Friday, 21 May 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 36.


“हम सिंधी हैं, जो बदला लेना खूब जानते हैं। मेरे मरने के बाद अगर तुम दोनों ने मेरे हत्यारों का खून नहीं पीया, तो तुम हमारे बेटे नहीं।”
- ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो द्वारा अपने बेटों को जेल से लिखी चिट्ठी

भुट्टो परिवार एक अभिजात्य परिवार था। विदेशी शिक्षा, शाही रहन-सहन, गद्दाफ़ी जैसे तानाशाहों के साथ छुट्टियाँ बिताना और अकूत धन। शराब और अय्याशी का भी आलम था ही। जब विपक्ष ने उन पर शराब पीने का आरोप लगाया, तो ज़ुल्फ़िकार एक रैली में दहाड़े, “हाँ! मैं शराब पीता हूँ। मगर मैं अवाम का ख़ून नहीं पीता।”

बेनज़ीर और मुर्तज़ा, दोनों हार्वर्ड और ऑक्सफ़ोर्ड से पढ़े। उनकी पहुँच इसी से पता लगती है कि हार्वर्ड में उनके लोकल गार्जियन जे. के. गालब्रेथ थे, जो बाद में भारत में अमरीका के राजदूत बने। बेनज़ीर ऑक्सफ़ोर्ड के प्रतिष्ठित वाद-विवाद संस्था ‘ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन’ की पहली एशियाई महिला अध्यक्ष बनी। लेकिन, मुर्तज़ा भुट्टो कम्युनिस्ट क्रांतिकारी मिज़ाज के व्यक्ति थे, जिनसे उनके पिता को राजनैतिक उम्मीदें कम थी। 

सबसे छोटे भाई शाहनवाज़ स्विट्ज़रलैंड में पढ़ रहे थे, जब उनके पिता को जेल की सजा हुई। सिर्फ़ बेनज़ीर की छोटी बहन सनम भुट्टो ही अब जीवित हैं। बाकी सभी येन केन प्रकारेण मारे गए।

जब ज़ुल्फ़िकार जेल गए, तो शाहनवाज़ और मुर्तज़ा ने लंदन की सड़कों पर मार्च कर उनके रिहाई की अपीलें की।बेनज़ीर और उनकी माँ नुसरत पाकिस्तान में ही रही। फाँसी के बाद भी बेनज़ीर ने पाकिस्तान में रह कर लोकतांत्रिक मोर्चा बनाना तय किया। वह पलायित नहीं हुई। 

शाहनवाज़ और मुर्तज़ा के पास तो पिता की खूनी चिट्ठी थी। वे पहले गद्दाफ़ी के पास गए थे, जिन्होंने जिया-उल-हक़ से इल्तिजा की वे ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को रिहा कर हमेशा के लिए लीबिया भेज दें। मगर जिया उल हक़ नहीं माने। उसके बाद ये दोनों भाई यासर अराफ़ात के पास मदद माँगने पहुँचे और कहा कि जिया उल हक़ को मारने में मदद करें। 

यासर अराफ़ात अनुभवी व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि वह अपने फ़िदायी जत्थे को इस काम में नहीं लगा सकते, मगर हथियार दे सकते हैं। मारना उन्हें ही होगा। दोनों भाई तमाम हथियार लेकर काबुल पहुँच गए। वहाँ केजीबी ने उनका स्वागत किया और शाही महल में ठहरने का इंतज़ाम किया। उनके सहयोगी रज़ा अनवर लिखते हैं, “मुर्तज़ा भुट्टो बदले की आग में, हाथ में ए के 47 लिए अपने महल की छत पर घूमते रहते थे।”

इन भाईयों ने एक संगठन बनाया ‘अल-ज़ुल्फ़िकार’ जिसका अर्थ था ‘तलवार’, और एकमात्र उद्देश्य था अपने पिता की मौत का बदला। इसमें शामिल होने वालों को मुर्तज़ा हाथ में हथियार देकर कहते कि अगर इसे चला नहीं सकते, तो इसी से एक दिन मारे जाओगे। 

इसी संगठन ने पाकिस्तान का यात्री विमान हाइजैक किया। उसके कुछ ही महीनों बाद इन्होंने पहला हमला किया। 

बेनज़ीर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “पाकिस्तान के श्रम मंत्री चौधरी ज़हूर अली के पास एक कलम थी, जिसे वह सबको दिखाते रहते कि उसी कलम से ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो का फाँसीनामा लिखा गया था। उन्होंने फाँसी के बाद मिठाई बाँटी थी।”

उस दिन उनके साथ वह न्यायाधीश भी सफ़र कर रहे थे, जिन्होंने फाँसी दी थी। दोनों को बम से उड़ा दिया गया। न्यायाधीश घायल होकर बच गए, चौधरी चल बसे। मुर्तज़ा भुट्टो ने बीबीसी पर साक्षात्कार देकर हत्या की ज़िम्मेदारी ली।

उसके बाद जिया उल हक़ के विमान को एक मिसाइल से उड़ाने की कोशिश की गयी, मगर मिसाइल ग़लत फायर हो गया और वह बाल-बाल बच गए। ऐसे कई प्रयास और हुए जिनमें जिया उल हक़ के भारत यात्रा और पोप जॉन पॉल के कराची यात्रा पर हुए हमले की योजना भी शामिल थे। अटकलों के अनुसार सोवियत की केजीबी के अलावा भारतीय रॉ के एजेंट भी इन भाइयों से संपर्क में थे। 

खैर, जिया उल हक़ भी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे थे। अल-ज़ुल्फ़िकार में शामिल ‘उग्रवादियों’ को चुन-चुन कर मौत के घाट उतारा गया। अब इन भाईयों की बारी थी। 

मुर्तज़ा और शाहनवाज़ ने दो अफ़गानी बहनों फ़ौज़िया और रेहाना से शादी की थी। जुलाई, 1985 में फ्रांस के नीस शहर में शाहनवाज़ की लाश मिली। फ्रांस की पुलिस के प्राथमिक जाँच अनुसार उनकी पत्नी रेहाना आइएसआइ की एजेंट बन गयी थी। शाहनवाज़ को ज़हर उन्होंने ही दिया था। यह खबर सुन कर मुर्तज़ा ने अपनी पत्नी फ़ौज़िया को तलाक़ दे दिया। शाहनवाज़ को उनके पिता के साथ ही लरकाना में दफ़न किया गया। इस अवसर पर हज़ारों की तादाद में भुट्टो समर्थक इकट्ठा हुए। 

बहरहाल जब-जब उनके भाई कोई कारनामा करते, बेनज़ीर और उनकी माँ को जेल में बंद कर दिया जाता। इन यातनाओं से बेनज़ीर अस्वस्थ हो चली थी, और कुछ समय यूरोप भी चली गयी। मगर अभी बदला पूरा कहाँ हुआ था? जिया-उल-हक़ तो ज़िंदा थे।

अभी जिया-उल-हक़ का मरना और बेनज़ीर ‘भुट्टो’ का पाकिस्तान की गद्दी पर बैठना बाकी था। 

बाकी तो खैर मुर्तज़ा और बेनज़ीर का मरना भी था। इस परिवार में एक नए व्यक्ति शामिल हो रहे थे- आसिफ़ अली ज़रदारी। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
( Praveen Jha )

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 35. 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/05/35.html
#vss

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