Wednesday 26 May 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 41.


  ( आसिफ अली जरदारी और सोनिया गांधी )

“राजीव! अगर हम दोनों शादी कर लेते तो दोनों मुल्कों का झंझट ही खत्म हो जाता”

सार्क सम्मेलन 1988 में डिनर टेबल पर हुई यह बातचीत उन दिनों का चुटकुला था। उस समय भोजन पर राजीव, सोनिया, राहुल, प्रियंका के अतिरिक्त बेनज़ीर, उनके पति आसिफ़ और माँ नुसरत भुट्टो थी। इस चुटकुले की तस्दीक़ के लिए वर्षों बाद करन थापर बेनज़ीर से लंदन में मिले।

उन्होंने हँस कर कहा, “ऐसी कुछ बात हुई थी, और हम खूब हँसे। राजीव बहुत ही हैंडसम थे, मगर उतने ही सख़्त इंसान। हम दोनों परिवारों के बीच कुछ रिश्ता मुझे हमेशा लगता रहा। ख़ास कर जब राजीव के भाई संजय की मृत्यु के बाद मेरे भाई शाहनवाज़ की मृत्यु हुई।”

उसके बाद उन्होंने एक रॉबर्ट का प्लान की किताब खरीद कर करन थापर को दी और कहा, “यह लाल कृष्ण आडवाणी जी को मेरी तरफ़ से तोहफ़ा दीजिएगा।”

उस समय तक राजीव मर चुके थे, कश्मीरी पंडित पलायित हो चुके थे, बाबरी मस्जिद गिर चुका था, और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बन चुकी थी। बेनज़ीर प्रवासित होकर लंदन में थी, और आडवाणी परिवार से अच्छे संबंध थे।

बेनज़ीर ने अपनी दूसरी आत्मकथा में लिखा कि राजीव गांधी के साथ कश्मीर मसला सुलझने की संभावना थी। जो वादा उनके पिता ने शिमला में मौखिक में किया था, वह लिख कर एक पक्का दस्तावेज बन जाता। मगर आइएसआइ यह नहीं चाहती थी।

जहाँ बेनज़ीर अपनी राजनैतिक पकड़ बना रही थी, उनके पति आसिफ़ का ध्येय भिन्न था। वह ख़ानदानी व्यवसायी थे। कराची में सिनेमा हॉल का धंधा था। तमाम गुंडे-मवालियों से पाला पड़ता ही रहता। उनके लिए भ्रष्टाचार, कमीशन जैसी चीजें जीवन का हिस्सा थी। जब पत्नी प्रधानमंत्री बनी, उन्होंने कमीशन लेने शुरू किए, यह कोई अजूबी बात नहीं। नवाज़ शरीफ़ की पार्टी ने उनका नामकरण ही ‘मिस्टर टेन परसेंट’ कर दिया।

ऐसे भ्रष्टाचारों के आरोपों के तहत 1990 में राष्ट्रपति गुलाम इशाक ख़ान ने बेनज़ीर सरकार को बर्खास्त कर दिया और नवाज़ शरीफ़ को प्रधानमंत्री बना दिया।

कमीशनख़ोरी तक तो फिर भी ठीक था। मामला तब उलझा जब बेनज़ीर सरकार के दौरान एक अपहरण की बात लीक हुई। आरोप कुछ यूँ थे।

इंग्लैंड के एक बड़े व्यवसायी मुर्तज़ा हुसैन बुख़ारी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में एक बड़ा अस्पताल बनवाना चाहते थे। उन्होंने इसी क्रम में आसिफ़ अली ज़रदारी और उनके सहयोगी गुलाम हुसैन उनर से मुलाक़ात की। एक औपचारिक बातचीत के बाद गुलाम हुसैन उनसे अकेले में मिले। कमीशन की बात की, तो बुखारी नाराज़ हो गए।

तभी गुलाम हुसैन ने बुखारी के पैर में टाइम-बम बाँध दिया और आठ लाख डॉलर रकम मांग ली। बुख़ारी जैसे-तैसे वहाँ से छूट कर पुलिस के पास गए, और ज़रदारी पर यह संगीन आरोप लगाया।

ऐसे आरोप के लिए पाकिस्तान में दस साल की कैद की सज़ा थी। बेनज़ीर के बर्ख़ास्तगी के साथ ही ज़रदारी जेल की हवा खाने गए, हालांकि सांसद होने के नाते वह जेल से संसद में आते रहते। वहीं बेनज़ीर से बतियाते, जो उस समय विपक्ष की नेता थी।

बेनज़ीर को किसी भी तरह वापसी करनी थी। वह एक मुद्दा तलाश रही थी। जैसे जिया-उल-हक़ को अफ़ग़ानिस्तान का मुद्दा मिला था, कुछ ऐसा ही। उन्होंने देखा कि मुद्दा तो अपने घर में ही है। वह मुद्दा जो किसी कारणवश दब गया था। अगर वह जोर-शोर से उछल जाए तो पूरा पाकिस्तान फिर से जिहाद पर उतर जाए। उन्होंने याद किया कि कैसे उनके पिता ने हज़ार वर्षों तक भारत से लड़ने की बात कही थी, और जनता ‘जीए भुट्टो!’ चिल्लाने लगी थी।

बेनज़ीर ने पाकिस्तान में रैलियाँ करनी शुरू की। इस बार उनका नारा था, “हम ले के रहेंगे कश्मीर!”

यही नारा आने वाले कई पाकिस्तान चुनावों में तुरुप का पत्ता सिद्ध हुआ, और कश्मीर के लिए विध्वंसक। कभी कश्मीर मसले के हल की बात करने वाली बेनज़ीर ने कश्मीर को बर्बाद कर दिया। इस बर्बादी में कहीं न कहीं राजीव और उनके युवा मित्र फारुख़ अब्दुल्ला भी शामिल थे।

कश्मीर जलना तो पहले ही शुरु हो चुका था। दिसंबर, 1989 में बड़ी खबर यह थी कि जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के कुछ उग्रवादियों ने भारत के गृह मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया का अपहरण कर लिया!
(क्रमश:)

प्रवीण झा
© Praveen Jha

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 40.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/05/40.html
#vss

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