Thursday 6 May 2021

यात्रा वृतांत - गंगोत्री यात्रा के पड़ाव (13) जो बहती है वह गंगा माँ है.

गंगा महज़ एक नदी ही नहीं है। वह हमारी सभ्यता और संस्कृति की जननी भी है और इसीलिए वह हमारी माँ है। चूँकि मैं खुद भी गंगा किनारे बसे ज़िले कानपुर का हूँ, इसलिए गंगा के प्रति मेरी यह अनुरक्ति स्वाभाविक है। कितनी बार मैं गंगा किनारे घूमा हूँ मीलों पैदल। कितनी बार मैंने गंगा को महसूस किया है अपने अंदर बहती नदी जैसा। गंगा इस पृथ्वी पर अकेली जीवित देवता है। जो सिर्फ़ देती है। मगर हम उसे देते हैं, अपना उच्छिष्ट। ऋषिकेश से इलाहाबाद तक के मार्ग में हमने उसे गंदगी ही दी है। शुद्ध और निर्मल पानी खींचा तथा मल दिया। नालों के ज़रिए, मिलों और कारख़ानों के ज़रिए। टेनरीज़ और छपाई उद्योग का मल। ऐसे में नदी का पानी अपनी उपादेयता खोएगा ही। देश की हर नदी गंगा है, मगर हमने हर नदी को यूँ ही मैला किया है। गंगा की अविरल धारा को देखकर मेरी भी आँखें ठीक उसी तरह भीग जाती हैं जैसी कि पंडित जवाहरलाल नेहरू की भीगा करती थीं। 

पंडित जी अक्सर इलाहाबाद में संगम तट पर जाते और वहां त्रिवेणी की धारा को देखकर सोचा करते कि गंगा ही हमारी सभ्यता और संस्कृति है। अगर गंगा नहीं होती तो ये गंगा जमना का मैदान नहीं होता और हमारे चिंतन प्रक्रिया में वह विविधता नहीं आती और न ही सद्भाव आता जो यहां मौजूद है। 
सोचिए गंगा ने हमें कितना कुछ दिया है। वह अल्हड़ता, वह मस्ती और फक्कड़ी जिसके चलते हमारी चिंतन प्रक्रिया में असहिष्णुता और उदारता आई जो देश में  और कहीं नहीं है क्योंकि बाकी सब जगह का मौसम सम है और वहां एकरस जीवन है। गंगा की धारा के साथ बहना और उसके उद्गम स्थल गोमुख से लेकर गंगा सागर तक मैं कई दफे गया हूं। मैं कोई छद्म राष्ट्रवादी नहीं हूं कि गंगा सफाई जैसे कुतर्की अभियान चलाऊँ या विकास की धारा को अवरुद्ध करने की नीयत से गंगा की धारा को अपने तईं स्वच्छ करने का दंभ पालूं। विश्व में गंगा को कोई भी अनंत काल से नहीं बांध पाया है क्योंकि गंगा एकमात्र जीवित देवता हैं। इसलिए उन्हें पवित्र करने का दंभ कुछ छद्म और झूठे राष्ट्रवादी ही पालते हैं। जिस गंगा के प्रवाह पर मुग्ध होकर पंडित जगन्नाथ ने गंगा लहरी और आदि शंकराचार्य ने गंगा स्त्रोत रचा वह गंगा किसी छद्म व भ्रम में नहीं बहती है। 

वह बहती है क्योंकि बहना उसकी निरंतरता का द्योतक है। मूर्ख हैं जो गंगा के खत्म होने से डरे हुए हैं। गंगा तब ही खत्म होगी जब यह सृष्टि खत्म होगी। वह अपना रास्ता खुद तय करती है, अपने बांधने के अभियान से खुद रुष्ट होती है और प्रलय ढा देती है। इसलिए गंगा को बचाने अथवा उसे साफ करने का अभियान बेमानी है। चलाना है तो सुंदर लाल बहुगुणा की तरह गंगा के रुष्ट नहीं होने का अभियान चलाओ। पर मजा देखिए कि एक तरफ तो वाराणसी में गंगा सफाई अभियान चलाया जाता है दूसरी तरफ टिहरी में उसे अवरुद्ध करने की प्रक्रिया भी वही राष्ट्रवादी करते हैं। मैं स्वयं मगर गंगा के साथ ही बहना चाहता हूं। जब भी मौका मिलता है मैं निकल जाता हूं गंगा के सहारे-सहारे उसके बहाव की उल्टी दिशा में। इस नदी को देखने का एक मजा काशी में है तो एक उत्तरकाशी में। उत्तरकाशी के निकट नैताला में गंगा के बहाव के सहारे मैं भी अपनी इस बहने की इच्छा को पूरा करता हूँ। लेकिन हमें अब लौटना भी था। घर की याद आने लगी थी। और पहाड़ों तथा नदी की निरंतर कल-कल से तबियत अब ऊबने लगी थी। 

