के लिए कमांड चौकी बन गया है। स्विट्जरलैंड के अधिकारी, जो अमरीकी हितों को देखते थे, ने कई वर्षों तक उत्कृष्ट कार्य किया। उन्होंने खुफिया या तोड़-फोड़ का काम नहीं किया। यदि वे इस तरह ढीठ घोषणाओं द्वारा हमको उकसाना चाहते हैं तो ईमानदारी और साहस दिखाते हुए इसे स्वीकार करें। किसी न किसी दिन अमरीकी अवाम अपने देश का सच्चा राजदूत हमारे यहां भेजेंगे जो स्पेनी शूरवीरों के बारे में उनके विचारों के अनुसार 'निडर और निष्कलंक' होगा।
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में हम हाल के वर्षों में अर्जित नए अनुभव का प्रयोग करेंगे। तेल उत्पादन और बचत में वृध्दि होगी।
अब हम अपने उद्यमों की सक्षमता बढ़ाने और उनमें अनुशासन लाने की बेहतर स्थिति में हैं। ये उद्यम दुर्लभ मुद्रा के मामले में वित्तीय दृष्टि से आत्मनिर्भरता पर अधिक जोर देने के कारण ऐसी गलतियां कर देते हैं जिससे देश के केंद्रीय संसाधनों पर असर पड़ता है।
हमने बहुत सीखा है और बहुत कुछ सीखेंगे। राजस्व के नए स्रोत पैदा हो रहे हैं। संसाधनों का मुस्तैदी से प्रबंधन किया जाना चाहिए। पुरानी और नई बुरी आदतें छोड़ी जानी चाहिए। ईमानदारी और सक्षमता के लिए लगातार सतर्कता जरूरी है।
पिछले सदन ने इतिहास का एक महत्वपूर्ण चरण पूरा किया। इस सदन को भी पीछे नहीं रहना चाहिए। हमारे इतिहास में पिछले चुनाव सर्वोत्तम थे। यह मैं हर दृष्टि से सुधरे आंकड़ों या गुणवत्ता को देखकर नहीं कह रहा हूं। गुणवत्ता पहले ही बहुत अच्छी थी। यह मैं मतदाताओं के असाधारण उत्साह को देखते हुए कह रहा हूं। यह उत्साह मैंने अपनी अनुभवी आंखों से देखा है जो कि विचारों की लड़ाई और हमारी राजनीतिक संस्कृति के तेजी से विकास के कारण आया है।
कामरेड डिप्टियो, मैं आपका तथा अपने प्रिय अवाम का कौंसिल ऑफ स्टेट की ओर से तथा अपनी ओर से शुक्रगुजार हूं कि आपने 50 वर्षों लंबे क्रांतिकारी संघर्ष, जो पहली लड़ाई के दिन से ही शुरू नहीं हुआ था, के बाद एक बार फिर हममें अपना विश्वास व्यक्त किया है। हम सब जानते हैं कि समय गुजर रहा है और ऊर्जा भी खत्म हो रही है।
संभवत: अनंत संघर्ष ने हमें इस लंबी लड़ाई के लिए तैयार किया। मेरे विचार से यह सब बड़े-बड़े सपनों, अक्षय जोश, अपने शानदार ध्येय के प्रति निरंतर बढ़ते प्रेम के कारण संभव हुआ है। यह सब दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है लेकिन जीवन के लिए अटल नियम हैं।
मैं आपसे वायदा करता हूं कि आप जब तक चाहेंगे और जब तक मुझे यह लगेगा कि मैं आपके लिए उपयोगी हूं तब तक आपके साथ रहूंगा, बशर्ते कि कुदरत और कुछ फैसला न कर दे। इससे एक सेकेंड भी पहले या एक सेकेंड भी बाद नहीं।अब मैं समझता हूं कि जीवन की संध्या में विश्राम मेरे नसीब में नहीं है।
( फिदेल कास्त्रो )
■
( विजय शंकर सिंह )