इन्ही 500 सालों में से पिछले 200 साल में ही, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानन्द, स्वामी रामतीर्थ, महर्षि अरविंदो, प्रभुपाद, जैसे महान लोग भी जन्मे और जिन्होंने सनातन परंपरा को अपने अध्ययन, दर्शन और विचारों से समृद्ध किया।
पर हिंदुत्व ने प्रतीक खोजो अभियान में या तो सावरकर को चुना या आज इन महानुभाव को। प्रतीकों का ऐसा दारिद्र्य, न भूतो न भविष्यति ! जिस परंपरा में झूठ बोलने के कारण ब्रह्मा तक को अपूज्य घोषित कर दिया गया हो, वहां यही दुर्गुण मान्यता पा रहा है।
अब बात कोहिनूर की। कहते हैं यह एक अशुभ रत्न है। जिस के भी पास रहा, उसका नाश प्रारंभ हो गया।
अब क्रोनोलॉजी पढिये,
● बाबर ने हुमायूं को दिया, बेचारा हुमांयू, नाम का ही भाग्यवान था पर अभागा निकला। दौड़ते भागते ही रहा।
● शाहजहां ने, मुग़ल साम्राज्य के ऐश्वर्य के शिखर काल मे, बड़ी शान से कोहिनूर को धारण किया। उसे गद्दी छोड़नी पड़ी और जेल में ही वह मरा।
● औरंगजेब के अंतिम समय मे ही मुग़ल साम्राज्य के बिखरने के संकेत मिलने लगे थे।
● दिल्ली पर हमला और तीन दिनों के भयानक नरसंहार के बाद, नादिरशाह इसे लूट कर ईरान ले गया। वह भी उसके बाद पतनोन्मुख हो गया।
● महाराजा रणजीत सिंह ईरान को हरा कर कोहिनूर वापस ले आये। उनके बाद सिख साम्राज्य का भी पराभव शुरू हो गया।
● अंग्रेजों के पास यह कोहिनूर सिख साम्राज्य के बाद आया, कुछ सालों में उनका भी साम्राज्य बिखरने लगा।
अब यह हीरा टावर ऑफ लंदन में रखा हुआ है। हीरा नायाब है, पर कहते हैं अशुभ है।
( विजय शंकर सिंह )
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