Sunday 23 May 2021

येरुशलम - अल-अक़्सा भाग - 1


सातवीं शताब्दी में अरब के मक्का शहर में मुहम्मद साहब ने जब स्वयं को अल्लाह का पैग़म्बर घोषित किया, तब भी इजराइल का शहर जेरुसलम यहूदियों का पवित्र तीर्थ स्थान हुवा करता था.. जो कि आज भी है

जेरुसलम में स्थित है "टेम्पल माउंट",  जो आज की स्थिति में एक समतल स्थान है, वहां कभी यहूदियों का पवित्र मंदिर हुवा करता था मगर वक़्त के साथ वो मंदिर पूरी तरह से तबाह हो चुका है.. अब बस उस मंदिर की कुछ दीवारें बची हैं जिनके सामने यहूदी आज भी प्रार्थना करते हैं

आज के टेम्पल माउंट के स्थान पर एक बहुत ही आलीशान और भव्य मंदिर था जिसे, यहूदी धर्मग्रंथों के अनुसार, पैग़म्बर डेविड, जिसे इस्लाम के दाऊद कहा गया है, उनके बेटे सोलोमन, जिन्हें इस्लाम मे सुलेमान कहा गया है, ने ईसा से एक हज़ार साल पूर्व (1000 BC) , यानि मुहम्मद के पैदा होने से क़रीब सत्तरह सौ साल पहले, बनवाया था

सोलोमन के इस मंदिर को हिब्रू भाषा में "बैत हा-मिक़दश" कहा जाता है.. हिब्रू में "बैत" का मतलब होता है घर और "मिक़दश" मतलब पवित्र.. यानि ख़ुदा का पवित्र घर.. अरब के लोग इसे "बैत उल-मक़्क़द्दस" कहते थे.. ये एक तरह से अपभ्रंश था हिब्रू के "बैत हा-मिक़दश" का, जैसे सोलोमन का सुलेमान और डेविड का दाऊद था

तो सातवीं शताब्दी में जब मुहम्मद साहब ने स्वयं को पैग़म्बर घोषित किया तब उन्होंने जेरुसलम में स्थित सोलोमन के इसी मंदिर की तरफ़ मुहं करके प्रार्थना करना शुरू किया.. उस समय भी ये मंदिर एक खंडहर ही था जो वक़्त से साथ तमाम भूकंप झेलते हुवे बस एक टीला बनकर रह गया था.. बस कुछ दीवारें और खंबे शेष बचे थे.. फिर जब पैग़म्बर मुहम्मद के अनुयायी बढ़े तो वो सब भी जेरुसलम की तरफ़ मुहं करके प्रार्थना करने लगे..  और ये सिलसिला लगभग तेरह (13) साल चला

तो तेरह साल तक नए नए मुसलमानों के लिए उनका किबला जेरुसलम का "बैत हा-मिक़दश" ही था जो कि यहूदियों का मुख्य तीर्थस्थल था.. जिसकी पूजा सदियों से यहूदी करते आ रहे थे
(क्रमश:)

© सिद्धार्थ ताबिश
#vss

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