Wednesday 12 May 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 27.

कौन किस तरफ़ है, यह तो तभी पता लगता है जब उसकी परीक्षा होती है? नेहरू चीन से युद्ध के बाद लगभग हृदयाघात की अवस्था में थे, क्योंकि उनकी गणना में चीन उन्हें कभी धोखा नहीं दे सकता। आखिर इसके बाद उनकी मृत्यु ही हो गयी। लेकिन, अगर वह संयुक्त राष्ट्र के उस अधिवेशन में होते, तो उनका क्या हाल होता? 

जब भारत-पाकिस्तान युद्ध का आग़ाज़ हुआ, तो उसी वक्त निक्सन ने सुरक्षा परिषद की मीटिंग बुलाई। उनका कहना था कि युद्ध अभी के अभी रोक दी जाए। ग्यारह सदस्यों ने अमरीका (और पाकिस्तान) का साथ दिया। सिर्फ सोवियत और पोलैंड ने भारत का साथ दिया। लेकिन, आश्चर्य यह था कि इंग्लैंड और फ्रांस ने वोट डालने से ही मना कर दिया। 

सोवियत के वीटो की वजह से युद्ध जारी रहा। 6 दिसंबर को CIA को एक भारतीय सूत्र से जानकारी मिली कि इंदिरा गांधी के तीन लक्ष्य हैं- बांग्लादेश की आज़ादी, आज़ाद कश्मीर पर कब्जा, और पाकिस्तानी सेना को भारी हानि पहुँचाना। यह सुनते ही निक्सन उछल पड़े। 

उन्होंने टेबल पर मुक्का मारते हुए कहा, “अब क्या भारत और सोवियत मिल कर पूरी दुनिया को धमकाएँगे? हमें, अमेरीका को, धमकाएँगें?”

किसिंगर ने कहा, “हमारे मित्र देश का बलात्कार कर रहे हैं ये भारतीय और रूसी”

“इसका मतलब जानते हो? चीन और पाकिस्तान, दोनों हमारे हाथ से जाएँगे। हमें जल्द कुछ करना होगा।”

अमरीका ने 7 दिसंबर को एक मैराथन संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन बुलाया था। भारत ने अपनी लंबी भावरंजित दलील रखी, और यूँ लगा कि दुनिया भारत का साथ देगी। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। नेहरू के गुटनिरपेक्ष दोस्त इंडोनेशिया, मिस्र, और युगोस्लाविया तक ने साथ नहीं दिया। 104 देश भारत के विरुद्ध थे, और मात्र सोवियत ब्लॉक के नौ देशों और भूटान ने ही भारत का साथ दिया। सोवियत ब्लॉक में भी रोमानिया ने साथ नहीं दिया।

अब तक भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में आगे बढ़नी शुरू हो चुकी थी। भारत का लक्ष्य ढाका पहुँचना नहीं था, बल्कि पाकिस्तान के ‘सप्लाइ-चेन’ को बंद करना था। ख़ास कर चित्तगोंग के पोत पर कब्जा।

निक्सन ने कहा, “अभी सोवियत को चिट्ठी भेजो कि वह इस युद्ध के बाद हमसे सभी संबंध टूटा हुआ मानें। यह हमारे मध्य एक ‘वाटरशेड’ बिंदु समझें।”

रूसियों ने तुरंत संदेश भेजा, “वाटरशेड का अर्थ क्या होता है, स्पष्ट करें। क्या एक मामूली युद्ध की इतनी अहमियत हो गयी?”

अगले दिन भारत की सेना मेघना नदी के किनारे पहुँच चुकी थी। अब ढाका उनके सामने था, मगर वहाँ पहुँचने के ऑर्डर नहीं थे। भागती हुई पाकिस्तान सेना ने नदी पर बना पुल भी उड़ा दिया था। 

निक्सन ने किसिंगर से कहा, “चीन से कहो, आगे बढ़े। वे बैठे-बैठे क्या कर रहे हैं?”

“उन्होंने कहा है कि ठंड बहुत है। नहीं बढ़ सकते।”

“ठंड? ये बेवकूफ़ हमसे लड़ने कोरिया युद्ध में तो यालू नदी पार कर आ गए थे। अब ठंड लग रही है?”

“इंदिरा गांधी का एक और लीक आज मिला है”

“वह क्या?”

“उन्होंने कहा है कि अगर चीन आगे बढ़ा तो सोवियत उसका हाथ मरोड़ देगी”

“वह कुतिया! उसकी यह औक़ात? अभी हमारे जहाज़ों को आदेश दो कि बंगाल की खाड़ी की तरफ़ कूच करें”

“ठीक है। चीन से एक और संदेश आया है। लिखा है कि दर्शन कहता है, जब पूर्व में रोशनी नहीं आती, पश्चिम में ज़रूर आती है”

“यहाँ युद्ध छिड़ा है, और उन्हें दर्शन सूझ रहा है? 

निक्सन-किसिंगर संवाद मैंने किसी चुटकुलों की किताब में नहीं पढ़े। ये वास्तविक संवाद ही थे। चीन का दर्शन भी ठीक ही था। रोशनी उस वक्त पूर्व में आ रही थी। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
Praveen Jha

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 26.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/05/26.html
#vss

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