Saturday, 1 May 2021

मई दिवस - दुनियाभर में पूंजीवाद और मार्क्सवाद के संकट ने गांधी के आकर्षण और उसकी ग्राह्यता को और बढ़ाया है.

आज  1 मई विश्व मजदूर दिवस है। आज का दिन दुनिया के जानेमाने अर्थशास्त्री व दार्शनिक कार्लमार्क्स को समर्पित है जिनका जन्म 5 मई 1818 को जर्मनी में हुआ। मई दिवस पर पूरी दुनिया में मार्क्स की चर्चा होती है और जब हम किसी  विदेशी विचारक को पढ़ते हैं तो हमारी प्रवृत्ति होती है कि उसकी तुलना महात्मा गांधी से जरूर करते हैं। तुलना का उद्देश्य दोनों के श्रेष्ठ मूल्यों को पढ़ना और समझना होता है एक दूसरे को छोटा या बड़ा दिखाना नहीं। 

मार्क्स ने मजदूर वर्ग को एक राजनैतिक दर्शन दिया जिसे हम मार्क्सवाद कहते हैं। ब्रिटिश मार्क्सवादी चिंतक  टेरी इगलटन ने कहा था कि मार्क्सवादी होने का अर्थ है - क्रियाशील होना यानी कुछ करना। जब बात कुछ करने की हो तो गांधीवादी होने का अर्थ है भी यही है कि कुछ करते रहना। हालांकि गांधीजी ने अपने नाम पर कोई वाद नहीं स्थापित किया। उन्होंने तो यही कहा कि मेरा जीवन ही मेरा दर्शन है। मैं किस तरह जिया और किस तरह मारा गया अगर उसमें कुछ अच्छा लगे तो आप ग्रहण करो और नहीं लगे तो मत करो। 

मार्क्सवादी लोगों को गांधीजी  में तार्किकता कम और भावनात्मकता का पुट ज्यादा दीखता है। लेकिन क्रियाशीलता में गांधी मार्क्स से एक कदम आगे दिखते हैं। मार्क्स ने अपने स्वप्न को पूरा करने के लिए कोई  आंदोलन नहीं किया जबकि  गांधी ने एक बड़ा कांग्रेस  संगठन खड़ा किया और खुद  कई आंदोलनों का नेतृत्व भी किया। मार्क्स की पूरी  ज़िंदगी पुस्तकालयों में बीती और वहीं बैठे बैठे उन्होंने  दुनिया को बदल डालने की बात सर्वहाराओं से कही। गांधी ने अपनी जनता को ही अपनी किताब बनाया और उस जनता की नब्ज टटोलने के लिए वे जीवनभर एक घुमन्तु यात्री बने रहे जिन्होंने पगडंडियों, खेतों, नदियों के मुहानों , मैदानों  और पूरे भारत को अपने पैरों से नाप डाला।

मार्क्स ने दुनिया को जो क्रांतिकारी विचार दिए उन्हें वैज्ञानिक समाजवाद कहा इसका अर्थ है कि यह प्रक्रिया निश्चित चरणों में होनी ही है। इसे कोई रोक नहीं सकता। पर जब बनी बनाई मान्यताएं ध्वस्त होने लगीं, मार्क्सवाद के तंबू एक एक कर उखड़ने लगे, दुनिया मंदी की अंधी सुरंग में धंस गयी तब लोगों ने गांधीजी के विचारों को खोदना शुरू किया। यह भी आश्चर्य है कि मार्क्सवादियों ने जिस गांधी को बुर्जुआ, पुरातनपंथी कहकर कड़ी बाणवर्षा की पर जब गांधीजी पर दक्षिणपंथी बाणवर्षा हुई  तो गांधी को सहेजने उनकी विरासत का दावा करने वाले नहीं अपितु सबसे आगे मार्क्सवादी ही आये। 

मार्क्स अपनी विचारधारा को सरल  शब्दों में  समझाते हुए कहते हैं ''साम्यवाद के सिद्धांत को एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है- सारी निजी संपत्ति को खत्म किया जाये… हर किसी से उसकी क्षमता के अनुसार काम लिया जाये और हर किसी को उसकी जरूरत के अनुसार दाम दिया जाये… माना जाये कि नौकरशाहों के लिए दुनिया महज हेरफेर करने की वस्तु है।’'

