1933 से 1938 तक हिटलर ने आर्थिक, सामाजिक और मिलिट्री रूप मे जर्मनी को ताकतवर बना दिया था। उसका उत्साह आठवें आसमान पर था, और जर्मनी हजार साल के राएख के लिए तैयार हो रहा था। आगे उसके दिमाग मे युद्ध की योजनाऐं थी। और 1950 तक बर्लिन दुनिया की राजधानी बन जाना था।
तो विश्व की राजधानी के कोई छोटी मोटी चीज नही। हिटलर के फेवरिट आर्किटेक्ट अल्बर्ड स्पीयर ने एक ग्रांड प्लान तैयार किया। लेकिन विश्व सन्सद और चांसलर के महल का डिजाइन तो खुद हिटलर ने बनाया था।
वो बचपन से आर्किटेक्ट बनना चाहते थे।
तो बर्लिन के पुर्नविकास का विशाल प्लान बनकर आ गया, तो इसके लिए जगह बनानी थी। केन्द्रीय बर्लिन मे सैंकडों साल पुराने महल, अपार्टमेंट और बाजार तोड़े जाने लगे। जगह, काफी ज्यादा चाहिए थी, आखिर दुनिया की भावी राजधानी के सारे भवन बड़े विशाल थे।
इस योजना मे एक केन्द्रीय सड़क थी, नार्थ साउथ एक्सेस। एकदम दिल्ली का राजपथ समझिऐ। एक सिरें पर वाइसराय हाउस है, दूसरे पर इंडिया गेट। ठीक इसी तरह 6 किमी की इस सड़क के एक किनारें तरफ विश्व संसद होती, दूसरे सिरे पर विशाल विक्ट्रीगेट।
ये पेरिस के आर्क डे टायम्फी से प्रेरित था। (इंडिया गेट भी इसी से प्रेरित है) लेकिन हिटलर का गेट, पेरिस से कई गुना ज्यादा बड़ा और सजावटी होना था, 117 मीटर उंचा और 112 मीटर चैड़ा।
इसके सामने की सड़क पर दोनो ओर हथियार सजे होते, टैंक, तोपे, विशाल गन्स ... सारी हारे हुए दुश्मनों से कैप्चर की हुई।
इस सड़क के दोनो ओर ऐवेन्यू होते जिसमे 200 मीटर चौड़ी बहुमंजिला इमारते होती। इनमे मंत्रालय होते, सरकारी दफतर होते, कंपनियों के मुख्यालय और महंगे शापिंग माल, कैफे, मनोरंजन गृह होते।
ओह, आफ'कोर्स ... नाजी पार्टी का शानदार आफिस होता।
फयूरर के महल के सामने जो ग्राउंड होता, वो विशाल परेड ग्रांउड मे बदल जाता, जिसमे दो लाख सिपाही परेड करते। महल का फ्रंट और उसकी परिधि कोई आधे किलोमीटर की होनी थी, ताकि नेता से मिलने आये लोगों को दिक्कत न हो।
सन्सद भवन वैसे तो एक था पहले से, मगर छोटा था। वो जरा बड़ा बनना था। इतने कि अन्दर एक लाख लोग जमा हो सकते। इसका विशाल डोम कोई 300 मीटर का होता, जो दुनिया मे अपनी तरह की सबसे बड़ी इमारत होती। अभी वाली संसद, जो वैसे भी नही चलती थी, इस विशाल काम्पलेक्स के अतिरिक्त हिस्से के रूप मे एडजस्ट कर ली जाती।
अब हर पुरानी बिल्डिंग को तोड़ तो सकते नही न।
असल मे इस पूरे प्लान मे बहुत से हिस्से इतने उपयोगी नही थे, मगर दर्शक को नाजी ताकत से सहमा देने के लिए डिजाइन थे। प्रोजेक्ट का नाम था - वल्र्ड कैपिटल जर्मानिया !!!
यह शहर प्राचीन रोम, बेबीलोन और इजिप्ट को मात देने के लिए बना था। निर्माण शुरू हुए, मगर कई जगह इतने हैवी स्ट्रक्चरके लिए कांक्रीट ब्लाक से बर्लिन की जमीन धंस जाती। इसका कोई इलाज सोचा जाता, की दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया।
फंडिंग डाइवर्ट होने से काम धीमा हो गया और फिर बन्द। हिटलर केयर फंड जैसा आइडिया शायद सूझा न हो।
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तो थोडी अधूरी बनी इमारतों के अलावे बाकी ढहाई गई जगहों मे पर आज भी खाली मैदान है। वल्र्ड कैपिटल जर्मानिया कभी जमीन पर नही आ सकी।
हिटलर के सपनो का शहर आज बर्लिन के संग्रहालय के टेबल पर रखा हुआ है।
मनीष सिंह
(Manish Singh)
#vss
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