Wednesday, 5 May 2021

कार्ल मार्क्स को उनके जन्मदिन 5 मई पर, उनको याद करते हुए

कार्ल मार्क्स को उनके जन्मदिन (5 मई) के अवसर पर याद करते हुए उनके कुछ उद्धरण. 

"हमारे युग में हर वस्तु अपने गर्भ में अपना विपरीत गुण धारण किए हुए प्रतीत होती है । हम देख रहे हैं कि मानव श्रम को कम करने और उसे फलदायी बनाने की अदभुत शक्ति से सम्पन्न मशीनें लोगों को भूखा मार रही हैं , उन्हे थकाकर चूर कर रही हैं । दौलत के नूतन स्रोतों को किसी अजीब जादू-टोना के जरिये अभाव के स्रोतों में परिणत किया जा रहा है । तकनीक की विजयें चरित्र के पतन से खरीदी जा रही हैं , और लगता है कि जैसे-जैसे मनुष्य प्रकृति को विजित करता जाता है, वैसे-वैसे वह दूसरे लोगों का अथवा अपनी ही नीचता का दास बनता जाता है । विज्ञान का शुद्ध प्रकाश तक अज्ञान की अंधेरी पार्श्वभूमि के अलावा और कहीं आलोकित होने में असमर्थ प्रतीत होता है । हमारे सारे आविष्कारों तथा प्रगति का यही फल निकलता प्रतीत होता है कि भौतिक शक्तियों को बौद्धिक जीवन प्रदान किया जा रहा है तथा मानव जीवन को प्रभावहीन बनाकर भौतिक शक्ति बनाया जा रहा है । एक ओर आधुनिक उद्योग और विज्ञान के बीच, और दूसरी ओर ,आधुनिक कंगाली तथा अधःपतन के बीच का यह बैरभाव, हमारे युग की उत्पादक शक्तियों तथा सामाजिक सम्बन्धों के बीच का यह बैरभाव स्पृश्य, दुर्दमनीय तथा अकाट्य तथ्य है ।" 

--- कार्ल मार्क्स 
( People's Paper की जयंती पर भाषण )
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"पूँजी का एकाधिकार उत्पादन की उस प्रणाली के लिए एक बंधन बन जाता है , जो इस एकाधिकार के साथ-साथ और उसके अंतर्गत जन्मी है और फूली-फली है । उत्पादन के साधनों का केन्द्रीकरण और श्रम का समाजीकरण अन्त में एक ऐसे बिन्दु पर पहुँच जाते हैं , जहाँ वे अपने पूँजीवादी खोल के भीतर नहीं रह सकते । खोल फट जाता है । पूँजीवादी निजी स्वामित्व  की मौत की घंटी बज उठती है । सम्पत्ति-हरण करने वालों की सम्पत्ति का हरण हो जाता है ।"

--कार्ल मार्क्स  ('पूँजी' , खंड - एक)
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"... हाँ, तो आपके पत्र का उत्‍तर मैंने क्‍यों नहीं दिया? इसलिए कि इस दरम्‍यान मैं बराबर मौत के कगार पर खड़ा लड़खड़ा रहा था। ऐसी हालत में ज़रूरी था कि उस हर क्षण को, जिसमें मैं काम कर सकता था, मैं अपनी पुस्‍तक को पूरा करने में लगाता। इस पुस्‍तक को मैंने अपनी तन्‍दुरुस्‍ती, खुशी तथा परिवार सबको होम कर दिया है। मेरा ख़याल है कि इस सफाई में और कुछ जोड़ने की ज़रूरत अब नहीं है। अक्‍ल के पुतले तथाकथित ''व्‍यावहारिक'' व्‍यक्तियों के नाम से ही मुझे हँसी आ जाती है। अगर कोई बैल बनना चाहता है तो अवश्‍य मानव-जाति के दुख-दर्दों की तरफ से आँखें चुराकर स्‍वयं अपनी चमड़ी की देखभाल वह कर सकता हैं। किन्‍तु, अपनी किताब को, कम-से-कम पाण्‍डुलिपि के रूप में पूरे तौर से समाप्‍त किये बिना  ही यदि मैं चल बसता तो अपने को मैं सचमुच एक ''अव्‍यावहारिक'' आदमी समझता। 
किताब का पहला खण्‍ड कुछ ही हफ्तों में हैम्‍बर्ग से प्रकाशित हो जायेगा। उसे ओट्टो मैसमर प्रकाशित कर रहे हैं। किताब का नाम है: 'पूँजी। राजनीतिक अर्थशास्‍त्र की आलोचना'।"

-- कार्ल मार्क्‍स
(ए.मेयर के नाम लिखे गये एक पत्र का अंश, 30अप्रैल,1867)
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"चूँकि मैं हर प्रकार की व्‍यक्ति-पूजा के विरुद्ध हूँ, इसलिए अन्‍तर्राष्‍ट्रीय संघ के अस्तित्‍व-काल में उन अनगिनत सन्‍देशों को पब्लिक के सामने जाहिर करने की अनुमति मैंने कभी नहीं दी जो मेरी सेवाओं की प्रशंसा करते हुए भिन्‍न-भिन्‍न देशों से जबर्दस्‍ती मेरे पास भेजे गये हैं। सिवा इसके कि उनके भेजने वालों को डाँट देने के लिए मैंने कभी कुछ लिख दिया हो, आम तौर से ऐसे संदेशों का मैंने कभी जवाब तक नहीं दिया। कम्‍युनिस्‍टों के अपने प्रथम गुप्‍त संगठन में एंगेल्‍स और मैं इस शर्त पर शामिल हुए थे कि उसके नियमों में से हर उस चीज़ को निकाल दिया जायेगा जिससे सत्‍ता के प्रति अन्‍ध-भक्ति की भावना को बढ़ावा मिल सकता है।"

--कार्ल मार्क्‍स
(डब्‍ल्‍यू. ब्‍लौस के नाम लिखे गये एक पत्र का अंश, 10नवम्‍बर,1877)
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