गांधीजी एक नए तरह का पैटर्न हमारे सामने रखते हैं। वे कहते हैं कि अपने संसाधन हों, अपनी जरूरतें हों और अपनी तकनीक से वे जरूरतें पूरी हों।   वे कहते हैं कि हमने खादी और ग्रामोद्योग का असल मतलब समझा ही नहीं। खादी का मतलब कपड़ा बनाना और ग्रामोद्योग का मतलब सामान पैदा करना नहीं है। ये एकदम नई अर्थव्यवस्था है जिसमें वे  पूंजी को विकेन्द्रीकृत करने की बात कहते हैं। वे कहते हैं कि पूंजी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि जब वो एकत्र होती है तब वह बहुत सारी बुराइयां पैदा कर देती है। इसीलिए व्यक्ति के हाथ में पूंजी इकट्ठी हुई तो पूंजीवाद  पैदा हुआ। जब पूंजीवाद में  बहुत सारी बुराइयां पैदा होने लगीं तो एक दूसरे तरह का दर्शन आया जिसे हम साम्यवाद कहते हैं जिसमें कहा गया कि प्राइवेट ओनरशिप होनी ही नहीं चाहिए सबकुछ स्टेट की ओनरशिप होनी चाहिए। स्टेट ओनरशिप हुई तो एक नए तरह की समस्या खड़ी हुई क्योंकि सारी चीजें स्टेट के हाथों में सिमट गयीं। गांधी कहते हैं कि यही पर तो गलती हुई कि आदमी के हाथ से पूंजी निकालकर तुमने स्टेट के हाथों में दे दी।  यानी क्लास को खत्म करने के लिए साम्यवाद के नाम पर जो रिवोल्यूशन हुआ उसने एक नए तरह का क्लास पैदा कर दिया। 

पूंजी कैसे विकेन्द्रित इस पर गांधी कहते हैं कि यह बहुत आसान है कि उत्पादन का विकेंद्रीकरण करो। उत्पादन को जितना छोटा बना दोगे पूंजी उतनी बढ़ जाएगी। पूंजी इकट्ठा होती ही इसलिए है क्योंकि तुम प्रोडक्शन को सेंट्रलाइज्ड करते हो। वे कहते हैं कि ग्रामोद्योग है क्या? पूंजी को उत्पादन को बांट देने की एक कला है। जब गांव गांव में काम होने लगेगा गांव गांव में उत्पादन होने लगेगा तो पूंजी अपने आप ही गांव गांव में पहुंचेगी। अगर खादी को तुम बाजार  के शोरूम से लेकर आओगे तो एक नया अम्बानी या अडानी खड़ा हो जाएगा। 

बहुत सी मार्क्सवादी व्यवस्थाएं आंतरिक दबाव में भी चरमरा गईं और मार्क्सवादी विचारधारा का ढलान शुरू हो गया। लेकिन महात्मा गांधी के जीवन और विचारों का आकर्षण आज भी बना हुआ है और समय के साथ और बड़ा होता जा रहा है। गांधी विचारधारा का प्रचार किसी संगठित तंत्र के द्वारा नहीं किया गया। चूंकि उसमें आंतरिक बल नैतिक है, इसलिए विचारशील लोगों में उसकी ग्राह्यता सहज रूप से बढ़ रही है। दुनिया में पूंजीवाद और मार्क्सवाद के संकट ने गांधी के आकर्षण और उसकी ग्राह्यता को और बढ़ाया है।

जब पटेल और नेहरू गांधी को चिट्ठी लिखते हैं कि आप दिल्ली आ जाइये क्योंकि हमें आपकी सलाह की जरूरत है और गांधी जवाब में लिखते हैं कि तुम जानते हो कि सलाह देने में मैं बहुत बुरा हूँ। और अगर मैं दिल्ली पहुंचा तो मैं शायद बोल बोल कर तुमको परेशान ही करता रहूंगा। मैं सबसे ज्यादा कारगर तब होता हूँ जब मैं कुछ करता रहता हूँ। जब मैं कुछ करता हूँ तभी बात बनती है।

आजादी के बाद जब सरकार बनी और कई मंत्री व राज्यों के मुख्यमंत्री उनसे मिले तो गांधी ने कहा कि मैँ तुमको एक ताबीज देता हूँ  जब तुम कोई फैसला करने बैठो, कोई नीति बनाने बैठो और तुम्हारे मन में एक शक हो कि यह सही है या गलत है तब तुम मेरे इस ताबीज का इस्तेमाल करना।  तुमने जिस सबसे गरीब और दीन हीन आदमी को देखा हो उसका चेहरा अपनी आंखों के सामने लाना और खुद से पूछना  क़ि ये जो कदम मैं उठाने जा रहा हूँ उससे उस दिन हीन आदमी को फायदा होगा तो तुम्हारा कदम सही है। समाज के सबसे पीछे खड़ा आदमी है वो आदमी हमारे विकास का पैमाना है। 

1 मई मजदूर दिवस पर मार्क्स और गांधी दोनों को अपने अपने सन्दर्भों में अधिक गहराई से पढ़ने की जरूरत है। चूंकि मैं लगातार गांधीजी पर पढ़ता और लिखता रहता हूँ इसलिए मैंने उनकी बात ही प्रमुखता से राखी है।

मार्क्स और गांधी को नमन करते हुए  विश्वभर के मजदूर, श्रमिक वर्ग को मई दिवस की शुभकामनाएं।

अवधेश पांडे
1 मई 2021
#vss 

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