गंगोत्री उत्तराखंड के चार धामों में से एक है। कहने को तो ऋषिकेश से गंगोत्री तक राजमार्ग बना हुआ है और एनएच-108 गंगोत्री पहुंच कर ही खत्म होता है। लेकिन यह राजमार्ग न तो मैदान के हाई वे जैसा है और न बन सकता है। हालाँकि अब कई जगह उसमें सुधार हुआ है। फिर भी कई जगह वह इतना संकरा है कि गाड़ी पास करने के लिए आगे पीछे करनी पड़ती और कहीं कहीं एकदम कच्चा कि अगर गाड़ी फोर व्हील न हो तो कीचड़ में ही फंसकर रह जाए। ऋषिकेश से ही पहाड़ी यात्रा शुरू हो जाती है और 272 किमी की यात्रा पूरी करने के बाद गंगोत्री पहुंचा जा सकता है। उत्तरकाशी से गंगोत्री का रास्ता इतना खतरनाक है कि जरा सा भी चूके तो गए हजारों फीट गहरी खाई में। अगर आप गाड़ी लेकर जा रहे हैं तो आपको खाने-पीने के सामान से लेकर रसोई गैस और चूल्हा तक लेकर जाने पड़ेगा क्योंकि पता नहीं कब पहाड़ों पर बारिश शुरू हो जाए अथवा पहाड़ धसकने लगे और गंगोत्री तक के सारे रास्ते कट जाएं। फिर यही भोजन काम आएगा। इसीलिए हमारे मित्र सुभाष जी ने उत्तरकाशी से ही टमाटर, गोभी, आलू, मटर आदि ख़रीद ली थीं। पानी की बोतलें भी। आटा, दाल, चावल, मसाले, नमक वग़ैरह खरीद कर ले जाएँ। दस किलो की एक बोरी आटे की और बीस किलो चावल तथा पाँच किलो दाल भी। तब ही आप गोमुख तक की यात्रा निर्विघ्र पूरी कर सकेंगे। जब लौटें तो अपनी यह सामग्री वहीं लोगों के बीच बाँट दें। क्योंकि गंगोत्री तीर्थ से कुछ ले कर आना बेमानी है। 

मैं यह भी कहूँगा, कि यात्रा कोई टूरिज़्म नहीं है। यह घुमक्कड़ी है, तीर्थ यात्रा भी है। इसलिए समर्पण के भाव से जाएँ। कष्ट होंगे, उन्हें होने दीजिए। कष्टों को पारकर ही आपकी क्षमता का पता चलता है। एक हफ़्ता वहाँ और वहाँ के लोगों के साथ गुज़ारने के बाद हमने सुबह साढ़े दस बजे नैताला से वापसी शुरू की। सुबह हम लोगों के लिए पंडित जी ने ज्वार की रोटियाँ बनाईं, साथ में गाजर की सब्ज़ी और चटनी। रास्ते के लिए चारों लोगों के लिए ढेर सारे आलू, पनीर, गोभी और मटर भरे पराठे बना कर बांध दिए। लौटने में हम पहले कंडीसोड एक ढाबे पर रुके। चाय पी और लघुशंका से निपटे। डेढ़ बजे तक हम चंबा आए। गाड़ी में फ़्यूल फुल कराया और चल दिए। आगरा खाल में थोड़ी देर रुके। राजमा और भट की दाल ख़रीदी। फिर वहाँ बने टॉयलेट्स में लघुशंका के लिए गए। पाँच घंटे की पहाड़ी यात्रा के बाद क़रीब हम ऋषिकेश उतर आए। पहाड़ी यात्रा के दौरान एक बात का विशेष ख़्याल रखें। लघुशंका के लिए पहाड़ों की तरफ़ या खाई की तरफ़ खड़े होकर धार न गिराने लगें। यह बड़ा अशोभनीय है और आपकी मैदानी मूर्खता को प्रदर्शित करता है। किसी भी होटल या ढाबे में रुकें और वहीं निपटें। हर ढाबे में टॉयलेट्स होते हैं। हाँ, पानी कम पियें ताकि कम बार रुकना पड़े। और अगर आपको बहुमूत्र की बीमारी है तो मैं सलाह दूँगा, कि आप या तो आयुर्वेद की चंद्रप्रभा वटी का नियमित सेवन करें अथवा होम्योपैथी कि SABAL SERRULATA टिंचर की दस-दस बूँदें दिन में तीन बार लें एक महीने तक। एलोपैथी पर भरोसा है तो प्रोस्टेट ग्लैंड को कटवा लें। 

ऋषिकेश से हरिद्वार तक के जाम को पार करते हुए हम बहादराबाद, रुड़की, मंगलौर, नारसन, पुरकाजी, छपार, रामपुर तिराहा होते हुए मुज़फ़्फ़र नगर बाईपास पार कर खतौली के पहले एक स्टार होटल में थोड़ी देर रुके। वहाँ भी शंका निवारण किया तथा आलू की टिक्की खाई। क्योंकि वह गरम बनायी गई। फिर मोदीपुरम, मेरठ, मोदी नगर पहुँचे। मोदी नगर में भारी जाम था। ऐसा दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल के निर्माण की वजह से था। इसके बाद ग़ाज़ियाबाद होते हुए हम हिंडन कट पार कर वसुंधरा आ गए। सेक्टर एक, तीन और पाँच तथा सात का मैदान पार सेक्टर नौ पहुँचे। वहाँ पहला ही अपार्टमेंट जनसत्ता का है। इस तरह ठीक साढ़े नौ बजे रात को मैं अपने घर आ गया। यात्रा पूरी हुई। आपने पढ़ी और शायद पसंद भी की हो। आपका आभार। कोई शंका हो तो ज़रूर लिखें। 
(समाप्त)

शंभूनाथ शुक्ल
( Shambhunath Shukla )
#vss

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